गाजियाबाद: फरवरी 2023 में तुर्की में भयानक भूकंप से तबाही की विचलित करने वाली तस्वीर सामने आई थी. तुर्की में आए विनाशकारी भूकंप में हजारों लोगों की मौत हो गई थी. भारत ने तुर्की ऑपरेशन दोस्त में राहत और बचाव टीम भेजी थी. तुर्की में रेस्क्यू ऑपरेशन में एनडीआरएफ की टीमों ने भी अहम भूमिका निभाई थी. एनडीआरएफ की टीम में डॉग स्क्वायड भी शामिल था. एनडीआरएफ के डॉग स्क्वायड की तारीफ करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि एनडीआरएफ और हमारे डॉग स्क्वायड ने गजब का दम दिखाया.
रेस्क्यू डॉग्स ने बचाई जिंदगी: रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान एनडीआरएफ की टीम ने 6 वर्षीय बैरन और 8 वर्षीय मरय करत को जीवित रेस्क्यू किया था. बैरन और मरय करत की जिंदगी बचाने में एनडीआरएफ के रेस्क्यू डॉग्स ने अहम भूमिका निभाई थी. डॉग हैंडलर रेस्क्यू साइट पर रेस्क्यू डॉग लेकर पहुंचे. स्थानीय लोगों का कहना था कि रेस्क्यू साइट पर लाइव विक्टिम होने की संभावना है. छह मंजिला इमारत थी जिसमें रेस्क्यू डॉग जूली को छोड़ा गया. डॉग जूली ने इमारत में लाइव विक्टिम होने के संकेत दिए.
रेस्क्यू डॉग जूली द्वारा दिए गए संकट को कंफर्म करने के लिए एनडीआरएफ की टीम ने अन्य रेस्क्यू डॉग रोमियो को भेजो. रोमियो द्वारा कंफर्म किया गया कि इमारत में जीवित व्यक्ति मौजूद है. रेस्क्यू डॉग से मिली जानकारी को डॉग हैंडलर ने उच्च अधिकारियों को दी, जिसके बाद इमारत में से 6 वर्ष की बच्ची को जीवित बाहर निकाला गया.
आठवीं बटालियन में कुल 23 रेस्क्यू डॉग्स: गाजियाबाद के कमला नेहरू नगर स्थित एनडीआरएफ की आठवीं बटालियन में कुल 23 रेस्क्यू डॉग्स है. एनडीआरएफ परिसर में रेस्क्यू डॉग्स के लिए श्वान दस्ता अनुभाग है, जहां रेस्क्यू डॉग्स डॉग हैंडलर्स के साथ रहते हैं. यहां प्रत्येक रेस्क्यू डॉग के लिए अलग-अलग क्वार्टर बने हुए हैं. क्वार्टर के दरवाजे पर फोटो के साथ रेस्क्यू डॉग का नाम प्लेट लगा हुआ है. प्रत्येक क्वार्टर में एसी लगा हुआ है जहां डॉग के साथ एक डॉग हैंडलर हमेशा रहता है.
56 हफ्ते की होती है ट्रेनिंग: एनडीआरएफ इन रेस्क्यू डॉग्स को किसी भी रेस्क्यू ऑपरेशन में उतरने से पहले ट्रेनिंग देती है. रेस्क्यू डॉग्स को 56 हफ्ते की ट्रेनिंग दी जाती है. जो B क्लास ट्रेनिंग होती है. ट्रेनिंग के दौरान रेस्क्यू डॉग्स को यह सिखाया जाता है कि रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान किस तरह से उन्हें ढ़ही हुई इमारत में दबे हुए व्यक्ति को खोजना है. दबे हुए व्यक्ति के मिलने पर किस तरह से अपने हैंडलर या मास्टर को संकेत देना है. किसी भी इमारत के अंदर घुसने के लिए रेस्क्यू डॉग को बार्किंग, डिगिंग और पेनिट्रेशन सिखाया जाता है. इसके साथ ही रेस्क्यू डॉग्स को डायरेक्शनल कंट्रोल भी सिखाया जाता है, जिससे कि जिस दिशा में मास्टर द्वारा इशारा किया जाता है कि उसे दिशा में आगे बढ़ते हैं.
रोज ट्रेनिंग के बाद होती है मसाजः ट्रेनिंग सेशन के बाद रेस्क्यू डॉग्स की ग्रूमिंग और मसाज की जाती है. ऐसा डॉग्स की थकान को दूर करने के लिए किया जाता है. डॉग हैंडलर या मास्टर द्वारा इनकी ग्रूमिंग और मसाज की जाती है. आमतौर पर दोपहर में फीडिंग करने से पहले यह प्रक्रिया की जाती है. एनडीआरएफ के सभी रेस्क्यू डॉग्स के शरीर में माइक्रोचिप लगे हुए होते हैं. दरअसल जब रेस्क्यू डॉग्स को देश से बाहर लेकर जाया जाता है, तो यह माइक्रोचिप उनकी पहचान के तौर पर काम करती है.
विदेश यात्रा पर लगते हैं विभिन्न दस्तावेजः जब रेस्क्यू डॉग्स को देश से बाहर किसी ऑपरेशन पर लेकर जाया जाता है तो इन डॉग्स के भी कई तरह के डाक्यूमेंट्स लगते हैं. जैसे कि माइक्रोचिप नंबर, एयर ट्रैवल फिटनेस सर्टिफिकेट, KCI रजिस्ट्रेशन आदि. गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस के मुताबिक रेस्क्यू डॉग 8 साल तक एनडीआरएफ में सेवा दे सकता है. यदि किसी ऑपरेशन के दौरान रेस्क्यू डॉग इंजर्ड या फिर डिसएबल हो जाता है तो उसे पहले रिटायर कर दिया जाता है. एनडीआरएफ में डॉग के रिटायरमेंट के बाद उसे एडॉप्शन के लिए डाल दिया जाता है. एडॉप्शन की भी एक पूरी प्रक्रिया होती है. प्रक्रिया को पूरा करने के बाद डॉग को एडॉप्शन के लिए दे दिया जाता है.
गर्मी में एसी और ठंड में हीटर में क्यों रहते हैंः रेस्क्यू डॉग अनुभाग में प्रत्येक रेस्क्यू डॉग के लिए एक क्वार्टर बना हुआ है. जहां गर्मी के मौसम में AC व्यवस्था रहती है. गर्मी के मौसम में रेस्क्यू डॉग्स एक कमरे में रहते हैं दरअसल ऐसा इसलिए है कि डॉग्स को पसीना नहीं आता. यह अपनी जबान से राल टपका कर ही अपने शरीर की गर्मी बाहर निकलते हैं. ऐसे में डॉग्स को ac में रखा जाता है. ऐसा करने से उनकी परफॉर्मेंस पर भी काफी सकारात्मक असर पड़ता है. वहीं ठंड के मौसम में इन्हें हीटर में रखा जाता है.