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Delhi High court: राजधानी के सभी जिला न्यायालयों में होगी हाइब्रिड सुनवाई

दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी के सभी जिला न्यायालयों में हाइब्रिड सुनवाई अनिवार्य कर दिया है. अब तक वकील और वादियों को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से उपस्थित होने के लिए अनुमति लेनी पड़ती थी.

दिल्ली हाईकोर्ट
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Published : Jun 6, 2023, 12:18 PM IST

Updated : Jun 6, 2023, 12:32 PM IST

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी के सभी जिला अदालतों को हाइब्रिड सुनवाई की अनुमति देने का निर्देश दिया है. इसका मतलब यह है कि वादी और वकील बिना किसी पूर्व अनुरोध के वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालती कार्यवाही के लिए उपस्थित हो सकते हैं. जिला न्यायालयों में सभी न्यायिक अधिकारियों से निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का अनुरोध किया गया है.

अभी तक अधिवक्ता व वादियों को केवल शारीरिक रूप से कोर्ट रूम में उपस्थित होने की अनुमति थी. इसे पहले वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित होने के लिए कम एक दिन पहले लिखित या ईमेल के माध्यम से एक औपचारिक अनुरोध करना पड़ता था. हाई कोर्ट ने नए आदेश में कहा कि सुनवाई हाइब्रिड/वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग मोड में हाई कोर्ट ऑफ़ दिल्ली रूल्स फॉर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग फ़ॉर कोर्ट्स, 2021 के अनुरूप आयोजित की जाएगी. साथ ही कोर्ट प्रोसीडिंग्स रूल्स की लाइव स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के प्रावधानों को भी ध्यान में रखा जाएगा.

कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिवक्ता राजीव तोमर ने बताया कि एक अधिकारी ने कहा कि इन परिवर्तनों का मतलब यह है कि वकील या पक्षकार दुनिया के किसी भी हिस्से से कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं. आदेश में आगे कहा गया है कि हाइब्रिड मोड के माध्यम से सुनवाई करते समय न्यायिक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि उस मामले में पक्षकारों और वकील के अलावा कोई भी व्यक्ति डिजिटल रूप से मामलों की कुछ श्रेणियों में कार्यवाही में शामिल न हो. इनमें वैवाहिक मामले, यौन अपराधों से संबंधित मामले, महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पीओसीएस) अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम से जुड़े मामले शामिल हैं.

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मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971, इन-कैमरा कार्यवाही, रिकॉर्डिंग या साक्ष्य, जिसमें जिरह शामिल है. संबंधित किसी भी तीसरे पक्ष को मामलों में कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी. हालांकि, इन मामलों में संबंधित अदालत को अब तीसरे पक्ष को शामिल होने की अनुमति देने के कारणों को लिखित रूप में रिकॉर्ड करना होगा. न्यायालय लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए पार्टियों या उनके वकील को शारीरिक रूप से उपस्थित होने का निर्देश दे सकता है, जहां न्यायालय की राय में अदालत में पार्टियों या वकील की भौतिक उपस्थिति आवश्यक है.

ये भी पढ़ें: Central Ordinance: अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने के लिए अखिलेश यादव से मिलेंगे CM केजरीवाल

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय राजधानी के सभी जिला अदालतों को हाइब्रिड सुनवाई की अनुमति देने का निर्देश दिया है. इसका मतलब यह है कि वादी और वकील बिना किसी पूर्व अनुरोध के वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अदालती कार्यवाही के लिए उपस्थित हो सकते हैं. जिला न्यायालयों में सभी न्यायिक अधिकारियों से निर्देशों का कड़ाई से पालन करने का अनुरोध किया गया है.

अभी तक अधिवक्ता व वादियों को केवल शारीरिक रूप से कोर्ट रूम में उपस्थित होने की अनुमति थी. इसे पहले वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से उपस्थित होने के लिए कम एक दिन पहले लिखित या ईमेल के माध्यम से एक औपचारिक अनुरोध करना पड़ता था. हाई कोर्ट ने नए आदेश में कहा कि सुनवाई हाइब्रिड/वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग मोड में हाई कोर्ट ऑफ़ दिल्ली रूल्स फॉर वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग फ़ॉर कोर्ट्स, 2021 के अनुरूप आयोजित की जाएगी. साथ ही कोर्ट प्रोसीडिंग्स रूल्स की लाइव स्ट्रीमिंग और रिकॉर्डिंग के प्रावधानों को भी ध्यान में रखा जाएगा.

कड़कड़डूमा कोर्ट के अधिवक्ता राजीव तोमर ने बताया कि एक अधिकारी ने कहा कि इन परिवर्तनों का मतलब यह है कि वकील या पक्षकार दुनिया के किसी भी हिस्से से कार्यवाही में शामिल हो सकते हैं. आदेश में आगे कहा गया है कि हाइब्रिड मोड के माध्यम से सुनवाई करते समय न्यायिक अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि उस मामले में पक्षकारों और वकील के अलावा कोई भी व्यक्ति डिजिटल रूप से मामलों की कुछ श्रेणियों में कार्यवाही में शामिल न हो. इनमें वैवाहिक मामले, यौन अपराधों से संबंधित मामले, महिलाओं के खिलाफ लिंग आधारित हिंसा के साथ-साथ यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पीओसीएस) अधिनियम, 2012 और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम से जुड़े मामले शामिल हैं.

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मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971, इन-कैमरा कार्यवाही, रिकॉर्डिंग या साक्ष्य, जिसमें जिरह शामिल है. संबंधित किसी भी तीसरे पक्ष को मामलों में कार्यवाही में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी. हालांकि, इन मामलों में संबंधित अदालत को अब तीसरे पक्ष को शामिल होने की अनुमति देने के कारणों को लिखित रूप में रिकॉर्ड करना होगा. न्यायालय लिखित रूप में दर्ज किए जाने वाले कारणों के लिए पार्टियों या उनके वकील को शारीरिक रूप से उपस्थित होने का निर्देश दे सकता है, जहां न्यायालय की राय में अदालत में पार्टियों या वकील की भौतिक उपस्थिति आवश्यक है.

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Last Updated : Jun 6, 2023, 12:32 PM IST
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