नई दिल्ली/देहरादून: केजरीवाल सरकार की शिक्षा नीति ने बीजेपी को भी अपना कायल कर दिया है. यही कारण है कि उत्तराखंड की बीजेपी सरकार भी अपने यहां शिक्षा व्यवस्था को बेहतर करने के लिए दिल्ली सरकार का मॉडल अपनाने जा रही है. त्रिवेंद्र सरकार ने तो इसके लिए अपनी तैयारी भी शुरू कर दी है.
राजनीति में अरविंद केजरीवाल भले ही बीजेपी के धुर विरोधी दिखाई देते हो लेकिन हकीकत ये है कि केजरीवाल सरकार की शिक्षा नीति बाकी राज्यों के लिए प्रेरणा बन गयी है. न केवल गैर बीजेपी सरकारों वाले राज्य के लिए बल्कि बीजेपी शासित राज्य भी दिल्ली सरकार के शिक्षा मॉडल को अपनाने लगे हैं.
जानकारी के अनुसार, उत्तराखंड समेत देश के कई बीजेपी शासित राज्य हैं जो दिल्ली सरकार की शिक्षा नीति को लेकर वहां का दौरा कर चुके हैं. अबतक कुल 11 राज्यों के अधिकारी दिल्ली में जाकर वहां की बदली हुई शिक्षा व्यवस्था का अध्ययन कर चुके हैं. हाल ही में उत्तराखंड के 10 सदस्य प्रतिनिधिमंडल ने भी दिल्ली का दौरा किया था. इस दौरान अधिकारियों ने वहां की शिक्षा व्यवस्था को जानने की कोशिश की है. शिक्षा सचिव मीनाक्षी सुंदरम की अध्यक्षता में गए इस प्रतिनिधिमंडल ने केजरीवाल सरकार की शिक्षा नीति को बेहद उपयोगी और शिक्षा व्यवस्था में एक बड़े बदलाव के रूप में देखा है.
दिल्ली का दौरा कर वापस लौटे शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो उत्तराखंड और दिल्ली के शैक्षिक हालात में काफी ज्यादा अतंर है. सुविधाओं की बात की जाए तो दिल्ली उत्तराखंड से काफी आगे है. केजरीवाल सरकार जहां शिक्षा पर 26 फीसदी बजट खर्च करती है, वहीं उत्तराखंड में महज 16 प्रतिशत बजट ही शिक्षा पर खर्च किया जाता है. इसका अधिकांश हिस्सा शिक्षकों और विभागीय अधिकारियों की सैलरी पर खर्च हो जाता है.
शिक्षा निदेशक सीमा जौनसारी ने बताया कि उत्तराखंड और दिल्ली के इंफ्रास्ट्रक्चर काफी अलग है लेकिन फिर भी विभाग कई बातों पर ध्यान देने जा रहा है और कुछ फैसलों को लागू करवाने पर विचार किया जाएगा, जैसे-
- स्कूलों के 6 क्लस्टर पर एक मेंटोर टीचर रखने
- ऑनलाइन ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने
- बच्चों के लिए हैप्पीनेस प्रोग्राम चलाने
- प्रिंसिपल को खर्चे के लिए एक विशेष बजट का प्रावधान करने
- गेस्ट टीचर की भर्ती का प्रिंसिपल को अधिकार देने
गौर हो कि उत्तराखंड में शिक्षा का हाल किसी से छुपा नहीं है. शिक्षकों की कमी, जर्जर स्कूल भवन, बजट की कमी और स्कूल छोड़ते नौनिहाल, ये सब वो बिंदु हैं जो सूबे में शिक्षा का हालात बयां करती है. राज्य में न केवल पहाड़ी जिलों में बल्कि मैदानी जनपद में भी सरकारी स्कूलों की तस्वीर ज्यादा अलग नहीं है. हालांकि, राज्य बनने के 18 साल बाद ही सही लेकिन शिक्षा विभाग ने व्यवस्था को सुधारने की पहल तो की.
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