नई दिल्ली/ग़ाज़ियाबाद: कहते हैं कि डूबते को तिनके का सहारा ही काफी होता. कुछ ऐसी ही कहानी है पूनम और नेहा की. गाजियाबाद के इंदिरापुरम स्थित कानावनी गांव में असमी फाउंडेशन कई सालों से महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए कवायद की जा रही है. असमी फाउंडेशन महिलाओं को हुनरमंद बना रहा है.
चंद साल पहले पूनम एक गृहणी थीं. हमेशा से ही उनके मन में कुछ करने की ललक थी. वह चाहती थीं कि वह भी अपने पैरों पर खड़े होकर आत्मनिर्भर बनें. गाजियाबाद के कानावनी स्थित असमी कौशल केंद्र से जुड़ने के बाद पूनम की जिंदगी संवरती चली गई. तकरीबन 5 साल पहले पूनम ने कौशल केंद्र को ज्वाइन किया और नि:शुल्क सिलाई कढ़ाई की ट्रेनिंग ली. साल डेढ़ साल में उन्होंने कढ़ाई और सिलाई सीखी और उसके बाद धीरे-धीरे अपना काम करना शुरू किया. शुरुआत में महीने में हजार पंद्रह सौ का ही कढ़ाई सिलाई का काम मिलता था. किसी-किसी महीने में तो काम ना के बराबर मिलता था. लेकिन पूनम ने हिम्मत नहीं हारी और वह लगन के साथ अपने काम में लगी रहीं. गुजरते वक्त के उनका साथ हुनर बेहतर होता चला गया.
मौजूदा समय में पूनम ट्रेनिंग सेंटर में दूसरी महिलाओं को कढ़ाई और सिलाई की ट्रेनिंग देती हैं, जहां उन्हें हर महीने 3000 रुपये सैलरी मिलती है. इतना ही नहीं अब पूनम के पास हर दिन करीब 500 रुपये का सिलाई का काम भी आता है. घर से ही काम कर वह हर महिने तकरीबन 10 हजार कमा लेती हैं. पूनम बताती हैं कि "हर महिला का आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है. मुझे बहुत अच्छा लगता है कि अब मैं हर महीने लगभग 15 हजार कमाती हूं और अपने पति का परिवार चलाने में सहयोग करती हूं. महिलाओं को हिम्मत नहीं हारना चाहिए. हर दिन मेहनत करते हुए आगे बढ़ने की कोशिश करनी चाहिए. कामयाबी एक दिन जरूर मिलती है. आज समाज में अपनी एक अलग पहचान है."
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पूनम कि तरह ही नेहा बानो की कहानी भी प्रेरणादायक है. चंद महीनों में नेहा बानो ने कढ़ाई का काम सीख कर खुद का इलाके में बुटीक शुरू कर लिया है. इलाके की महिलाएं सिलाई और कढ़ाई के लिए अब उनके पास काम लेकर आती हैं. हालांकि नेहा का अभी शुरुआती दौर है तो ऐसे में कमाई कम है, लेकिन नेहा को उम्मीद है कि आने वाले समय में वह और बेहतर कर सकती हैं. जहां एक तरफ नेहा खुद का काम कर रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ अपने बुटीक में करीब इलाके की 10 लड़कियों को कढ़ाई और सिलाई की ट्रेनिंग दे रही हैं.
असमी फाउंडेशन की संस्थापक डॉ. भारती गर्ग बताती हैं कि उनकी संस्था ने अब तक 200 से अधिक महिलाओं को सशक्त बनाया है. उनकी संस्था का प्रयास है की आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की महिलाओं को प्लेटफार्म उपलब्ध कराया जाए, जिससे वह अपने पैरों पर खड़ी हो सकें.
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