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जज्बे को सलामः तानों और दिव्यांगता को बनाई अपनी ताकत, जानिए पावर लिफ्टिंग में मेडल जीतने वाली जैनब खातून की कहानी - मजदूर की बेटी जैनब खातून

चीन में पैरा लम्पिक गेम्स (Paralympic Games 2023) में मेरठ की जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल (Zainab Khatoon Won silver medal) जीता है. दिव्यांग होते हुए भी उसके हौसले नहीं रुके. स्पेशल रिपोर्ट में जानिए गांव से निकलकर दूसरे देश में मेडल जीतने तक की कहानी...

जैनब खातून
जैनब खातून
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 11, 2023, 7:46 PM IST

जानिए पावर लिफ्टिंग में मेडल जीतने वाली जैनब खातून की कहानी.

मेरठ: मन के हारे हार है और मन के जीते जीत... इस कहावत को मेरठ के नगला साहू गांव की रहने वाली एक मजदूर की बेटी जैनब खातून ने साबित करके दिखाया है. चीन के हांगझोऊ में आयोजित चौथे एशियाई पैरा गेम्स में जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता है. दिव्यांग जैनब ने पिछले तीन साल में अपने बुलंद इरादों से यह मुकाम हासिल किया है, इतना ही नहीं समाज के तानों को नजरअंदाज करके यह सफलता पाई है. भारत लौटी जैनब से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.

मेरठ की जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता.
मेरठ की जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता.

सिल्वर मेडल जीतने पर पीएम ने दी बधाई: 3 साल पहले तक जैनब को उसके गांव के लोग भी ठीक से नहीं जानते थे, लेकिन आज देश के प्रधानमंत्री भी जैनब को पहचानते हैं. जैनब ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल अपने नाम किया तो प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस दिव्यांग बिटिया को बधाई दी थी. जैनब ने बताया कि यह उनके पिता की मेहनत का ही परिणाम है, जिन्होंने मेहनत मजदूरी करके उनकी परवरिश की. पिता ने उन्हें पूरी आजादी दी, जबकि वह एक ऐसे गांव से आती हैं जहां बेटियों के अकेले घर से निकलने को लेकर लोग तरह तरह की बातें करते हैं. जैनब का कहना है कि अब अगला लक्ष्य ओलम्पिक है. उसके लिए वह अब दिल्ली में ही तैयारी करेंगी. जैनब का कहना है कि पीएम मोदी और सीएम योगी सभी खिलाड़ियों को एक समान सम्मान दे रहे हैं, जिससे उनका हौसला बढ़ा है.

भारत लौटने पर जैनब का हुआ भव्य स्वागत.
भारत लौटने पर जैनब का हुआ भव्य स्वागत.

दिव्यांगता को नहीं माना अभिशाप: चीन में आयोजित पैरा गेम्स में 61 किग्रा कैटेगरी में पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल अपने नाम करने वाली जैनब का कहना है कि गांव से लगभग 18 किलोमीटर आना जिसमें स्टेडियम के लिए बस पकड़ने के पहले वह गांव से हाइवे पहुंचती थी. गांव से हाइवे तक बैसाखी के सहारे आती थी. उसके बाद भीड़भाड़ भरी बस में कभी बैठकर, तो कभी खड़ी रहकर मेरठ के कैलाश प्रकाश स्टेडियम में प्रशिक्षण लेने आती थीं. जैनब ने बताया कि कई बार उन्हें लगता था कि अब्बू मदद कम करते हैं. सहारा नहीं देते, लेकिन बाद में एहसास हुआ कि उनके पिता ऐसा इसलिए करते थे ताकि, मैं मजबूत बनूं. मुझे किसी के सहारे की जरूरत न पड़े.

भारत लौटने पर परिजनों के साथ जैनब खातून.
भारत लौटने पर परिजनों के साथ जैनब खातून.

सक्सेस स्टोरी पढ़कर लेती थीं प्रेरणा: जैनब कहती हैं कि वह तो तीन साल पहले तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थीं. ज्यादा बड़ा सपना नहीं था, लेकिन प्रेरणादायक कहानी पढ़कर और किसी की भी सक्सेस स्टोरी पढ़कर प्रेरित होती थीं. सोचती थीं कि कभी मेरी भी स्टोरी भी इसी तरह लोगों को पढ़ने को मिले. जैनब ने बताया कि वह बीटीसी करके टीचर बनना चाहती थीं. लेकिन, वह सफल नहीं हुई. इसी बीच उन्हें उनके एक गुरूजी ने खेलों में रुचि लेने को कहा. बस इसके बाद से अब तक खेलों पर फोकस किया है. सबसे पहले स्टेट में गोल्ड मेडल जीता. इसके बाद देश में गोल्ड मेडल. तीन राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों का भी हिस्सा रह चुकी हैं. 2022 के फज्जा विश्व कप में वेट लिफ्टिंग में कांस्य पदक जीता था. इस बार एशियन गेम्स में उन्होंने सिल्वर जीता है.

मां को बेटी पर गर्व: जैनब की मां कहती हैं कि उनकी बेटी ने बहुत मेहनत की है. बहुत सारी समस्याएं थीं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज करके ईमानदार कोशिश करते हुए वह आगे बढ़ पाई हैं. उन्होंने कहा कि आज खुशी होती है, जब लोग उन्हें एक खिलाड़ी की बिटिया की मां कहकर सम्बोधित करते हैं. वह कहती है कि उन्हें उम्मीद है कि उनकी बिटिया ओलंपिक में भी देश के लिए मेडल लेकर आएगी.पिता ने दिया था आगे बढ़ने को बेटी को साहस: जैनब के पिता अपनी बेटी की इस कामयाबी से बेहद खुश हैं. वह कहते हैं कि 'उन्होंने समाज में रहकर काफी बुराइयां सहीं, लोग ना जाने क्या-क्या कह देते थे, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी से पहले ही कह दिया था कि किसी की बातों से विचलित मत होना, परवाह मत करना, तू सिर्फ मेहनत कर और आगे बढ़. आज इसी का परिणाम है कि बेटी ने उन सब बातों पर गौर नहीं किया. बेटी ने सभी के आशीर्वाद और अपनी मेहनत से चीन में देश का मान बढ़ाया है'.

यह भी पढ़े-Asian Games 2023 : गोल्ड मेडल विजेता अन्नू रानी बोलीं- सरकार गांवों में दे सुविधाएं तो बेटियां लाएंगी पदक

जानिए पावर लिफ्टिंग में मेडल जीतने वाली जैनब खातून की कहानी.

मेरठ: मन के हारे हार है और मन के जीते जीत... इस कहावत को मेरठ के नगला साहू गांव की रहने वाली एक मजदूर की बेटी जैनब खातून ने साबित करके दिखाया है. चीन के हांगझोऊ में आयोजित चौथे एशियाई पैरा गेम्स में जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता है. दिव्यांग जैनब ने पिछले तीन साल में अपने बुलंद इरादों से यह मुकाम हासिल किया है, इतना ही नहीं समाज के तानों को नजरअंदाज करके यह सफलता पाई है. भारत लौटी जैनब से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.

मेरठ की जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता.
मेरठ की जैनब खातून ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल जीता.

सिल्वर मेडल जीतने पर पीएम ने दी बधाई: 3 साल पहले तक जैनब को उसके गांव के लोग भी ठीक से नहीं जानते थे, लेकिन आज देश के प्रधानमंत्री भी जैनब को पहचानते हैं. जैनब ने पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल अपने नाम किया तो प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के माध्यम से इस दिव्यांग बिटिया को बधाई दी थी. जैनब ने बताया कि यह उनके पिता की मेहनत का ही परिणाम है, जिन्होंने मेहनत मजदूरी करके उनकी परवरिश की. पिता ने उन्हें पूरी आजादी दी, जबकि वह एक ऐसे गांव से आती हैं जहां बेटियों के अकेले घर से निकलने को लेकर लोग तरह तरह की बातें करते हैं. जैनब का कहना है कि अब अगला लक्ष्य ओलम्पिक है. उसके लिए वह अब दिल्ली में ही तैयारी करेंगी. जैनब का कहना है कि पीएम मोदी और सीएम योगी सभी खिलाड़ियों को एक समान सम्मान दे रहे हैं, जिससे उनका हौसला बढ़ा है.

भारत लौटने पर जैनब का हुआ भव्य स्वागत.
भारत लौटने पर जैनब का हुआ भव्य स्वागत.

दिव्यांगता को नहीं माना अभिशाप: चीन में आयोजित पैरा गेम्स में 61 किग्रा कैटेगरी में पावर लिफ्टिंग में सिल्वर मेडल अपने नाम करने वाली जैनब का कहना है कि गांव से लगभग 18 किलोमीटर आना जिसमें स्टेडियम के लिए बस पकड़ने के पहले वह गांव से हाइवे पहुंचती थी. गांव से हाइवे तक बैसाखी के सहारे आती थी. उसके बाद भीड़भाड़ भरी बस में कभी बैठकर, तो कभी खड़ी रहकर मेरठ के कैलाश प्रकाश स्टेडियम में प्रशिक्षण लेने आती थीं. जैनब ने बताया कि कई बार उन्हें लगता था कि अब्बू मदद कम करते हैं. सहारा नहीं देते, लेकिन बाद में एहसास हुआ कि उनके पिता ऐसा इसलिए करते थे ताकि, मैं मजबूत बनूं. मुझे किसी के सहारे की जरूरत न पड़े.

भारत लौटने पर परिजनों के साथ जैनब खातून.
भारत लौटने पर परिजनों के साथ जैनब खातून.

सक्सेस स्टोरी पढ़कर लेती थीं प्रेरणा: जैनब कहती हैं कि वह तो तीन साल पहले तक प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही थीं. ज्यादा बड़ा सपना नहीं था, लेकिन प्रेरणादायक कहानी पढ़कर और किसी की भी सक्सेस स्टोरी पढ़कर प्रेरित होती थीं. सोचती थीं कि कभी मेरी भी स्टोरी भी इसी तरह लोगों को पढ़ने को मिले. जैनब ने बताया कि वह बीटीसी करके टीचर बनना चाहती थीं. लेकिन, वह सफल नहीं हुई. इसी बीच उन्हें उनके एक गुरूजी ने खेलों में रुचि लेने को कहा. बस इसके बाद से अब तक खेलों पर फोकस किया है. सबसे पहले स्टेट में गोल्ड मेडल जीता. इसके बाद देश में गोल्ड मेडल. तीन राष्ट्रीय प्रशिक्षण शिविरों का भी हिस्सा रह चुकी हैं. 2022 के फज्जा विश्व कप में वेट लिफ्टिंग में कांस्य पदक जीता था. इस बार एशियन गेम्स में उन्होंने सिल्वर जीता है.

मां को बेटी पर गर्व: जैनब की मां कहती हैं कि उनकी बेटी ने बहुत मेहनत की है. बहुत सारी समस्याएं थीं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज करके ईमानदार कोशिश करते हुए वह आगे बढ़ पाई हैं. उन्होंने कहा कि आज खुशी होती है, जब लोग उन्हें एक खिलाड़ी की बिटिया की मां कहकर सम्बोधित करते हैं. वह कहती है कि उन्हें उम्मीद है कि उनकी बिटिया ओलंपिक में भी देश के लिए मेडल लेकर आएगी.पिता ने दिया था आगे बढ़ने को बेटी को साहस: जैनब के पिता अपनी बेटी की इस कामयाबी से बेहद खुश हैं. वह कहते हैं कि 'उन्होंने समाज में रहकर काफी बुराइयां सहीं, लोग ना जाने क्या-क्या कह देते थे, लेकिन उन्होंने अपनी बेटी से पहले ही कह दिया था कि किसी की बातों से विचलित मत होना, परवाह मत करना, तू सिर्फ मेहनत कर और आगे बढ़. आज इसी का परिणाम है कि बेटी ने उन सब बातों पर गौर नहीं किया. बेटी ने सभी के आशीर्वाद और अपनी मेहनत से चीन में देश का मान बढ़ाया है'.

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