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पर्यावरण दिवस: 'मौत का दरिया' बनती जीवनदायिनी हिंडन नदी, देखिए स्पेशल रिपोर्ट

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Published : Jun 5, 2020, 10:18 AM IST

आज विश्व पर्यावरण दिवस है. इस दिन हम अपने पर्यावरण को संरक्षित करने का संकल्प लेते हैं, लेकिन आज भी लाखों आबादी के लिए जीवन दायिनी हिंडन नदी अब अकाल मौत का दरिया बनती जा रही है. सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे ताकि नदी को नाले में तब्दील होने से बचाया जा सके.

world environment day hindon river condition is still in bad condition
हिंडन नदी की खराब हालत पर सरकार को लेने होंगे ठोस कदम

नई दिल्ली: हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पर्यावरण के संरक्षण को लेकर सरकारें तमाम दावे तो करती हैं, लेकिन धरातल पर सरकार के दावे खोखले नजर आते हैं.

हिंडन नदी की खराब हालत पर सरकार को लेने होंगे ठोस कदम

लाखों की आबादी के लिए जीवन दायिनी हिंडन नदी अब अकाल मौत का दरिया बनती जा रही है. हिंडन नदी सहारनपुर से निकलकर गाजियाबाद होते हुए गौतमबुद्ध नगर होते हुए यमुना नदी में मिल जाती है या फिर यूं कहें कि हिंडन नदी को यमुना की सहायक नदी कहा जाता है.



नदी की धारा हुई मैली

एक समय था जब हिंडन नदी को हरनदी के नाम से जाना जाता था. करीब तीन से चार दशक पहले हिंडन नदी का पानी काफी निर्मल हुआ करता था. लोग हिंडन नदी के पानी को घरेलू कामकाज समेत खाने-पीने में इस्तेमाल करते थे.

लेकिन जैसे-जैसे विकास की धारा बहने शुरू हुई, औद्योगिकरण हुआ, वैसे-वैसे हिंडन नदी की धारा मैली होनी शुरू होती गई. आज हिंडन नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.

हिंडन जल बिरादरी के नोएडा-गाजियाबाद कॉर्डिनेटर, विक्रांत ने बताया 1980 और 90 के दशक में लोग हिंडन नदी में नहाने आया करते थे. इस नदी में कछुए, मछलियां समेत कई प्रकार के वन्य जीवन थे.

औद्योगिकरण के साथ नाली में बदली

पिछले 25 से 30 साल में हिंडन नदी के आसपास औद्योगिकरण हुआ. चीनी मिलें और डिस्टिलरी लगी, शहरों के नाले नदी में छोड़े गए. जिसके बाद नदी नाले में परिवर्तित होती चली गई. अब नदी में कोई विशेष वन्यजीवन नहीं बचा है.

कभी-कभी मछली जरूर दिखाई देती है. कछुए मर चुके हैं. अब पक्षी भी बहुत कम यहां आते हैं. कभी हिंडन नदी पर साइबेरियन बर्ड्स आती थी, बत्तखें तैरती दिखाई देती थीं और कई प्रकार के सारस नदी के आसपास दिखाई पड़ते थे.

विक्रांत ने बताया कि नदी में आज सैकड़ों गंदे नालों का पानी गिरता है. साथ ही कई फैक्ट्रियों का औद्योगिक अपशिष्ट, जिसमें खतरनाक केमिकल होते हैं. नदी में छोड़ दिया जाता है. उनका कहना था कि कोविड-19 को लेकर लॉकडाउन के चलते तमाम फैक्ट्रियां बंद थी.

इस दौरान खतरनाक केमिकल वाला फैक्ट्रियों का अपशिष्ट नदी में गिरना बंद हो गया. जिसके बाद नदी के पानी में से बदबू काफी हद तक कम हो गई थी लेकिन बीते दो हफ्तों से फैक्ट्रियों का संचालन शुरू हो गया और नदी के पानी में सर बदबू आने लगी.



हिंडन नदी का पानी आज काला पड़ चुका है. पानी से दुर्गंध आती है. नदी के पास चंद मिनट खड़ा होना मुश्किल हो जाता है. केवल नदी की नहीं बल्कि हिंडन की बात करें तो यहां पर भी गंदगी का अंबार लगा हुआ है.

सरकार द्वारा अगर जल्द हिंडन नदी की ओर ध्यान नहीं दिया गया और इसकी साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो जल्द नदी नाले में तब्दील हो सकती है.

नई दिल्ली: हर साल 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है. पर्यावरण के संरक्षण को लेकर सरकारें तमाम दावे तो करती हैं, लेकिन धरातल पर सरकार के दावे खोखले नजर आते हैं.

हिंडन नदी की खराब हालत पर सरकार को लेने होंगे ठोस कदम

लाखों की आबादी के लिए जीवन दायिनी हिंडन नदी अब अकाल मौत का दरिया बनती जा रही है. हिंडन नदी सहारनपुर से निकलकर गाजियाबाद होते हुए गौतमबुद्ध नगर होते हुए यमुना नदी में मिल जाती है या फिर यूं कहें कि हिंडन नदी को यमुना की सहायक नदी कहा जाता है.



नदी की धारा हुई मैली

एक समय था जब हिंडन नदी को हरनदी के नाम से जाना जाता था. करीब तीन से चार दशक पहले हिंडन नदी का पानी काफी निर्मल हुआ करता था. लोग हिंडन नदी के पानी को घरेलू कामकाज समेत खाने-पीने में इस्तेमाल करते थे.

लेकिन जैसे-जैसे विकास की धारा बहने शुरू हुई, औद्योगिकरण हुआ, वैसे-वैसे हिंडन नदी की धारा मैली होनी शुरू होती गई. आज हिंडन नदी अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही है.

हिंडन जल बिरादरी के नोएडा-गाजियाबाद कॉर्डिनेटर, विक्रांत ने बताया 1980 और 90 के दशक में लोग हिंडन नदी में नहाने आया करते थे. इस नदी में कछुए, मछलियां समेत कई प्रकार के वन्य जीवन थे.

औद्योगिकरण के साथ नाली में बदली

पिछले 25 से 30 साल में हिंडन नदी के आसपास औद्योगिकरण हुआ. चीनी मिलें और डिस्टिलरी लगी, शहरों के नाले नदी में छोड़े गए. जिसके बाद नदी नाले में परिवर्तित होती चली गई. अब नदी में कोई विशेष वन्यजीवन नहीं बचा है.

कभी-कभी मछली जरूर दिखाई देती है. कछुए मर चुके हैं. अब पक्षी भी बहुत कम यहां आते हैं. कभी हिंडन नदी पर साइबेरियन बर्ड्स आती थी, बत्तखें तैरती दिखाई देती थीं और कई प्रकार के सारस नदी के आसपास दिखाई पड़ते थे.

विक्रांत ने बताया कि नदी में आज सैकड़ों गंदे नालों का पानी गिरता है. साथ ही कई फैक्ट्रियों का औद्योगिक अपशिष्ट, जिसमें खतरनाक केमिकल होते हैं. नदी में छोड़ दिया जाता है. उनका कहना था कि कोविड-19 को लेकर लॉकडाउन के चलते तमाम फैक्ट्रियां बंद थी.

इस दौरान खतरनाक केमिकल वाला फैक्ट्रियों का अपशिष्ट नदी में गिरना बंद हो गया. जिसके बाद नदी के पानी में से बदबू काफी हद तक कम हो गई थी लेकिन बीते दो हफ्तों से फैक्ट्रियों का संचालन शुरू हो गया और नदी के पानी में सर बदबू आने लगी.



हिंडन नदी का पानी आज काला पड़ चुका है. पानी से दुर्गंध आती है. नदी के पास चंद मिनट खड़ा होना मुश्किल हो जाता है. केवल नदी की नहीं बल्कि हिंडन की बात करें तो यहां पर भी गंदगी का अंबार लगा हुआ है.

सरकार द्वारा अगर जल्द हिंडन नदी की ओर ध्यान नहीं दिया गया और इसकी साफ-सफाई और स्वच्छता को लेकर ठोस कदम नहीं उठाए गए तो जल्द नदी नाले में तब्दील हो सकती है.

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