नई दिल्ली: डबल ट्रैप के निशानेबाज राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने एथेंस ओलंपिक 2004 में रजत पदक जीतकर भारत में निशानेबाजी को नई पहचान दिलायी थी लेकिन इसके बाद शॉटगन का प्रभाव फीका पड़ता गया जबकि राइफल और पिस्टल निशानेबाजों ने अच्छी प्रगति की.
लेकिन मनशेर का मानना है कि शॉटगन में भविष्य उज्ज्वल है और इसका एक उदाहरण अंगद वीर सिंह बाजवा और मैराज अहमद खान का पुरुष स्कीट में टोक्यो ओलंपिक का कोटा हासिल करना है.
मनशेर ने आईएसएसएफ विश्व कप के दौरान कहा, ''मेरा मानना है कि शॉटगन के लिये आगे की राह बहुत अच्छी है विशेषकर इसमें कई जूनियर खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं.''
दर्शकों की प्रिय स्पर्धा होने के बावजूद शॉटगन में बेहतर आधारभूत ढांचा न होने तथा उपकरणों की कमी और अभ्यास की भारी लागत के कारण भारत को इसमें संघर्ष करना पड़ रहा है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में चल रहे विश्व कप में स्कीट निशानेबाजों के प्रदर्शन से चीजों में सकारात्मक बदलाव हो सकता है.
रविवार को युवा गनीमत शेखों ने महिला स्कीट में कांस्य पदक जीता जबकि कार्तिकी सिंह शेखावत चौथे स्थान पर रही. मनसेर ने कहा, ''फाइनल से पहले हमने लंबी बातचीत की. हम असल में उसका (गनीमत) तनाव कम करना चाहते थे. उसे सहज रखना चाहते थे.''