नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में आसमान आग बरसाने लगा है. अहले सुबह ही सूरज की तपिश अब बर्दाश्त के बाहर होने लगी है. ऐसे में पानी की खपत भी बढ़ रही है और लाइनें लंबी होती जा रही है, जो दिल्ली के कई इलाकों में हर सुबह पानी के टैंकर के इंतजार में लगती हैं. बढ़ती गर्मी के कारण सिर्फ लोगों की प्यास ही नहीं बढ़ रही, पेड़-पौधे भी झुलसते दिख रहे हैं, वहीं खेतों में भी दरार नजर आने लगी है.
पूर्वी दिल्ली का एक इलाका चिल्ला गांव है. चिल्ला गांव में अभी भी स्थानीय स्तर पर पानी की कोई स्थाई व्यवस्था नहीं है. लोगों को अभी भी पीने के पानी के लिए टैंकर के सहारे रहना पड़ता है. चिल्ला के कई इलाकों में टैंकर आता है, लेकिन सबसे लंबी लाइन मेन रोड पर लगती है. यहां टैंकर के इंतजार में खड़े होने वाले लोगों की बड़ी संख्या को देखते हुए प्रशासन ने सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन करने के लिए गोल घेरा बना रखा है.
बढ़े पानी की सप्लाई
सुबह 8 बजे से ही लोग उस गोल घेरे में अपनी-अपनी बोतलें रख देते हैं और फिर टैंकर के इंतजार में खड़े हो जाते हैं. यहां ईटीवी भारत से बातचीत में लोगों ने अब तक की पानी की उपलब्धता पर तो संतुष्टि जाहिर की, लेकिन यह भी कहा कि बढ़ती गर्मी के साथ पानी की सप्लाई भी बढ़नी चाहिए. हालांकि, इनकी शिकायत यह भी थी कि टैंकर कई बार समय पर नहीं आता है.
झुलसते पेड़-पौधे
इन दिनों आम लोगों के साथ-साथ पेड़-पौधों में भी पानी की जरूरत नजर आई. दिल्ली जल बोर्ड और पीडब्ल्यूडी के टैंकर आम दिनों में सड़क के बीच में डिवाइडर पर लगाए गए पेड़ पौधों को पानी देते नजर आते हैं, लेकिन कोरोना के कारण ज्यादातर टैंकर सैनेटाइजेशन के काम में लगे हुए हैं और यही कारण है कि इन पौधों को भी इन दिनों पानी नहीं मिल पा रहा है. पानी का अभाव दिल्ली के खेतों में भी नजर आया.
किसानों की बड़ी समस्या
दिल्ली में यमुना खादर इलाके में बड़े स्तर पर खेती होती है. लेकिन यहां पर सरकार की तरफ से पानी की कोई व्यवस्था नहीं है. खेती करने वाले लोग अपने तरीके से पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं. लेकिन खेत के लिए पानी से बड़ी समस्या इनके लिए पीने के पानी की है, क्योंकि इन तक टैंकर पहुंच ही नहीं पाता. यहां खेती करने वाले धुरेन्द्र महतो ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि यहां करीब 100 परिवार रहते हैं, लेकिन पानी का टैंकर आज तक नहीं आया.
चापाकल का गंदा पानी
इन लोगों ने अपनी तरफ से यहां एक चापाकल की व्यवस्था की है. लेकिन उससे भी पीला पानी आता है. ईटीवी भारत की टीम जब यहां पहुंची थी, तब वह चापाकल भी टूटा पड़ा था और लोग उसकी मरम्मत में लगे थे. लेकिन मरम्मत के बाद भी जो पानी उससे निकलेगा, उससे प्यास तो बुझ जाएगी, लेकिन जीवन के लिए वह पानी खतरा होगा, जिसके लिए जल की जरूरत पर लगातार बल दिया जाता रहा है.