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उपराज्यपाल के पास पसंद और नापसंद की कोई शक्ति नहीं: AAP

आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना संविधान से ऊपर उठकर काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनके पास इतनी शक्ति भी नहीं है कि वह कहे कि यह मुझे पसंद नहीं है. उनके पास पसंद और नापसंद करने की शक्ति नहीं है. वह फाइल को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. वह तय करेंगे कि मैं उन्हें पसंद है या नहीं है.

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Published : Jan 15, 2023, 6:54 PM IST

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना कह रहे हैं कि वह संवैधानिक पीठ के फैसले को नहीं मानेंगे. क्या ऐसा व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकता है, जो खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं है. मुख्यमंत्री ने एलजी को संवैधानिक पीठ का फैसला दिखाकर कहा कि आप सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन कर रहे हैं तो उपराज्यपाल कहते हैं यह सुप्रीम कोर्ट की सलाह है. अगर उपराज्यपाल को कानून नहीं पता तो ये कोई बचाव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का लिखा हुआ ऑर्डर होता है, सलाह नहीं.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है. उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें. वह सिर्फ वहीं करेंगे, जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी. उपराज्यपाल को चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही सलाह दे सकती है. उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें.

सीएम और एलजी की मुलाकात हुईः आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल विनय सक्सेना की शुक्रवार को मुलाकात हुई. उस मुलाकात में मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल को बताया कि आप फाइलों को सीधे मंगवा रहे हैं, विकास कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं. जबकि दिल्ली के अंदर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ तीन चीजें पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है. इसके अलावा सभी मामले शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली, पर्यटन सहित अन्य मामलों में उपराज्यपाल की शक्तियां बहुत सीमित हैं.

उन्होंने कहा कि वह इतनी सीमित है कि उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें और निरस्त कर सकें. वह सिर्फ वहीं करेंगे जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी. अगर उससे ऐतराज है तो वह निरस्त नहीं कर सकते हैं. वह सिर्फ राष्ट्रपति को भेज सकते हैं. उनके पास इतनी शक्ति भी नहीं है कि वह कहें कि यह मुझे पसंद नहीं है. उनके पास पसंद और नापसंद करने की शक्ति नहीं है. वह फाइल को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. वह तय करेंगे कि मैं उन्हें पसंद है या नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट कब से सलाह देने लगाः सौरभ भारद्वाज ने कहा कि मुझे नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट कब से सलाह देने लगा है. सुप्रीम कोर्ट का लिखा एक-एक शब्द का फैसला ही निर्देश होता है. अगर उपराज्यपाल को कोई सलाह दे सकता है तो चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही दे सकती है. उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें. उनके लिए सलाह बाध्यता होती है.

ये भी पढ़ेंः Supriya Sule Saree Caught Fire : सांसद सुप्रिया सुले की साड़ी में लगी आग

उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल कह रहे हैं कि अब वह संविधान और संविधान पीठ के फैसले को भी नहीं मानेंगे. तो क्या दिल्ली के अंदर एक ऐसे व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकते हैं, जो खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. वह कह रहे हैं कि मैं संविधान को नहीं मानूंगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानूंगा. मुख्यमंत्री ने दोनों बातें बताई हैं. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और गले उतरने वाली बात नहीं है कि संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति उपराज्यपाल, संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. संवैधानिक पीठ के फैसले को मानने को तैयार नहीं हैं.

ये भी पढ़ेंः लोक सभा में गूंजा मुद्दा, सुप्रिया सुले ने किया वित्त मंत्री की साड़ी का जिक्र

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना कह रहे हैं कि वह संवैधानिक पीठ के फैसले को नहीं मानेंगे. क्या ऐसा व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकता है, जो खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं है. मुख्यमंत्री ने एलजी को संवैधानिक पीठ का फैसला दिखाकर कहा कि आप सुप्रीम कोर्ट का उल्लंघन कर रहे हैं तो उपराज्यपाल कहते हैं यह सुप्रीम कोर्ट की सलाह है. अगर उपराज्यपाल को कानून नहीं पता तो ये कोई बचाव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का लिखा हुआ ऑर्डर होता है, सलाह नहीं.

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है. उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें. वह सिर्फ वहीं करेंगे, जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी. उपराज्यपाल को चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही सलाह दे सकती है. उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें.

सीएम और एलजी की मुलाकात हुईः आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता और विधायक सौरभ भारद्वाज ने कहा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उपराज्यपाल विनय सक्सेना की शुक्रवार को मुलाकात हुई. उस मुलाकात में मुख्यमंत्री ने उपराज्यपाल को बताया कि आप फाइलों को सीधे मंगवा रहे हैं, विकास कार्यों में अड़ंगा लगा रहे हैं. जबकि दिल्ली के अंदर लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 4 जुलाई 2018 को फैसला दिया था कि उपराज्यपाल के पास सिर्फ तीन चीजें पब्लिक ऑर्डर, पुलिस और जमीन के ऊपर राय रखने का हक है. इसके अलावा सभी मामले शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, पानी, बिजली, पर्यटन सहित अन्य मामलों में उपराज्यपाल की शक्तियां बहुत सीमित हैं.

उन्होंने कहा कि वह इतनी सीमित है कि उनके पास अपनी कोई स्वयं की शक्ति नहीं है कि वह किसी काम को रोक सकें और निरस्त कर सकें. वह सिर्फ वहीं करेंगे जो कैबिनेट और चुनी हुई सरकार कहेगी. अगर उससे ऐतराज है तो वह निरस्त नहीं कर सकते हैं. वह सिर्फ राष्ट्रपति को भेज सकते हैं. उनके पास इतनी शक्ति भी नहीं है कि वह कहें कि यह मुझे पसंद नहीं है. उनके पास पसंद और नापसंद करने की शक्ति नहीं है. वह फाइल को राष्ट्रपति के पास भेजेंगे. वह तय करेंगे कि मैं उन्हें पसंद है या नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट कब से सलाह देने लगाः सौरभ भारद्वाज ने कहा कि मुझे नहीं पता कि सुप्रीम कोर्ट कब से सलाह देने लगा है. सुप्रीम कोर्ट का लिखा एक-एक शब्द का फैसला ही निर्देश होता है. अगर उपराज्यपाल को कोई सलाह दे सकता है तो चुना हुआ मुख्यमंत्री और चुनी हुई सरकार ही दे सकती है. उपराज्यपाल के पास यह भी हक नहीं है कि वह सलाह को ना मानें. उनके लिए सलाह बाध्यता होती है.

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उन्होंने कहा कि उपराज्यपाल कह रहे हैं कि अब वह संविधान और संविधान पीठ के फैसले को भी नहीं मानेंगे. तो क्या दिल्ली के अंदर एक ऐसे व्यक्ति संवैधानिक पद पर हो सकते हैं, जो खुद संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. वह कह रहे हैं कि मैं संविधान को नहीं मानूंगा. सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नहीं मानूंगा. मुख्यमंत्री ने दोनों बातें बताई हैं. यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है और गले उतरने वाली बात नहीं है कि संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति उपराज्यपाल, संविधान को मानने के लिए तैयार नहीं हैं. संवैधानिक पीठ के फैसले को मानने को तैयार नहीं हैं.

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