नई दिल्ली: दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के मध्यस्थता केंद्र में अक्टूबर और नवंबर माह में कुल 27 मामले स्थानांतरित किए गए. इनमें से 14 मामलों में समझौता हुआ, जबकि तीन मामलों में आपसी सहमति नहीं बन पाई, जिसकी वजह से वापस उन्हें उपभोक्ता अदालत को भेजना पड़ा. वहीं 11 मामले अभी मध्यस्थता केंद्र के पास समझौते के लिए प्रक्रिया में हैं. आयोग के वरिष्ठ मध्यस्थ डॉ. पीएन तिवारी ने यह जानकारी दी.
उन्होंने बताया कि मध्यस्थता के जरिए इन दो महीने के अंदर जिन मामलों का निस्तारण हुआ, उनमें एक शिकायतकर्ता को सबसे अधिक धनराशि 92 लाख दी गई. जबकि सबसे कम राशि का जुर्माना एक लाख पांच हजार रुपये रहा. उपभोक्ता अदालत में समझौते द्वारा मामलों को निपटाने के लिए दोनों पार्टियां आपसी सहमति से आती हैं. इसके बाद वह अपने मामले को यहां लिस्ट कराते हैं और तारीख पर दोनों पक्षों की बात सुनने के बाद अगली तारीख पर दोनों से लिखित सहमति ली जाती है. वहीं तीसरी तारीख में आदेश जारी कर मामले का निपटारा कर दिया जाता है.
उन्होंने आगे बताया कि उपभोक्ता अदालत में निपटाए गए मामले को हाईकोर्ट के अलावा अन्य किसी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती. अगर कोई हाईकोर्ट में मामले को चुनौती देता है तो अधिकतर मामलों में हाईकोर्ट भी उपभोक्ता अदालत के फैसले को ही बरकरार रखता है. उन्होंने बताया कि 10 दिसंबर को लगने वाली राष्ट्रीय लोक अदालत में भी निपटारे के लिए भी कुछ मामलों को रखा गया है, जिसके लिए दोनों पक्षों ने सहमति दी है.
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गौरतलब है कि लोक अदालत का आयोजन दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग में भी होगा. डॉ. पी. एन. तिवारी ने बताया कि उपभोक्ता कानून में संशोधन होने के बाद अभी सभी जिला न्यायालय में भी जल्दी ही मध्यस्थता केंद्रों की स्थापना होनी है. इसके बाद मध्यस्थता के जरिए मामलों के निस्तारण में तेजी आएगी, जिसमें वादी और प्रतिवादी दोनों पक्षों को लाभ मिलेगा. उन्होंने बताया कि लोगों के अंदर उपभोक्ता कानून को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, जिससे उपभोक्ता अदालतों में भी मामले दर्ज किया जा रहे हैं. इसलिए अब इन मामलों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता केंद्रों की भी आवश्यकता बढ़ गई है.
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