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नाराज बेटी का दिल बहलाने ले जाते थे पिता निशानेबाजी रेंज, आज जीता गोल्ड

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Published : Aug 30, 2021, 9:53 PM IST

स्वर्ण पदक विजेता अवनि लेखरा के पिता ने बताया कि 2015 में एक कार हादसे में उनकी बेटी ने अपना पैर खो दिया. जिसके बाद वे अपनी बेटी के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए उसे शूटिंग रेंज अकदामी ले जाने लगें. पिता का कहना है कि उन्हें क्या पता था कि उनकी बेटी एक दिन देश के लिए गोल्ड जीतेगी.

अवनि लेखरा
अवनि लेखरा

जयपुर : राजस्थान के छोटे से गांव से निकलकर अवनि लेखरा ने आज दुनिया मेंं अपनी एक अलग पहचान बनाई है. कार दुर्घटना में पैर खोने के बाद भी लेखरा ने कभी हार नहीं मानी, अवनि लेखरा के पिता कहते हैं कि बेटी को 2015 में पहली बार निशानेबाजी रेंज ले गए, उनका मकसद कार दुर्घटना के पैर गंवाने के बाद बेटी की जिंदगी से नाराजगी कम करके उसका दिल बहलाना था. उन्हें क्या पता था कि उनका यह प्रयास उनकी बेटी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल देगा.

नाराजगी कम करने के लिए की गई पहल की परिणित आज टोक्यो पैरालम्पिक में अवनि के ऐतिहासिक स्वर्ण पदक के रूप में हुई. प्रवीण लेखरा ने कहा उस दुर्घटना के पहले वह काफी सक्रिय थी और हर गतिविधि में भाग लेती थी लेकिन उस हादसे ने उसकी जिंदगी बदल दी थी.

उन्होंने कहा वह हालात से काफी खफा थी और किसी से बात नहीं करना चाहती थी. माहौल बदलने के लिए मैं उसे जगतपुरा में जेडीए निशानेबाजी रेंज ले जाता था जहां से उसे निशानेबाजी का शौक पैदा हुआ. उन्होंने इसके बाद अपनी बेटी को ओलंपिक चैंपियन निशानेबाज अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा 'अ शॉट एट हिस्ट्री : माय आब्सेसिव जर्नी टू ओलंपिक गोल्ड' खरीदकर दी. अवनि ने किताब पढ़ना शुरू किया और ओलंपिक में भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा से प्रेरित होने लगी.

इसे भी पढे़ं-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने भारतीय पैरालंपिक खिलाड़ियों को शानदार प्रदर्शन पर बधाई दी

शुरुआत में उसे दिक्कतें आईं, लेकिन उनके पिता ने कहा, उसके कोच ने उसका पूरा साथ दिया और वह अच्छा प्रदर्शन करने लगी. उसने राज्य स्तर पर स्वर्ण और 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीता.

अवनि के पदक जीतने के बाद से उनके पिता का फोन लगातार बज रहा है. दूसरी ओर करौली जिले के छोटे से गांव देवलेन में भी जश्न का माहौल है जहां के रहने वाले सुंदर सिंह गुर्जर ने भाला फेंक में कांस्य पदक जीता. उनके भाई हरिओम गुर्जर ने कहा पूरा गांव खुश है.

उन्होंने बताया कि गांव भर के लोग या तो उनके घर पर टीवी देखने जमा थे या मंदिर में विशेष पूजा करके उसकी सफलता की कामना कर रहे थे. कांस्य जीतने के बाद मिठाइयां बांटी गई. हरिओम ने कहा, सुंदर के दो बच्चे हैं और एक का जन्म पिछले साल जन्माष्टमी पर हुआ. वहीं इस, जन्माष्टमी पर सुंदर ने देश के लिए पदक जीता है. सुंदर की मां ग्राम पंचायत में सरपंच है. भाला फेंक में रजत जीतने वाले देंवद्र झाझरिया भी राजस्थान से हैं.

मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत ने खिलाड़ियों को बधाई देते हुए स्वर्ण पदक पर तीन करोड़, रजत जीतने वाले को दो करोड़ और कांस्य जीतने वाले को एक करोड़ रुपये नकद पुरस्कार देने का ऐलान किया .

(पीटीआई-भाषा)

जयपुर : राजस्थान के छोटे से गांव से निकलकर अवनि लेखरा ने आज दुनिया मेंं अपनी एक अलग पहचान बनाई है. कार दुर्घटना में पैर खोने के बाद भी लेखरा ने कभी हार नहीं मानी, अवनि लेखरा के पिता कहते हैं कि बेटी को 2015 में पहली बार निशानेबाजी रेंज ले गए, उनका मकसद कार दुर्घटना के पैर गंवाने के बाद बेटी की जिंदगी से नाराजगी कम करके उसका दिल बहलाना था. उन्हें क्या पता था कि उनका यह प्रयास उनकी बेटी की जिंदगी हमेशा के लिए बदल देगा.

नाराजगी कम करने के लिए की गई पहल की परिणित आज टोक्यो पैरालम्पिक में अवनि के ऐतिहासिक स्वर्ण पदक के रूप में हुई. प्रवीण लेखरा ने कहा उस दुर्घटना के पहले वह काफी सक्रिय थी और हर गतिविधि में भाग लेती थी लेकिन उस हादसे ने उसकी जिंदगी बदल दी थी.

उन्होंने कहा वह हालात से काफी खफा थी और किसी से बात नहीं करना चाहती थी. माहौल बदलने के लिए मैं उसे जगतपुरा में जेडीए निशानेबाजी रेंज ले जाता था जहां से उसे निशानेबाजी का शौक पैदा हुआ. उन्होंने इसके बाद अपनी बेटी को ओलंपिक चैंपियन निशानेबाज अभिनव बिंद्रा की आत्मकथा 'अ शॉट एट हिस्ट्री : माय आब्सेसिव जर्नी टू ओलंपिक गोल्ड' खरीदकर दी. अवनि ने किताब पढ़ना शुरू किया और ओलंपिक में भारत के पहले व्यक्तिगत स्वर्ण पदक विजेता बिंद्रा से प्रेरित होने लगी.

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शुरुआत में उसे दिक्कतें आईं, लेकिन उनके पिता ने कहा, उसके कोच ने उसका पूरा साथ दिया और वह अच्छा प्रदर्शन करने लगी. उसने राज्य स्तर पर स्वर्ण और 2015 में राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीता.

अवनि के पदक जीतने के बाद से उनके पिता का फोन लगातार बज रहा है. दूसरी ओर करौली जिले के छोटे से गांव देवलेन में भी जश्न का माहौल है जहां के रहने वाले सुंदर सिंह गुर्जर ने भाला फेंक में कांस्य पदक जीता. उनके भाई हरिओम गुर्जर ने कहा पूरा गांव खुश है.

उन्होंने बताया कि गांव भर के लोग या तो उनके घर पर टीवी देखने जमा थे या मंदिर में विशेष पूजा करके उसकी सफलता की कामना कर रहे थे. कांस्य जीतने के बाद मिठाइयां बांटी गई. हरिओम ने कहा, सुंदर के दो बच्चे हैं और एक का जन्म पिछले साल जन्माष्टमी पर हुआ. वहीं इस, जन्माष्टमी पर सुंदर ने देश के लिए पदक जीता है. सुंदर की मां ग्राम पंचायत में सरपंच है. भाला फेंक में रजत जीतने वाले देंवद्र झाझरिया भी राजस्थान से हैं.

मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत ने खिलाड़ियों को बधाई देते हुए स्वर्ण पदक पर तीन करोड़, रजत जीतने वाले को दो करोड़ और कांस्य जीतने वाले को एक करोड़ रुपये नकद पुरस्कार देने का ऐलान किया .

(पीटीआई-भाषा)

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