नई दिल्ली: दिल्ली के कनॉट प्लेस में इन दिनों सांस्कृतिक कार्यक्रमों की बहार है. बीते महीने से शुरू हुआ ये क्रम अभी भी लगातार जारी है. इन आयोजनों का एक पहलू राजनीति से भी जुड़ा है.
इसी कड़ी में कनॉट प्लेस में पूर्वांचल सांस्कृतिक मेला शुरू हो चुका है. इस कार्यक्रम में भी पूर्वांचली गीत-संगीत, संस्कृति से वास्ता रखने वाले तमाम कलाकारों का कार्यक्रम होना है.
तीन दिवसीय पूर्वांचल मेले का आयोजन
तीन दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में पूर्वांचली लोक गायकी के मशहूर नाम भरत शर्मा व्यास, चंदन तिवारी, शैलेंद्र मिश्र वहीं मैथिली भाषा से जुड़े कलाकार कुंज बिहारी यहां अपनी प्रस्तुति देंगे.
लेजर शो का हुआ था आयोजन
26 से 29 अक्टूबर के बीच दिल्ली सरकार ने कनॉट प्लेस में लेजर शो का आयोजन किया था. पटाखा रहित दिवाली मनाने के उद्देश्य से आयोजित ये कार्यक्रम सफल भी हुआ और यहीं से शुरू हुआ कनॉट प्लेस में सांस्कृतिक आयोजनों का सिलसिला. शुरुआत हुई उर्दू हेरिटेज फेस्टिवल से.
उर्दू हेरिटेज फेस्टिवल का लोगों ने उठाया लुत्फ
30 अक्टूबर से कनॉट प्लेस में उर्दू हेरिटेज फेस्टिवल का आरंभ हुआ. 6 दिन के इस आयोजन में सूफी संगीत, डांस, कविता, नाटक और उर्दू भाषा संस्कृति से जुड़े अन्य कार्यक्रमों का आयोजन हुआ. अनवर हुसैन, सूफी निजामी ब्रदर्स, फरीद साबरी और रेखा भारद्वाज जैसी शख्सियतों ने यहां पर अपनी प्रस्तुति दी. उर्दू भाषा संस्कृति से प्यार करने वाले हजारों लोगों ने इस कार्यक्रम का लुत्फ उठाया.
पंजाबी कल्चरल फेस्टिवल का लिया आंनद
इसके बाद, 7 अक्टूबर से 9 नवंबर के बीच इसी जगह पंजाबी कल्चरल फेस्टिवल आयोजित हुआ. इसमें पंजाबी भाषा और संस्कृति से जुड़े तमाम नामों की मौजूदगी रही. पंजाब की सांस्कृतिक विरासत से वास्ता रखने वाली वस्तुएं हों या फिर खानपान, दिल्ली में रहने वाले पंजाबी समुदाय के लोगों ने सभी का आनंद लिया.
कनॉट प्लेस में फेस्टिवल का दौर जारी
वोटों के नजरिए से दिल्ली की आबादी देखें तो इसमें, चाहे उर्दू की सांस्कृतिक विरासत हो, पंजाबी या फिर पूर्वांचली, सभी की अच्छी-खासी पैठ है. पंजाबी और पूर्वांचली आबादी तो चुनाव में किसी की भी जीत हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.
इन सांस्कृतिक कार्यक्रमों में मंच पर आने वाले हर कलाकार या आयोजक की तरफ से ऐसे आयोजन को लेकर केजरीवाल सरकार की वाहवाही जरूर की जा रही है. आगामी दिनों में दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे ठीक पहले ऐसे सांस्कृतिक उत्सवों के आयोजन के उद्देश्यों का सिरा वोटों से भी जुड़ता है.