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मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति बिल का राज्यसभा में AAP ने किया विरोध, कहा- BJP चुनाव आयोग पर कब्जा जमाना चाहती है - Chief Election Commissioner

Chief Election Commissioner Appointment Bill: आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद राघव चढ्ढा ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति बिल का सदन में विरोध किया. उन्होंने भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि वो चुनाव आयोग पर कब्जा जमाना चाहते हैं. यह बिल देश में चुनाव आयोग जैसे एक स्वतंत्र संस्थान को खत्म कर देगा.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Dec 12, 2023, 8:38 PM IST

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने मंगलवार को सदन के अंदर मुख्य चुनाव आयुक्त समेत अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादित बिल का विरोध किया. राघव ने कहा कि भाजपा यह बिल लाकर चुनाव आयोग पर कब्जा करना चाहती है. इसके पास होने से मुख्य चुनाव आयुक्त समेत दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगी. तब वो अपनी मर्जी से किसी का भी चयन कर सकते हैं.

राघव चड्ढा ने कहा कि हमारे देश के चुनावों में चुनाव आयोग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. किसका वोट बनेगा या कटेगा, किस तारीख को और कितने चरण में चुनाव होगा, यह चुनाव आयोग तय करता है. ईवीएम मशीन कहां-कहां भेजी जाएंगी, उसका नियंत्रण, मैनेजमेंट, योग और प्रयोग सब कुछ चुनाव आयोग तय करता है. यह आयोग इस देश में निष्पक्षता से चुनाव कराने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था है. यह बिल देश में चुनाव आयोग जैसे एक स्वतंत्र संस्थान को खत्म कर देगा, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव खतरे में आ जाएगा.

  • चुनाव आयुक्त बिल लाकर BJP ने तीन व्यक्तियों/संस्थानों का अपमान किया है -

    1. माननीय सुप्रीम कोर्ट
    2. ⁠माननीय Chief Justice of India
    3. ⁠BJP नेता लाल कृष्ण आडवाणी जी pic.twitter.com/00WdCyXob1

    — Raghav Chadha (@raghav_chadha) December 12, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादास्पद बिल को लेकर राघव चड्ढा ने भाजपा से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या भाजपा देश में निष्पक्ष चुनाव खत्म करना चाहती है? क्या भाजपा की सरकार लोकतंत्र की कोई अहमियत नहीं समझती है? क्या भाजपा के लिए संवैधानिक संस्थाओं की कोई अहमियत नहीं है, क्या भाजपा हर संवैधानिक संस्थान को अपनी कठपुतली बनाना चाहती है? क्या भाजपा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं करती है या उसकी कोई अहमियत नहीं समझती है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो यह बिल पढ़ने के बाद खड़े हो रहे हैं. इस बिल के माध्यम से यह सरकार चुनाव आयोग को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना चाहती है.

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि यह बिल तीन व्यक्ति या संस्थान का अपमान करता है. इससे पहला अपमान सुप्रीम कोर्ट का होता है. क्योंकि इसी साल 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया कि चुनाव आयोग की नियुक्ति में किसी भी तरह का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. साथ ही हस्तक्षेप को खत्म करने के लिए एक समिति का गठन किया था. सरकार उस समिति में मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को डालकर उसका संतुलन बिगाड़ रही है. यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश है जिससे ये जिसे चाहें उसे मुख्य चुनाव आयुक्त बना सकते हैं.

इसे सुप्रीम कोर्ट का अपमान इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इसी साल संवैधानिक पीठ द्वारा सर्वसम्मति से दिए गए दो फैसलों को सरकार ने सदन में बिल लाकर बदल दिया है. पहला दिल्ली सेवा बिल था, जिसे आठ दिन के अंदर ऑर्डिनेंस लाकर और फिर सदन में बिल लाकर बदला गया. इसके बाद अब यह बिल जो सुप्रीम कोर्ट के इस साल के 2 मार्च को दिए गए फैसले को पलटता है. यह सरकार इस बिल के जरिए सुप्रीम कोर्ट को खुली चुनौती दे रही है कि आप जो भी फैसला दें, अगर हमें पसंद नहीं आएगा तो हम बिल लाकर उस फैसले को बदल देंगे.

आप सांसद ने कहा कि इस बिल से दूसरा अपमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला चयन समिति में तीन सदस्यों के होने की बात कहता है. जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और तीसरे खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होंगे. इस बिल के माध्यम से सरकार ने चीफ जस्टिस को हटाकर एक कैबिनेट मंत्री को चयन समिति का हिस्सा बना दिया. इससे यह साफ होता है कि यह बिल सीधे-सीधे चीफ जस्टिस को समिति से बाहर करने के लिए लाया गया है. इस देश में समय-समय पर चुनाव सुधार के लिए समितियां बनी हैं. जिसमें अधिकांश समितियों ने चाहें वो तारकोंडे कमेटी, दिनेश गोस्वामी कमेटी, वोहरा कमेटी, इंद्रजीत गुप्ता कमेटी, जीवन रेड्डी कमेटी या फिर इसी सरकार की लॉ कमीशन की रिपोर्ट हो, सबने यही निष्कर्ष दिया है कि चीफ जस्टिस को चयन समिति का सदस्य जरूर होना चाहिए.

आप सांसद ने कहा कि इस बिल के जरिए भाजपा सरकार खुद अपनी पार्टी के संस्थापक सदस्य लाल कृष्ण आडवाणी का भी अपमान कर रही है. 2 जून 2012 को लाल कृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि देश के चुनावों में चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है. उसकी नियुक्ती पर एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है. उसकी नियुक्ति सरकार के हाथों में नहीं होनी चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा था कि यह चयन समिति पांच सदस्यों की होनी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष लोकसभा और राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और कानून मंत्री होने चाहिए.

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि आज मुख्यतः तीन कारणों से पूरा विपक्षी दल इस बिल का विरोध कर रहा है. पहला कारण है कि यह बिल पूरी तरह से गैरकानूनी है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार को नजरअंदाज करते हुए उसे पलटा नहीं जा सकता है. इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूलभूत भावना को इस बिल के जरिए चोट पहुंचाई है और चुनाव आयोग की निष्पक्षता को भंग किया है. दूसरा कारण, यह बिल संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बात कही गई है. अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं होगा तो चुनाव के नतीजे भी प्रभावित होंगे. वहीं, चड्ढा ने इस बिल के विरोध का तीसरा कारण बताया कि चयन समिति में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है. क्योंकि सारे फैसले सरकार के पक्ष में होंगे, नेता प्रतिपक्ष को केवल नाम के लिए इसमें जगह दी गई है.

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा ने मंगलवार को सदन के अंदर मुख्य चुनाव आयुक्त समेत अन्य चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादित बिल का विरोध किया. राघव ने कहा कि भाजपा यह बिल लाकर चुनाव आयोग पर कब्जा करना चाहती है. इसके पास होने से मुख्य चुनाव आयुक्त समेत दो अतिरिक्त चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगी. तब वो अपनी मर्जी से किसी का भी चयन कर सकते हैं.

राघव चड्ढा ने कहा कि हमारे देश के चुनावों में चुनाव आयोग की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. किसका वोट बनेगा या कटेगा, किस तारीख को और कितने चरण में चुनाव होगा, यह चुनाव आयोग तय करता है. ईवीएम मशीन कहां-कहां भेजी जाएंगी, उसका नियंत्रण, मैनेजमेंट, योग और प्रयोग सब कुछ चुनाव आयोग तय करता है. यह आयोग इस देश में निष्पक्षता से चुनाव कराने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्था है. यह बिल देश में चुनाव आयोग जैसे एक स्वतंत्र संस्थान को खत्म कर देगा, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव खतरे में आ जाएगा.

  • चुनाव आयुक्त बिल लाकर BJP ने तीन व्यक्तियों/संस्थानों का अपमान किया है -

    1. माननीय सुप्रीम कोर्ट
    2. ⁠माननीय Chief Justice of India
    3. ⁠BJP नेता लाल कृष्ण आडवाणी जी pic.twitter.com/00WdCyXob1

    — Raghav Chadha (@raghav_chadha) December 12, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े विवादास्पद बिल को लेकर राघव चड्ढा ने भाजपा से प्रश्न करते हुए कहा कि क्या भाजपा देश में निष्पक्ष चुनाव खत्म करना चाहती है? क्या भाजपा की सरकार लोकतंत्र की कोई अहमियत नहीं समझती है? क्या भाजपा के लिए संवैधानिक संस्थाओं की कोई अहमियत नहीं है, क्या भाजपा हर संवैधानिक संस्थान को अपनी कठपुतली बनाना चाहती है? क्या भाजपा सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान नहीं करती है या उसकी कोई अहमियत नहीं समझती है? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जो यह बिल पढ़ने के बाद खड़े हो रहे हैं. इस बिल के माध्यम से यह सरकार चुनाव आयोग को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में लेना चाहती है.

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि यह बिल तीन व्यक्ति या संस्थान का अपमान करता है. इससे पहला अपमान सुप्रीम कोर्ट का होता है. क्योंकि इसी साल 2 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से यह फैसला दिया कि चुनाव आयोग की नियुक्ति में किसी भी तरह का सरकारी हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए. साथ ही हस्तक्षेप को खत्म करने के लिए एक समिति का गठन किया था. सरकार उस समिति में मुख्य न्यायाधीश की जगह एक कैबिनेट मंत्री को डालकर उसका संतुलन बिगाड़ रही है. यह सीधे तौर पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटकर एक ऐसी व्यवस्था बनाने की कोशिश है जिससे ये जिसे चाहें उसे मुख्य चुनाव आयुक्त बना सकते हैं.

इसे सुप्रीम कोर्ट का अपमान इसलिए किया जा रहा है क्योंकि इसी साल संवैधानिक पीठ द्वारा सर्वसम्मति से दिए गए दो फैसलों को सरकार ने सदन में बिल लाकर बदल दिया है. पहला दिल्ली सेवा बिल था, जिसे आठ दिन के अंदर ऑर्डिनेंस लाकर और फिर सदन में बिल लाकर बदला गया. इसके बाद अब यह बिल जो सुप्रीम कोर्ट के इस साल के 2 मार्च को दिए गए फैसले को पलटता है. यह सरकार इस बिल के जरिए सुप्रीम कोर्ट को खुली चुनौती दे रही है कि आप जो भी फैसला दें, अगर हमें पसंद नहीं आएगा तो हम बिल लाकर उस फैसले को बदल देंगे.

आप सांसद ने कहा कि इस बिल से दूसरा अपमान चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया का है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला चयन समिति में तीन सदस्यों के होने की बात कहता है. जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और तीसरे खुद चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया होंगे. इस बिल के माध्यम से सरकार ने चीफ जस्टिस को हटाकर एक कैबिनेट मंत्री को चयन समिति का हिस्सा बना दिया. इससे यह साफ होता है कि यह बिल सीधे-सीधे चीफ जस्टिस को समिति से बाहर करने के लिए लाया गया है. इस देश में समय-समय पर चुनाव सुधार के लिए समितियां बनी हैं. जिसमें अधिकांश समितियों ने चाहें वो तारकोंडे कमेटी, दिनेश गोस्वामी कमेटी, वोहरा कमेटी, इंद्रजीत गुप्ता कमेटी, जीवन रेड्डी कमेटी या फिर इसी सरकार की लॉ कमीशन की रिपोर्ट हो, सबने यही निष्कर्ष दिया है कि चीफ जस्टिस को चयन समिति का सदस्य जरूर होना चाहिए.

आप सांसद ने कहा कि इस बिल के जरिए भाजपा सरकार खुद अपनी पार्टी के संस्थापक सदस्य लाल कृष्ण आडवाणी का भी अपमान कर रही है. 2 जून 2012 को लाल कृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर कहा था कि देश के चुनावों में चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका है. उसकी नियुक्ती पर एक प्रश्न चिन्ह लगा हुआ है. उसकी नियुक्ति सरकार के हाथों में नहीं होनी चाहिए. साथ ही उन्होंने कहा था कि यह चयन समिति पांच सदस्यों की होनी चाहिए, जिसमें प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष लोकसभा और राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और कानून मंत्री होने चाहिए.

सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि आज मुख्यतः तीन कारणों से पूरा विपक्षी दल इस बिल का विरोध कर रहा है. पहला कारण है कि यह बिल पूरी तरह से गैरकानूनी है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार को नजरअंदाज करते हुए उसे पलटा नहीं जा सकता है. इन लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की मूलभूत भावना को इस बिल के जरिए चोट पहुंचाई है और चुनाव आयोग की निष्पक्षता को भंग किया है. दूसरा कारण, यह बिल संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की बात कही गई है. अगर चुनाव आयोग निष्पक्ष नहीं होगा तो चुनाव के नतीजे भी प्रभावित होंगे. वहीं, चड्ढा ने इस बिल के विरोध का तीसरा कारण बताया कि चयन समिति में सुधार की कोई गुंजाइश नहीं है. क्योंकि सारे फैसले सरकार के पक्ष में होंगे, नेता प्रतिपक्ष को केवल नाम के लिए इसमें जगह दी गई है.

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