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World Contraceptive Day 2023: मर्द को लगता है डर; नसबंदी में महिलाएं अव्वल, पुरुष फिसड्डी! - intrauterine contraceptive device

विश्व भर में 26 सितंबर को वर्ल्ड कॉन्ट्रासेप्टिव डे यानी विश्व गर्भनिरोधिक दिवस मनाया जाता है. इसकी शुरुआत परिवार नियोजन एजेंसियों द्वारा की गई थी.

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Sep 26, 2023, 6:12 AM IST

Updated : Sep 26, 2023, 5:53 PM IST

विश्व गर्भनिरोधक दिवस पर खास बातचीत

नई दिल्ली: देश की बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी समस्या के रूप में आ रही है. सरकार लगातार परिवार नियोजन को लेकर जागरुकता अभियान चलाती रहती है. पूरी दुनिया में 26 सितंबर को विश्व गर्भनिरोधक दिवस मनाया जाता है. लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है. इसके लिए स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में तमाम तरह के विकल्प हैं. साथ ही हर हफ्ते जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं. हालांकि, हमारे समाज में नसबंदी को लेकर कई तरह के भ्रम भी फैले हैं, जिनको लेकर लगातार जागरुकता अभियान चलाया जाता है.

इसमें भी महिलाओं ने पुरुष को छोड़ा पीछे: गाजियाबाद के सीएमओ बताते हैं कि महिलाएं ज्यादा सजग हैं. परिवार नियोजन को लेकर लगातार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए जाते हैं. तमाम कोशिश के बाद भी पुरुषों में नसबंदी को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखाई देता है. या फिर यूं कहे की महिलाओं की तुलना में पुरुष ना के बराबर नसबंदी करवाते हैं. गाजियाबाद में महिलाओं की तुलना में केवल चार प्रतिशत पुरुषों ने ही नसबंदी करवाई है.

आंकड़ों की बात करें तो 1 अप्रैल से 30 अगस्त तक गाजियाबाद में कुल 32 पुरुषों ने नसबंदी (नो स्केलपेल वेसेकटॉमी) कराई है. इसी अवधि के बीच 778 महिलाओं ने नसबंदी (ट्यूबल लिटिगेशन) कराई है. दोनों नसबंदी की स्थायी प्रक्रिया है. इसी समय में 3064 महिलाओं को अंतगर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरण लगए गए हैं. इसके अलावा 3018 महिलाओं को प्रस्वोत्तर अंतगर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरण (पीपीआईयूसीडी) और 3568 महिलाओं को अंतरा इंजेक्शन दिए गए हैं.

जनसंख्या का अर्थव्यवस्था से संबंधः CA वरुण मिश्रा बताते हैं किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का सीधा संबंध उसकी जनसंख्या से होता है. यदि किसी परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती है तो उसे परिवार के मुखिया के लिए उसे परिवार की मूलभूत सुविधाओं को पूरा करना मुश्किल होता है या फिर यूं कहें की मूलभूत सुविधाओं का अभाव हो जाता है. विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य. अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में शिक्षा का एक अहम योगदान होता है. किसी भी देश की जनसंख्या बढ़ती है तो उसे देश में विभिन्न प्रकार की जरूरत की चीजों की डिमांड भी बढ़ जाती है. कई बार चीजों को दूसरे देशों से इंपोर्ट करना पड़ता है. इसकी वजह से देश का रिजर्व घटता है. किसी भी देश की जनसंख्या उसकी अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर प्रभावित करती है.

जानें, विश्व गर्भनिरोधक दिवस का इतिहास: विश्व गर्भनिरोधक दिवस सबसे पहली बार 2007 में मनाया गया था. इस दिवस को मनाने की कवायद 2006 में शुरू हुई थी. इस दिन वर्ष 2007 में दुनिया भर की 7 परिवार नियोजन एजेंसियों ने इसको मनाने की शुरूआत की थी. हर साल इस दिवस को अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है और इसके द्वारा दुनिया को इसके महत्ता समझाने का प्रयास किया जाता है. यह दिवस एक हिस्सा है उस विश्वव्यापी अभियान का जो इस दुनिया में यह संदेश पहुंचाती है कि हर गर्भ वांछित होना चाहिए.

इस वर्ष की थीम और महत्व: विश्व गर्भनिरोधक दिवस को हर साल एक संदेश वाहक के रूप में मनाया जाता है. इसके द्वारा समाज में मांओं को एक संदेश देने को कोशिश की जाती है. वर्ष 2023 में विश्व गर्भनिरोधक दिवस की थीम है, "विकल्पों की शक्ति". इसके द्वारा समाज को उन विकल्पों के बारे में जागरूक करने की कोशिश की गई है जो इन विकल्पों के बारे में ना जानते हैं और ना ही समझते हैं. इस वर्ष इस थीम के द्वारा लोगों को अपने प्रजनन पर नियंत्रण रखने में आवश्यक भूमिका निभाने वाले विकल्पों पर प्रकाश डाला गया है.

क्यों जरूरी है गर्भनिरोधक जागरुकता: विश्व गर्भनिरोधक दिवस की जरूरत तब समाज में ज्यादा महसूस होने लगी जब इनकी जानकारी के अभाव में माताओं से नवजात में बीमारियां फैलने लगी. गर्भपात के मामले बढ़ने के बाद विशेषज्ञों को लगने लगा कि इसके बारे में बात करना जरूरी है. गर्भधारण करने से होने वाले साइड इफैक्ट ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई. इसकी एक बड़ी वजह अप्रत्यक्ष रूप से गर्भपात की समस्या को कम करना भी है.

क्या है इस दिवस का लक्ष्य: विश्व गर्भनिरोधक दिवस को भारत सरकार ने अपने विकास एजेंडा में भी शामिल किया है. इस एजेंडा में कहा गया है कि 2030 तक परिवार नियोजन, सूचना और शिक्षा सहित यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए और राष्ट्रीय रणनीतियों और प्रजनन स्वास्थ्य का एकीकरण सुनिश्चित होना चाहिए.

ये भी पढ़ें: गाजियाबादः डेंगू और मलेरिया के बढ़ते मामले को लेकर स्वास्थ्य महकमा अलर्ट, MMG अस्पताल में 24 घंटे हो रही जांच

मिलती है प्रोत्साहन राशि: डॉ रविंद्र कुमार बताते हैं पुरुषों की नसबंदी कराने की प्रक्रिया ज्यादा मुश्किल नहीं है. प्रोसीजर को पूर्ण होने में तकरीबन 15 से 20 मिनट का वक्त लगता है. पुरुषों को नसबंदी कराने पर 2,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि मिलती है. महिलाओं की नसबंदी की प्रक्रिया भी चंद मिनट की होती है. महिलाओं को नसबंदी कराने पर 1400 रुपए सरकार द्वारा दिया जाते हैं. पीपीआईयूसीडी करवाने पर 300 रुपए परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाती है.

ये भी पढ़ें: एनीमिया और कुपोषण की रोकथाम के लिए दिल्ली में जुटे दुनिया के विशेषज्ञ

विश्व गर्भनिरोधक दिवस पर खास बातचीत

नई दिल्ली: देश की बढ़ती जनसंख्या एक बड़ी समस्या के रूप में आ रही है. सरकार लगातार परिवार नियोजन को लेकर जागरुकता अभियान चलाती रहती है. पूरी दुनिया में 26 सितंबर को विश्व गर्भनिरोधक दिवस मनाया जाता है. लोगों को जागरूक करने की कोशिश की जाती है. इसके लिए स्वास्थ्य केंद्रों और अस्पतालों में तमाम तरह के विकल्प हैं. साथ ही हर हफ्ते जागरुकता अभियान चलाए जाते हैं. हालांकि, हमारे समाज में नसबंदी को लेकर कई तरह के भ्रम भी फैले हैं, जिनको लेकर लगातार जागरुकता अभियान चलाया जाता है.

इसमें भी महिलाओं ने पुरुष को छोड़ा पीछे: गाजियाबाद के सीएमओ बताते हैं कि महिलाएं ज्यादा सजग हैं. परिवार नियोजन को लेकर लगातार विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम चलाए जाते हैं. तमाम कोशिश के बाद भी पुरुषों में नसबंदी को लेकर कोई खास उत्साह नहीं दिखाई देता है. या फिर यूं कहे की महिलाओं की तुलना में पुरुष ना के बराबर नसबंदी करवाते हैं. गाजियाबाद में महिलाओं की तुलना में केवल चार प्रतिशत पुरुषों ने ही नसबंदी करवाई है.

आंकड़ों की बात करें तो 1 अप्रैल से 30 अगस्त तक गाजियाबाद में कुल 32 पुरुषों ने नसबंदी (नो स्केलपेल वेसेकटॉमी) कराई है. इसी अवधि के बीच 778 महिलाओं ने नसबंदी (ट्यूबल लिटिगेशन) कराई है. दोनों नसबंदी की स्थायी प्रक्रिया है. इसी समय में 3064 महिलाओं को अंतगर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरण लगए गए हैं. इसके अलावा 3018 महिलाओं को प्रस्वोत्तर अंतगर्भाशयी गर्भनिरोधक उपकरण (पीपीआईयूसीडी) और 3568 महिलाओं को अंतरा इंजेक्शन दिए गए हैं.

जनसंख्या का अर्थव्यवस्था से संबंधः CA वरुण मिश्रा बताते हैं किसी भी देश की अर्थव्यवस्था का सीधा संबंध उसकी जनसंख्या से होता है. यदि किसी परिवार में बच्चों की संख्या अधिक होती है तो उसे परिवार के मुखिया के लिए उसे परिवार की मूलभूत सुविधाओं को पूरा करना मुश्किल होता है या फिर यूं कहें की मूलभूत सुविधाओं का अभाव हो जाता है. विशेषकर शिक्षा और स्वास्थ्य. अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में शिक्षा का एक अहम योगदान होता है. किसी भी देश की जनसंख्या बढ़ती है तो उसे देश में विभिन्न प्रकार की जरूरत की चीजों की डिमांड भी बढ़ जाती है. कई बार चीजों को दूसरे देशों से इंपोर्ट करना पड़ता है. इसकी वजह से देश का रिजर्व घटता है. किसी भी देश की जनसंख्या उसकी अर्थव्यवस्था को सीधे तौर पर प्रभावित करती है.

जानें, विश्व गर्भनिरोधक दिवस का इतिहास: विश्व गर्भनिरोधक दिवस सबसे पहली बार 2007 में मनाया गया था. इस दिवस को मनाने की कवायद 2006 में शुरू हुई थी. इस दिन वर्ष 2007 में दुनिया भर की 7 परिवार नियोजन एजेंसियों ने इसको मनाने की शुरूआत की थी. हर साल इस दिवस को अलग-अलग थीम के साथ मनाया जाता है और इसके द्वारा दुनिया को इसके महत्ता समझाने का प्रयास किया जाता है. यह दिवस एक हिस्सा है उस विश्वव्यापी अभियान का जो इस दुनिया में यह संदेश पहुंचाती है कि हर गर्भ वांछित होना चाहिए.

इस वर्ष की थीम और महत्व: विश्व गर्भनिरोधक दिवस को हर साल एक संदेश वाहक के रूप में मनाया जाता है. इसके द्वारा समाज में मांओं को एक संदेश देने को कोशिश की जाती है. वर्ष 2023 में विश्व गर्भनिरोधक दिवस की थीम है, "विकल्पों की शक्ति". इसके द्वारा समाज को उन विकल्पों के बारे में जागरूक करने की कोशिश की गई है जो इन विकल्पों के बारे में ना जानते हैं और ना ही समझते हैं. इस वर्ष इस थीम के द्वारा लोगों को अपने प्रजनन पर नियंत्रण रखने में आवश्यक भूमिका निभाने वाले विकल्पों पर प्रकाश डाला गया है.

क्यों जरूरी है गर्भनिरोधक जागरुकता: विश्व गर्भनिरोधक दिवस की जरूरत तब समाज में ज्यादा महसूस होने लगी जब इनकी जानकारी के अभाव में माताओं से नवजात में बीमारियां फैलने लगी. गर्भपात के मामले बढ़ने के बाद विशेषज्ञों को लगने लगा कि इसके बारे में बात करना जरूरी है. गर्भधारण करने से होने वाले साइड इफैक्ट ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई. इसकी एक बड़ी वजह अप्रत्यक्ष रूप से गर्भपात की समस्या को कम करना भी है.

क्या है इस दिवस का लक्ष्य: विश्व गर्भनिरोधक दिवस को भारत सरकार ने अपने विकास एजेंडा में भी शामिल किया है. इस एजेंडा में कहा गया है कि 2030 तक परिवार नियोजन, सूचना और शिक्षा सहित यौन और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए और राष्ट्रीय रणनीतियों और प्रजनन स्वास्थ्य का एकीकरण सुनिश्चित होना चाहिए.

ये भी पढ़ें: गाजियाबादः डेंगू और मलेरिया के बढ़ते मामले को लेकर स्वास्थ्य महकमा अलर्ट, MMG अस्पताल में 24 घंटे हो रही जांच

मिलती है प्रोत्साहन राशि: डॉ रविंद्र कुमार बताते हैं पुरुषों की नसबंदी कराने की प्रक्रिया ज्यादा मुश्किल नहीं है. प्रोसीजर को पूर्ण होने में तकरीबन 15 से 20 मिनट का वक्त लगता है. पुरुषों को नसबंदी कराने पर 2,000 रुपए की प्रोत्साहन राशि मिलती है. महिलाओं की नसबंदी की प्रक्रिया भी चंद मिनट की होती है. महिलाओं को नसबंदी कराने पर 1400 रुपए सरकार द्वारा दिया जाते हैं. पीपीआईयूसीडी करवाने पर 300 रुपए परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहन राशि दी जाती है.

ये भी पढ़ें: एनीमिया और कुपोषण की रोकथाम के लिए दिल्ली में जुटे दुनिया के विशेषज्ञ

Last Updated : Sep 26, 2023, 5:53 PM IST
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