नई दिल्लीः बेहतरीन चिकित्सा सुविधा और विश्व स्तरीय मेडिकल की पढ़ाई एक तरफ एम्स को देश का सबसे बड़ा हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज बनाता है, तो दूसरी तरफ लॉबी, फेवरेटिज्म और नेपोटिज्म के आरोप भी लगते हैं. 25 अगस्त को एम्स में 31 पोस्ट के लिए सहायक प्रोफेसर पद पर नियुक्त के लिए रिक्तियां निकाली गई. रिक्तियों के लिए साक्षात्कार का आयोजन किया गया था, इनमें से 7 सीटों पर सीधे प्रोफेसर पद की नियुक्ति के लिए और 24 सीटों पर सहायक प्रोफेसर को नियुक्त किया जाना था.
एम्स के दो पूर्व-छात्र भी सहायक प्रोफेसर पद पर नियुक्ति पाने के लिए साक्षात्कार देने के लिए पहुंचे. इनमें से एक छात्र डॉ. हरीजीत सिंह भट्टी जिरियाट्रिक डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर के पद पर अनुसूचित जाति के तहत आरक्षित सीट के लिए अकेला उम्मीदवार साक्षात्कार में पहुंचे. दूसरा छात्र डॉ. अरुण पांडे दिव्यांग श्रेणी के तहत आरक्षित ऑर्थोपेडिक डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर पद के लिए साक्षात्कार देने आए. दुखद यह है कि इन दोनों ही छात्रों को उनकी आरक्षित सीटों पर नियुक्ति के लिए उन्हें योग्य नहीं माना गया.
एम्स के पूर्व छात्र रह चुके हैं
दिलचस्प यह है कि ये दोनों ही डॉक्टर एम्स के पूर्व छात्र रहे हैं और रेजीडेंसी के दौरान रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के जिम्मेदार पद पर थे. डॉ. हरीजीत सिंह भाटी 2017-18 के दौरान एम्स आरडीए के अध्यक्ष और अरुण पांडे महासचिव थे.
ये दोनों ही डॉक्टर सिलेक्शन कमिटी और प्रशासन पर यह आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें इसलिए अयोग्य करार दिया गया है, क्योंकि एम्स रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के जब वे अध्यक्ष और महासचिव थे तो उस दौरान उन्होंने छात्रों के हित में एम्स प्रशासन पर दबाव बनाया. छात्र की आवाज उठाना उनका काम था, लेकिन बदले की भावना से जब उसी हॉस्पिटल में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम करने के लिए अवसर मिला तो गलत तरीके से उन्हें अयोग्य करार दे दिया गया.
'संविधान के खिलाफ एम्स प्रशासन'
डॉ. हरजीत सिंह ने बताया कि अनुसूचित जाति के डिपार्टमेंट में सहायक प्रोफेसर पद के लिए अस्थाई तौर पर नियुक्ति के लिए लिए गए साक्षात्कार में वह अकेले व्यक्ति थे, जो आरक्षित वर्ग से आते हैं. इसके बावजूद हमें अयोग्य करार देते हुए उस पद को खाली छोड़ दिया गया.
यह कहां का न्याय है? इसी संस्थान से एमडी की पढ़ाई पूरी की इसी संस्थान ने उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए अवार्ड से नवाजा. अच्छे चाल चलन का सर्टिफिकेट दिया और जब सहायक प्रोफेसर के तौर पर सेवा देने की बारी आई तो उन्हें एक झटके में अयोग्य करार देते हुए उनसे एक अवसर छीन लिया गया.
एससी एसटी आयोग में शिकायत
डॉ. भट्टी में बताया कि हमें इसीलिए अयोग्य करार दिया गया क्योंकि आरडीए के प्रेसिडेंट के तौर पर हम अधिक वोकल थे और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक थे. प्रशासन ने हमसे हमारा अधिकार छीना है. डॉ. हरजीत सिंह ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने एससी एसटी आयोग में शिकायत कर दी है. आयोग ने प्रशासन को नोटिस भी भेज दिया है और 1 महीने के भीतर जवाब देने को कहा है. दूसरी तरफ एक एनजीओ ने भी एम्स से सूचना के अधिकार के तहत इस संबंध में जानकारी मांगी है.
तमाम योग्यताओं के बावजूद कैसे किए गए अयोग्य?
डॉ. हरीजीत ने बताया कि उन्होंने एम्स से जिरियाट्रिक मेडिसिन में एमडी की पढ़ाई की और यहीं से 3 साल की सीनियर रेजिडेंसी की. एम्स ने जिरियाट्रिक डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर एक पोस्ट के लिए वैकेंसी निकाली थी, जो अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित था. 25 अगस्त को हुए साक्षात्कार में पहुंचने वाला इस पद के लिए एकमात्र योग्य व्यक्ति थे. साक्षात्कार मेरे बहुत अच्छे हुए. 5 सवाल पूछे गए इनमें से 4 सवालों के जवाब दिए. परीक्षक भी मेरे दिए गए उत्तर से बहुत खुश थे. बहुत दुख हुआ जब साक्षात्कार के बाद मुझे बताया गया कि मैं जिस पद पर जॉब के लिए साक्षात्कार देने आया था, उसे खाली छोड़ दिया गया और मुझे अयोग्य करार दिया गया.
एम्स से ही पढ़ाई करने और सीनियर रेजिडेंसी पूरा करने के बावजूद सहायक प्रोफेसर के लिए कैसे अयोग्य हो सकते हैं? एमडी की परीक्षा बहुत अच्छे अंक से पास किया. सीनियर रेजिडेंसी में एम्स ने खुद अच्छे चाल चलन का प्रमाण पत्र दिया. जब योग्यता के सारे मापदंड हम पूरी कर रहे थे, तो किस आधार पर अयोग्य करार दिया गया?
'इसलिए किये गए अयोग्य करार'
डॉ. भट्टी ने बताया कि जब इस बारे में मैंने ज्यादा छानबीन की तो मुझे पता चला कि क्योंकि मैं एक्टिविज्म करता हूं. रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन का प्रेसिडेंट भी रहा हूं. जेंडर और कास्ट के मुद्दों को उठाते रहा हूं. छात्रों के हितों में सरकार से सवाल पूछता रहा हूं. यही मुझे अयोग्य करार देने के लिए क्राइटेरिया था. इसी वजह से मुझे किसी भी सरकारी संस्थान में काम करने के लिए अयोग्य बताया गया.
मानवाधिकार आयोग शिकायत, एम्स को नोटिस
डॉ. भट्टी ने बताया कि इस बात से मैं काफी आहत हुआ और इसकी शिकायत मैंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अनुसूचित जाति आयोग में की. इन दोनों ही जगहों से एम्स को नोटिस जारी किया गया है. उन्होंने सवाल किया है कि सवाल सरकार से पूछना क्या योग्यता की कैटेगरी में आता है? क्या एम्स उसे ही नौकरी पर रखेगा जो सरकार की विचारधारा के साथ चलता हो.