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गलवान घाटी के जवानों की कलाई पर सजेंगी 5 हजार राखियां, जानिए गाड़िया लोहार का इतिहास

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Published : Jul 24, 2020, 1:20 PM IST

इस साल गाड़िया लोहार समुदाय की महिलाओं द्वारा तैयार राखियां गलवान घाटी समेत पूरे लेह लद्दाख में तैनात भारतीय सैनिकों के हाथों में सजेंगी. पूर्वी दिल्ली के नंदनगरी इलाके की गाड़िया लोहार समुदाय की महिलाएं 5 हजार राखियां अपने सैनिक भाइयों की सलामती के लिए तैयार कर रही हैं.

gadiya lauhar community women of delhi are preparing rakhi for soldiers
गड़िया लोहार समाज की महिलाएं तैयार कर रही सैनिकों के लिए राखियां

नई दिल्ली: गलवान घाटी समेत पूरे लेह लद्दाख में तैनात भारतीय सैनिकों के हाथों पर इस साल गाड़िया लोहार समुदाय महिलाओं द्वारा तैयार राखियां सजेंगी. इस समुदाय की महिलाओं का कहना हैं कि इनके पूर्वज महाराणा प्रताप के सैनिकों के लिए अस्त्र-शस्त्र बनाते थे. इस साल वह अपने सैनिक भाइयों के लिए राखी भेज रही है ताकि हमारे सैनिक भाई सही सलामत रहे.

गड़िया लोहार समाज की महिलाएं तैयार कर रही सैनिकों के लिए राखियां
दिलचस्प है इतिहास
कभी महाराणा प्रताप और उनके सैनिकों के लिए अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले गड़िया लोहार समाज की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. इस समाज को मुगलों के दांत खट्टे करने वाले महान सम्राट महाराणा प्रताप का समाज कहा जाता है. बैलगाड़ी उनका घर होता है और लोहारी इनका पेशा.
इसलिए इनको गाड़िया लोहार के नाम से जाना जाता है. महाराणा प्रताप की सेना के लिए घोड़ों के नाल, तलवार और अन्य हथियार यह समाज बनाता था. इन से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया यह भी है कि मेवाड़ में महाराणा प्रताप में जब मुगलों से लोहा लिया और मेवाड़ मुगलों के कब्जे में आ गया.
तब महाराणा प्रताप की सेना में शामिल गाड़ियां लोहारों ने प्रण लिया कि जब तक मेवाड़ मुगलों से आजाद नहीं हो जाता और महाराणा गद्दी पर नहीं बैठते तब तक हम कहीं भी अपना घर नहीं बनाएंगे और अपनी मातृभूमि पर नहीं लौटेंगे. तब से आज तक अपने प्रण का पालन करते हुए गाड़िया लोहार चित्तौड़ दुर्ग पर नहीं चढ़े हैं और खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं.

भेजी जाएंगी 5000 राखियां

पूर्वी दिल्ली के नंदनगरी इलाके में सरहद पर तैनात सैनिकों के लिए राखियां बना रही गाड़िया समाज की महिलाओं ने बताया कि पहले के समय उनके पूर्वज महाराणा प्रताप के सैनिकों के लिए हथियार बनाते थे. लेकिन अभी के समय उनके पास कोई रोजगार नहीं है, जिस कारण वे खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं.


सेवा भारती संस्थान के सहयोग से वे रखी बना रही हैं, जिससे सीमा पर तैनात सैनिकों की रक्षा हो सके. महिलाओं ने बताया कि उनके द्वारा 5,000 राखियां सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए भेजी जाएंगी. जिसको बनाने के लिए प्रशिक्षण भी उन्हें सेवा भारती संस्थान द्वारा ही दिया गया है.


कलाकारी में निपुण है महिलाएं

गाड़िया समाज की महिलाओं को राखी बनाने की ट्रेनिंग दे रही सेवा भारती संस्थान से जुड़ीं राजश्री ने बताया कि इस समाज की महिलाएं कलाकारी में निपुण है. बस थोड़ी सी मेहनत के बाद ही यह रखी बनाने में पारंगत हो चुकी हैं.


उन्होंने कहा कि इस साल गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा किए गए कायराना हमले के बाद चीनी सामानों का बहिष्कार हो रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए हमने गाड़िया समाज की महिलाओं को राखी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया है और इनके द्वारा बनाई गई राखियां सीमा पर भेजी जाएगी.

नई दिल्ली: गलवान घाटी समेत पूरे लेह लद्दाख में तैनात भारतीय सैनिकों के हाथों पर इस साल गाड़िया लोहार समुदाय महिलाओं द्वारा तैयार राखियां सजेंगी. इस समुदाय की महिलाओं का कहना हैं कि इनके पूर्वज महाराणा प्रताप के सैनिकों के लिए अस्त्र-शस्त्र बनाते थे. इस साल वह अपने सैनिक भाइयों के लिए राखी भेज रही है ताकि हमारे सैनिक भाई सही सलामत रहे.

गड़िया लोहार समाज की महिलाएं तैयार कर रही सैनिकों के लिए राखियां
दिलचस्प है इतिहास
कभी महाराणा प्रताप और उनके सैनिकों के लिए अस्त्र-शस्त्र बनाने वाले गड़िया लोहार समाज की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है. इस समाज को मुगलों के दांत खट्टे करने वाले महान सम्राट महाराणा प्रताप का समाज कहा जाता है. बैलगाड़ी उनका घर होता है और लोहारी इनका पेशा.
इसलिए इनको गाड़िया लोहार के नाम से जाना जाता है. महाराणा प्रताप की सेना के लिए घोड़ों के नाल, तलवार और अन्य हथियार यह समाज बनाता था. इन से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया यह भी है कि मेवाड़ में महाराणा प्रताप में जब मुगलों से लोहा लिया और मेवाड़ मुगलों के कब्जे में आ गया.
तब महाराणा प्रताप की सेना में शामिल गाड़ियां लोहारों ने प्रण लिया कि जब तक मेवाड़ मुगलों से आजाद नहीं हो जाता और महाराणा गद्दी पर नहीं बैठते तब तक हम कहीं भी अपना घर नहीं बनाएंगे और अपनी मातृभूमि पर नहीं लौटेंगे. तब से आज तक अपने प्रण का पालन करते हुए गाड़िया लोहार चित्तौड़ दुर्ग पर नहीं चढ़े हैं और खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं.

भेजी जाएंगी 5000 राखियां

पूर्वी दिल्ली के नंदनगरी इलाके में सरहद पर तैनात सैनिकों के लिए राखियां बना रही गाड़िया समाज की महिलाओं ने बताया कि पहले के समय उनके पूर्वज महाराणा प्रताप के सैनिकों के लिए हथियार बनाते थे. लेकिन अभी के समय उनके पास कोई रोजगार नहीं है, जिस कारण वे खानाबदोश की जिंदगी जी रहे हैं.


सेवा भारती संस्थान के सहयोग से वे रखी बना रही हैं, जिससे सीमा पर तैनात सैनिकों की रक्षा हो सके. महिलाओं ने बताया कि उनके द्वारा 5,000 राखियां सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए भेजी जाएंगी. जिसको बनाने के लिए प्रशिक्षण भी उन्हें सेवा भारती संस्थान द्वारा ही दिया गया है.


कलाकारी में निपुण है महिलाएं

गाड़िया समाज की महिलाओं को राखी बनाने की ट्रेनिंग दे रही सेवा भारती संस्थान से जुड़ीं राजश्री ने बताया कि इस समाज की महिलाएं कलाकारी में निपुण है. बस थोड़ी सी मेहनत के बाद ही यह रखी बनाने में पारंगत हो चुकी हैं.


उन्होंने कहा कि इस साल गलवान घाटी में चीनी सैनिकों द्वारा किए गए कायराना हमले के बाद चीनी सामानों का बहिष्कार हो रहा है. इसी को ध्यान में रखते हुए हमने गाड़िया समाज की महिलाओं को राखी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया है और इनके द्वारा बनाई गई राखियां सीमा पर भेजी जाएगी.

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