नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली के वसंत कुंज नॉर्थ इलाके में रहने वाले सूरज की 14 साल की बेटी पिछले करीब 20 दिनों से गायब है. सूरज की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज कर ली है, लेकिन अभी तक उनकी बेटी के बारे में कोई जानकारी नहीं मिल सकी है. सूरज का आरोप है कि पुलिस उनकी बेटी को खोजने के लिए गंभीर प्रयास नहीं कर रही है.
शिकायतकर्ता ने बताया कि 7 जुलाई को उनकी बेटी गायब हुई थी. जांच अधिकारी ने बताया कि लड़की ने अपना नया इंस्टाग्राम आईडी बनाया है. फेसबुक को पत्र लिखकर जानकारी मांगी गई है कि इंस्टाग्राम आईडी किस मोबाइल नंबर पर चल रही है. फेसबुक से सूचना आने के बाद मोबाइल नंबर लोकेशन से पता चल सकेगा. वहीं मामले में लड़की की सहेलियों के भी बयान दर्ज किए जा रहे हैं.
हर साल गायब होते हैं हजारों बच्चे: यह हाल सिर्फ एक पिता सूरज का नहीं बल्कि दिल्ली के हजारों माता-पिता का है. नाबालिग बच्चों के गायब होने के बाद उनके मिलने में लंबा समय लग जाता है. वहीं, कुछ बच्चों का तो पता भी नहीं चलता है. यही कारण है कि राजधानी से हर साल हजारों बच्चे गायब होते हैं. लोकसभा में एक सवाल के जवाब में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से दिए गए जवाब में बताया गया है कि 1 जनवरी 2018 से लेकर 30 जून 2023 तक दिल्ली में 22,964 बच्चे गायब हुए हैं. पुलिस समेत विभिन्न सिविक एजेंसियों के प्रयास से इनमें से 16,463 बच्चों को बरामद कर लिया गया, लेकिन 6501 बच्चों का अभी भी पता नहीं चला है.
जनवरी 2018 से 30 जून 2023 तक दिल्ली में गायब हुए बच्चे:
- लड़के- 7,588
- लड़कियां- 15,365
- अन्य- 11
- कुल- 22,964
जनवरी 2018 से 30 जून 2023 तक गायब बच्चों में बरामदगी:
- लड़के- 5 960
- लड़कियां- 10,496
- अन्य- 7
- कुल- 16,463
बड़ी संख्या में इन राज्यों में गायब हो रहे बच्चे:
- मध्य प्रदेश- 61,102
- पश्चिम बंगाल- 49,129
- कर्नाटक- 27,528
- गुजरात- 20,081
- ओडिशा- 17,1 49
- छत्तीसगढ़-16,711
अभिभावकों को जागरूक करने की जरूरत: पिछले 8 सालों से बाल अधिकार के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और घनश्याम ओली चाइल्ड वेलफेयर सोसायटी के संस्थापक अजय ओली ने बताया कि समाज में अभी भी बच्चों को लेकर अभिभावकों को बड़े पैमाने पर जागरूक करने की जरूरत है. जो बच्चे गायब होते हैं उनमें से ज्यादातर बच्चों से या तो भिक्षावृत्ति करवाई जाती है या फिर उनका यौन शोषण किया जाता है. सिर्फ पुलिस या सिविक एजेंसियों के बलबूते इस पर रोक नहीं लग सकती, अभिभावकों को भी जागरूक रहना होगा. गौरतलब है कि अजय ओली बच्चों की सुरक्षा को लेकर जागरूक करने के लिए पिछले 8 साल से पैदल यात्रा निकालते हैं. अपने अभियान के समर्थन में वह पैरों में जूते चप्पल तक नहीं पहनते हैं.
मिसिंग बच्चों को तलाश के लिए है व्यवस्था: महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के सहयोग से 2 जून 2015 को 'खोया-पाया' पोर्टल बनाया गया है. मिसिंग बच्चों की तलाश के लिए सरकार डिजिटल तकनीक का सहारा ले रही है. गुमशुदा बच्चे का ब्योरा और फोटो 'खोया-पाया' पोर्टल पर डालना होता है. इस पोर्टल पर कोई भी नागरिक गुमशुदा या कहीं मिले बच्चे अथवा वयस्क की सूचना अपलोड कर सकता है.
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