नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने पिंजरा तोड़ संगठन की कार्यकर्ता देवांगना कलीता की क्राइम ब्रांच के खिलाफ कुछ खास सूचनाएं मीडिया को लीक करने के मामले में दायर हलफनामे पर दिल्ली पुलिस को कड़ी फटकार लगाया है. जस्टिस विभू बाखरु की बेंच ने कहा कि हमने जो हलफनामा मांगा था वह हलफनामा दाखिल नहीं किया गया है. इस मामले पर अगली सुनवाई 15 जुलाई को होगी.
कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया कि 15 जुलाई तक कलीता के संबंध में कोई भी सूचना मीडिया को लीक नहीं की जाए. कोर्ट ने कहा कि हलफनामे में किसी भी व्यक्ति को सूचनाएं लीक करने का जिम्मेदार नहीं माना गया है. यह हमारे पिछले आदेश के रिकार्ड में है. कोर्ट ने कहा कि हमने अपने आदेश में संबंधित डीसीपी को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. हम ये जानना चाहते थे कि प्रेस नोट आधिकारिक तौर पर जारी किया गया था कि ये किसी की सोची समझी योजना थी.
हलफनामे में लगाए गए आरोप याचिका की परिधि से बाहर
कोर्ट ने कहा कि दिल्ली पुलिस की ओर से दायर हलफनामे में कई आरोप लगाए गए हैं, जो कि याचिका की परिधि से बाहर के हैं. इन आरोपों की क्या जरुरत थी. अब वे रिकार्ड में आ गए हैं, इसलिए उनकी भी जांच होगी. कोर्ट ने कहा कि याचिका केवल इसलिए दायर की गई है कि किसी आरोपी के लेकर जारी प्रेस विज्ञप्ति जारी करने में पुलिस को क्या अधिकार है. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश एएसजी अमन लेखी को हलफनामा वापस लेकर एक जिम्मेदार हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया. तब लेखी ने कहा कि यह डीसीपी के व्यक्तिगत हलफनामे और जवाब का कांबिनेशन है. वे अब दूसरा हलफनामा दाखिल करेंगे.
हलफनामा मीडिया में लीक होने पर आपत्ति
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील अदीत एस पुजारी ने पुलिस के हलफनामे को मीडिया में प्रसारित करने पर आपत्ति जताई. पुजारी ने कहा कि जब इस मामले पर पहले से अंतरिम आदेश है तो पुलिस ऐसा कैसे कर सकती है. तब कोर्ट ने कहा कि ऐसा नहीं करना चाहिए था.
'समाज में क्या हो रहा है ये जानना नागरिकों का अधिकार'
पिछले 7 जुलाई को दिल्ली पुलिस ने अपना जवाब दाखिल किया था. दिल्ली पुलिस ने कहा था कि नागरिकों और पत्रकारों का ये अधिकार है कि वे ये जानें कि समाज में क्या हो रहा है. दिल्ली पुलिस ने कहा कि देवांगन ने मीडिया कैंपेन चलाकर आम लोगों की सहानुभूति अर्जित करने की कोशिश की. ऐसा कर कलीता ने निष्पक्ष ट्रायल में बाधा डालने की कोशिश की. दिल्ली पुलिस ने कहा था कि 2 जून को जो संक्षिप्त नोट जारी किया गया वो आम लोगों और पत्रकारों को जानने के अधिकार के तहत था. वहीं राजनीतिक अभियान चलाया जा रहा था कि पुलिस एक खास समुदाय को निशाना बना रही है. इस परिस्थिति में लोगों को जानकारी देना जांच एजेंसी के लिए जरुरी था.