नई दिल्ली: अनुसंधान, पेशेंट केयर और चिकित्सा शिक्षा के आदान-प्रदान को आगे बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली और एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडियन ओरिजिन (एएपीआई) के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (एमओयू) किया गया है. इसका लक्ष्य अंततः रोगी देखभाल को बढ़ाना है. एमओयू पर एम्स की ओर से निदेशक प्रोफेसर एम श्रीनिवास और एएपीआई की ओर से इसकी अध्यक्ष डॉ. अंजना समद्दर ने हस्ताक्षर किए.
मीडिया से एमओयू के बारे में बात करते हुए दिल्ली-एम्स में ऑन्को-एनेस्थीसिया और पैलिएटिव मेडिसिन के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. राकेश गर्ग ने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में साक्ष्य-आधारित चिकित्सा के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने प्रयासों को सुव्यवस्थित करने और भारतीय आबादी पर दोहराव वाले अध्ययनों से बचने के लिए विश्व स्तर पर, विशेष रूप से पश्चिमी आबादी में किए गए शोध को अपनाने के लक्ष्य पर प्रकाश डाला.
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डॉ. गर्ग ने भारतीय आबादी के लिए वैश्विक शोध निष्कर्षों की उपयुक्तता का आकलन करने के लिए सहयोगी बैठकों के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने बताया कि मौजूदा शोध को अपनाने से चिकित्सा पद्धतियों के विकास में पांच से दस साल बचाए जा सकते हैं. कोविड-19 महामारी के दौरान अपनाए गए दृष्टिकोण के साथ अनुसंधान और नैदानिक प्रथाओं में साझा ज्ञान के माध्यम से प्राप्त दक्षता पर जोर दिया.
डॉक्टर राकेश ने एम्स और भारतीय मूल के चिकित्सकों के संघ के बीच एमओयू को एक महत्वपूर्ण कदम बताया गया. डॉ. गर्ग ने चल रहे अध्ययनों की प्रेरणाओं, निष्कर्षों और सीमाओं को समझने, मौजूदा व्यवस्थाओं में सुधार करने और व्यापक समुदाय और आबादी को लाभ पहुंचाने के महत्व पर प्रकाश डाला. इस दौरान उनके साथ एएपीआई के सचिव डॉक्टर सुमुल रावल और समिट के आयोजन सचिव डॉक्टर शुभम आनंद झा मौजूद रहे.
बता दें कि एम्स में आयोजित दो दिवसीय 17वें ग्लोबल हेल्थ केयर समिट की शुरूआत दो जनवरी को हुई थी. सम्मेलन में अमेरिका समेत कई देशों के 200 से अधिक डॉक्टर शामिल होने आए हैं. इस दौरान ब्रेन ट्यूमर के प्रबंधन में प्रगति, ऑन्कोलॉजी में इम्यूनोथेरेपी, हेपेटाइटिस अपडेट, रिनल ट्रांसप्लांट, रोबोटिक सर्जरी, डायबिटीज प्रौद्योगिकी पर अपडेट और कार्डियक अरेस्ट जैसे विषयों पर विस्तृत चर्चा की गई है.
सम्मेलन के पहले दिन मानसिक स्वास्थ्य, आत्महत्या के बढ़ते मामलों और बच्चों में मानसिक बीमारी पर भी विचार विमर्श हुआ. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव और स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव लैंगिक पूर्वाग्रह और नेतृत्व जैसे वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दों को वुमेन फॉर्म द्वारा उठाया गया.
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