नई दिल्ली: जहां एक तरफ देशभर में भू-जल की कमी की चर्चाएं जोरों पर हैं, वहीं दूसरी तरफ रेलवे भूजल को बचाने के प्रयासों में लगी हुई है. उत्तर रेलवे का ऐसा ही एक प्रयास दिल्ली के शकूरबस्ती इलाके में कारगर साबित हुआ है. जिसके चलते रोजाना लाखों लीटर पानी की बचत हो रही है. ये उत्तर रेलवे का पहला ऑटोमेटेड वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट एंड रीसाइकिलिंग वाशिंग प्लांट है.
शकूरबस्ती में वाशिंग लाइन की शुरुआत
बता दें कि शकूरबस्ती इलाके में पानी की पहले ही कमी है. इसी को देखते हुए यहां पर कोचिंग टर्मिनल का काम चल रहा है. इसी क्रम में यहां वाशिंग लाइन की शुरुआत की गई है. जिसमें अब ट्रीटेड वाटर का इस्तेमाल होता है. इस प्लांट की क्षमता रोजाना 6 लाख लीटर पानी देने की है.
10 फीसदी से भी कम पानी की बर्बादी होती है
उत्तर रेलवे के डिप्टी इंजीनियर (कंस्ट्रक्शन) भगवान मालिक ईटीवी भारत को बताते हैं कि इस प्लांट में इस्तेमाल किए गए पानी को ही ट्रीट कर दोबारा इस्तेमाल किया जाता है. इसमें पानी की भी बचत होती है और ऑटोमेटेड होने से कम कर्मचारियों से पूरा काम भी हो जाता है. उन्होंने बताया कि खास बात है कि इसमें 10 फीसदी से भी कम पानी की बर्बादी होती है. यहां तक कि वेस्ट अविष्ट से भी खाद बना दिया जाता है.
मालिक ने बताया कि यहां पानी एक पूरी प्रक्रिया से होकर गुजरता है. इसमें कर्मचारियों को बटन दबाने की भी जरूरत नहीं पड़ती. एक बार जब ट्रीट होने लायक पानी इकट्ठा हो जाता है, तब मशीन खुद ही स्टार्ट हो जाती है और आखिर में पूरा पानी ट्रीट होकर टैंक में पहुंच जाता है.
पानी को कई जगहों से टेस्ट कराया गया है
उन्होंने बताया कि पानी को कई जगहों से टेस्ट कराया गया है और गुणवत्ता के हिसाब से रेलगाड़ी धोने के लिए इसे बेहतर बताया गया है. गौर करने वाली बात है कि रेलगाड़ी में हाथ धोने और शौचालय के इस्तेमाल के लिए भरा जाने वाला पानी अलग होता है. इसके लिए ट्रीटेड पानी का इस्तेमाल नहीं होता.
बता दें कि इस प्लांट को बनाने में 2.21 करोड़ रुपए का खर्चा आया है. जबकि 5 वर्ष तक इसके संचालन और उसके अनुरक्षण का कार्य इस खर्चे में शामिल है. यह उत्तर रेलवे का अपनी तरह का पहला ऐसा प्रोजेक्ट है जो पूरी तरह ऑटोमेटेड है. बताया जाता है कि इस प्लांट में जल पुनर्चक्रण की प्रति लीटर लागत लगभग 3 पैसे आती है.