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ओलम्पिक में भारत : नए मुक्केबाजों से अब देश को नई उम्मीद है - मेरी कॉम

इस बार टोक्यो ओलंपिक में भारत को पदक दिलाने की उम्मीद पुरूषों में अमित पंघल से की जा रही है.

Indian Boxers in Olmpics
Indian Boxers in Olmpics
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Published : Jan 23, 2020, 12:38 PM IST

Updated : Feb 18, 2020, 2:38 AM IST

नई दिल्ली: 2008 वो साल था जब भारत ने ओलम्पिक में इतिहास रचा था. पहली बार भारत व्यक्तिगत स्वर्ण लेकर आया जो निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने दिलाया और इसी ओलम्पिक में भारत को मुक्केबाजी में भी अपने ओलंपिक इतिहास का पहला पदक मिला था.

इससे पहले ओलम्पिक खेलों में मुक्केबाजों की पदकों की झोली खाली थी.

विजेंदर सिंह वो नाम थे, जिन्होंने मुक्केबाजी में भारत को पहला ओलम्पिक पदक दिलाया था.इस पदक का रंग कांस्य था. अखिल कुमार और जितेंद्र कुमार क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे. इसी ओलम्पिक में भारत के कुल छह मुक्केबाज पहुंचे थे, जिनमें से विजेंदर पदक जीतने में सफल रहे थे. हालांकि इस विश्व कप में एक भी महिला खिलाड़ी नहीं थी.

Indian Boxer in Olympics
ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों का सफर

बीजिंग में फ्लाइवेट में जितेंद्र क्वार्टर फाइनल में हार गए थे जबकि बैंटमवेट में अखिल को भी अंतिम-8 में हार मिली थी. इसी तरह फेदरवेट में ए.एल. लाकरा पहले दौर में हार गए थे जबकि दिनेश कुमार लाइटहेवीवेट में पहले दौर में ही बाहर हो गए थे. सिर्फ विजेंदर ही सेमीफाइनल में पहुंचे लेकिन वहां उन्हें हार मिली.

विजेंदर लंदन ओलम्पिक-2012 में हालांकि पदक नहीं जीत पाए. वो क्वार्टर फाइनल में हार गए थे लेकिन दिग्गज महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम ने जरूर भारत को पदक दिला विजेंदर की विरासत को कायम रखा था. मैरी कॉम के हिस्से भी कांस्य पदक आया था. इसी के साथ वो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला मुक्केबाज बनी थीं.

लंदन में मैरी कॉम और विजेंदर सहित कुल 9 मुक्केबाजों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से दो क्वार्टर फाइनल (विजेंदर और देवेंद्रो सिंह), एक सेमीफाइनल (मैरी कॉम) में पहुंचा था. इसके अलावा जय भगवान, मनोज कुमार और विकास कृष्ण प्री-क्वार्टर फाइनल में हार गए थे.

Vijendra singh in 2008 beijing olympics
विजेंदर सिंह ने 2008 में जीता था कांस्य पदक

यही वो दौर था जब भारत मुक्केबाजी में बड़ा नाम बनकर उभरा था. विश्व चैम्पियनशिप-2009 में विजेंदर ने कांस्य पदक जीता. उनके अलावा अखिल कुमार, जितेंद्र कुमार, ए.एल. लाकरा, दिनेश कुमार ने भी 2008 विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य जीते थे.

भारतीय मुक्केबाजी में इसे अगर अच्छे दौर की शुरुआत कहा जाए तो गलती नहीं होगी. दो ओलम्पिक में दो पदक जीतकर भारत ने अपने आप को साबित किया था. इसके अलावा अन्य टूर्नामेंट में भी भारतीय मुक्केबाज लगातार पदक ला रहे थे. इस बीच मैरी कॉम बड़ा नाम बन चुकी थीं.

और इन्हीं सबके कारण रियो ओलम्पिक-2016 में पदक की उम्मीद बंधी थी. खैर, यहां भारत को निराशा मिली और भारत ओलम्पिक में पदक की हैट्रिक नहीं लगा सका. रियो में भारत के सिर्फ तीन मुक्केबाज ही पहुंचे थे और ये तीनों पुरुष थे. इन तीनों में शिव थापा, विकास और मनोज के नाम थे.

विकास क्वार्टर फाइनल में हार गए थे जबकि बाकी दोनों मुक्केबाज प्री-क्वार्टर फाइनल में हार गए थे.

Mary Kom wins broze in 2012 Olympics
मैरी कॉम ने 2012 में तंदन ओलंपिक में जीता ता कांस्य पदक

लेकिन 2016 के बाद से अगर भारतीय मुक्केबाजों को देखा जाए तो ये दिन-ब-दिन मजबूत ही हुए हैं. बड़े टूर्नामेंट्स में लगातार पदक वो भी एक-दो नहीं इससे ज्यादा. पदक के रंग भी बदले. ऐसे में टोक्यो ओलम्पिक-2020 में भारतीय मुक्केबाजों से पदक की उम्मीद लाजमी है.

विजेंदर को भी लगता है कि इस बार उम्मीद अच्छी है लेकिन इसके लिए महासंघ और खेल मंत्रालय को भी खिलाड़ियों का ध्यान रखना होगा.

अब पेशेवर मुक्केबाज बन चुके विजेंदर ने एक मीडिया हाउस से बातकर कहा, "उम्मीद तो काफी है. नई पीढ़ी है. जोश है इनमें. कई मुक्केबाज अच्छा कर रहे हैं इसलिए भारत की उम्मीदें तो अच्छी हैं, लेकिन मैंने हाल ही में कहीं पढ़ा था कि अमित पंघल को पर्सनल कोच चाहिए लेकिन उसे मिला नहीं. तो इस तरह की समस्याएं खिलाड़ियों को न आएं. खिलाड़ियों के न्यूट्रीशन का, मेडिकल सुविधाओं का अच्छे से ध्यान रखा जाए तो उम्मीदें तो काफी हैं."

विजेंदर ने हालांकि किसी एक खिलाड़ी को पदक का दावेदार नहीं बताया और कहा कि सभी से उम्मीद की जा सकती है.

Amit panghal
अमित पंघल

उन्होंने कहा, "मुझे हर किसी से उम्मीद है. मैं किसी एक का नाम लेकर किसी पर दबाव नहीं बढ़ाना चाहता. सभी खिलाड़ी अच्छा करें, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दें मैं यही चाहता हूं."

वैसे अगर देखा जाए तो पुरुषों में अमित पंघल भारत की एक सबसे बड़ी उम्मीद बनकर उभरे हैं. राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने के अलावा अमित ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता. पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में भी वो रजत पदक लेकर आए. लगभग सभी बड़े टूर्नामेंट्स के फाइनल में अमित ने जगह बनाई है और इन सभी जगह उन्होंने जिस तरह का खेल दिखाया है उससे वो भारत की पदक की उम्मीद बने हैं.

ओलम्पिक खेलने के लिए अमित को हालांकि अभी क्वालीफायर की बाधा पार करनी है और यही एक चुनौती उनके और ओलम्पिक पदक के बीच में है.

महिलाओं में मैरी कॉम जैसी दिग्गज से पदक की उम्मीद होना लाजमी है. ओलम्पिक खेलने के लिए इस मुक्केबाज ने 48 किलोग्राम भारवर्ग से 51 किलोग्राम भारवर्ग में शिफ्ट किया. इसी भारवर्ग में वो 2012 में ओलम्पिक पदक जीत चुकी हैं और अब क्वालीफायर के लिए जरिए ओलम्पिक कोटा हासिल करने को बेताब हैं.

महिलाओं में सिर्फ मैरी कॉम ही नहीं हैं. मंजू रानी और लवलिना बोर्गोहेन दो ऐसे नाम हैं, जो खेलों के महाकुम्भ में छुपी रुस्तम साबित हो सकती हैं. मंजू ने पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था. इसलिए उनसे भी काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं.

नई दिल्ली: 2008 वो साल था जब भारत ने ओलम्पिक में इतिहास रचा था. पहली बार भारत व्यक्तिगत स्वर्ण लेकर आया जो निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने दिलाया और इसी ओलम्पिक में भारत को मुक्केबाजी में भी अपने ओलंपिक इतिहास का पहला पदक मिला था.

इससे पहले ओलम्पिक खेलों में मुक्केबाजों की पदकों की झोली खाली थी.

विजेंदर सिंह वो नाम थे, जिन्होंने मुक्केबाजी में भारत को पहला ओलम्पिक पदक दिलाया था.इस पदक का रंग कांस्य था. अखिल कुमार और जितेंद्र कुमार क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे. इसी ओलम्पिक में भारत के कुल छह मुक्केबाज पहुंचे थे, जिनमें से विजेंदर पदक जीतने में सफल रहे थे. हालांकि इस विश्व कप में एक भी महिला खिलाड़ी नहीं थी.

Indian Boxer in Olympics
ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों का सफर

बीजिंग में फ्लाइवेट में जितेंद्र क्वार्टर फाइनल में हार गए थे जबकि बैंटमवेट में अखिल को भी अंतिम-8 में हार मिली थी. इसी तरह फेदरवेट में ए.एल. लाकरा पहले दौर में हार गए थे जबकि दिनेश कुमार लाइटहेवीवेट में पहले दौर में ही बाहर हो गए थे. सिर्फ विजेंदर ही सेमीफाइनल में पहुंचे लेकिन वहां उन्हें हार मिली.

विजेंदर लंदन ओलम्पिक-2012 में हालांकि पदक नहीं जीत पाए. वो क्वार्टर फाइनल में हार गए थे लेकिन दिग्गज महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम ने जरूर भारत को पदक दिला विजेंदर की विरासत को कायम रखा था. मैरी कॉम के हिस्से भी कांस्य पदक आया था. इसी के साथ वो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला मुक्केबाज बनी थीं.

लंदन में मैरी कॉम और विजेंदर सहित कुल 9 मुक्केबाजों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से दो क्वार्टर फाइनल (विजेंदर और देवेंद्रो सिंह), एक सेमीफाइनल (मैरी कॉम) में पहुंचा था. इसके अलावा जय भगवान, मनोज कुमार और विकास कृष्ण प्री-क्वार्टर फाइनल में हार गए थे.

Vijendra singh in 2008 beijing olympics
विजेंदर सिंह ने 2008 में जीता था कांस्य पदक

यही वो दौर था जब भारत मुक्केबाजी में बड़ा नाम बनकर उभरा था. विश्व चैम्पियनशिप-2009 में विजेंदर ने कांस्य पदक जीता. उनके अलावा अखिल कुमार, जितेंद्र कुमार, ए.एल. लाकरा, दिनेश कुमार ने भी 2008 विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य जीते थे.

भारतीय मुक्केबाजी में इसे अगर अच्छे दौर की शुरुआत कहा जाए तो गलती नहीं होगी. दो ओलम्पिक में दो पदक जीतकर भारत ने अपने आप को साबित किया था. इसके अलावा अन्य टूर्नामेंट में भी भारतीय मुक्केबाज लगातार पदक ला रहे थे. इस बीच मैरी कॉम बड़ा नाम बन चुकी थीं.

और इन्हीं सबके कारण रियो ओलम्पिक-2016 में पदक की उम्मीद बंधी थी. खैर, यहां भारत को निराशा मिली और भारत ओलम्पिक में पदक की हैट्रिक नहीं लगा सका. रियो में भारत के सिर्फ तीन मुक्केबाज ही पहुंचे थे और ये तीनों पुरुष थे. इन तीनों में शिव थापा, विकास और मनोज के नाम थे.

विकास क्वार्टर फाइनल में हार गए थे जबकि बाकी दोनों मुक्केबाज प्री-क्वार्टर फाइनल में हार गए थे.

Mary Kom wins broze in 2012 Olympics
मैरी कॉम ने 2012 में तंदन ओलंपिक में जीता ता कांस्य पदक

लेकिन 2016 के बाद से अगर भारतीय मुक्केबाजों को देखा जाए तो ये दिन-ब-दिन मजबूत ही हुए हैं. बड़े टूर्नामेंट्स में लगातार पदक वो भी एक-दो नहीं इससे ज्यादा. पदक के रंग भी बदले. ऐसे में टोक्यो ओलम्पिक-2020 में भारतीय मुक्केबाजों से पदक की उम्मीद लाजमी है.

विजेंदर को भी लगता है कि इस बार उम्मीद अच्छी है लेकिन इसके लिए महासंघ और खेल मंत्रालय को भी खिलाड़ियों का ध्यान रखना होगा.

अब पेशेवर मुक्केबाज बन चुके विजेंदर ने एक मीडिया हाउस से बातकर कहा, "उम्मीद तो काफी है. नई पीढ़ी है. जोश है इनमें. कई मुक्केबाज अच्छा कर रहे हैं इसलिए भारत की उम्मीदें तो अच्छी हैं, लेकिन मैंने हाल ही में कहीं पढ़ा था कि अमित पंघल को पर्सनल कोच चाहिए लेकिन उसे मिला नहीं. तो इस तरह की समस्याएं खिलाड़ियों को न आएं. खिलाड़ियों के न्यूट्रीशन का, मेडिकल सुविधाओं का अच्छे से ध्यान रखा जाए तो उम्मीदें तो काफी हैं."

विजेंदर ने हालांकि किसी एक खिलाड़ी को पदक का दावेदार नहीं बताया और कहा कि सभी से उम्मीद की जा सकती है.

Amit panghal
अमित पंघल

उन्होंने कहा, "मुझे हर किसी से उम्मीद है. मैं किसी एक का नाम लेकर किसी पर दबाव नहीं बढ़ाना चाहता. सभी खिलाड़ी अच्छा करें, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दें मैं यही चाहता हूं."

वैसे अगर देखा जाए तो पुरुषों में अमित पंघल भारत की एक सबसे बड़ी उम्मीद बनकर उभरे हैं. राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने के अलावा अमित ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता. पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में भी वो रजत पदक लेकर आए. लगभग सभी बड़े टूर्नामेंट्स के फाइनल में अमित ने जगह बनाई है और इन सभी जगह उन्होंने जिस तरह का खेल दिखाया है उससे वो भारत की पदक की उम्मीद बने हैं.

ओलम्पिक खेलने के लिए अमित को हालांकि अभी क्वालीफायर की बाधा पार करनी है और यही एक चुनौती उनके और ओलम्पिक पदक के बीच में है.

महिलाओं में मैरी कॉम जैसी दिग्गज से पदक की उम्मीद होना लाजमी है. ओलम्पिक खेलने के लिए इस मुक्केबाज ने 48 किलोग्राम भारवर्ग से 51 किलोग्राम भारवर्ग में शिफ्ट किया. इसी भारवर्ग में वो 2012 में ओलम्पिक पदक जीत चुकी हैं और अब क्वालीफायर के लिए जरिए ओलम्पिक कोटा हासिल करने को बेताब हैं.

महिलाओं में सिर्फ मैरी कॉम ही नहीं हैं. मंजू रानी और लवलिना बोर्गोहेन दो ऐसे नाम हैं, जो खेलों के महाकुम्भ में छुपी रुस्तम साबित हो सकती हैं. मंजू ने पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था. इसलिए उनसे भी काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं.

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ओलम्पिक में भारत : नए मुक्केबाजों से अब देश को नई उम्मीद हैं

नई दिल्ली: 2008 वो साल था जब भारत ने ओलम्पिक में इतिहास रचा था. पहली बार भारत व्यक्तिगत स्वर्ण लेकर आया जो निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने दिलाया और इसी ओलम्पिक में भारत को मुक्केबाजी में भी अपने ओलंपिक इतिहास का पहला पदक मिला था.



इससे पहले ओलम्पिक खेलों में मुक्केबाजों की पदकों की झोली खाली थी.



विजेंदर सिंह वो नाम थे, जिन्होंने मुक्केबाजी में भारत को पहला ओलम्पिक पदक दिलाया था.इस पदक का रंग कांस्य था. अखिल कुमार और जितेंद्र कुमार क्वार्टर फाइनल तक पहुंचे थे. इसी ओलम्पिक में भारत के कुल छह मुक्केबाज पहुंचे थे, जिनमें से विजेंदर पदक जीतने में सफल रहे थे. हालांकि इस विश्व कप में एक भी महिला खिलाड़ी नहीं थी.



बीजिंग में फ्लाइवेट में जितेंद्र क्वार्टर फाइनल में हार गए थे जबकि बैंटमवेट में अखिल को भी अंतिम-8 में हार मिली थी. इसी तरह फेदरवेट में ए.एल. लाकरा पहले दौर में हार गए थे जबकि दिनेश कुमार लाइटहेवीवेट में पहले दौर में ही बाहर हो गए थे. सिर्फ विजेंदर ही सेमीफाइनल में पहुंचे लेकिन वहां उन्हें हार मिली.



विजेंदर लंदन ओलम्पिक-2012 में हालांकि पदक नहीं जीत पाए. वो क्वार्टर फाइनल में हार गए थे लेकिन दिग्गज महिला मुक्केबाज एमसी मैरी कॉम ने जरूर भारत को पदक दिला विजेंदर की विरासत को कायम रखा था. मैरी कॉम के हिस्से भी कांस्य पदक आया था. इसी के साथ वो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला मुक्केबाज बनी थीं.



लंदन में मैरी कॉम और विजेंदर सहित कुल 9 मुक्केबाजों ने हिस्सा लिया था, जिनमें से दो क्वार्टर फाइनल (विजेंदर और देवेंद्रो सिंह), एक सेमीफाइनल (मैरी कॉम) में पहुंचा था. इसके अलावा जय भगवान, मनोज कुमार और विकास कृष्ण प्री-क्वार्टर फाइनल में हार गए थे.



यही वो दौर था जब भारत मुक्केबाजी में बड़ा नाम बनकर उभरा था. विश्व चैम्पियनशिप-2009 में विजेंदर ने कांस्य पदक जीता. उनके अलावा अखिल कुमार, जितेंद्र कुमार, ए.एल. लाकरा, दिनेश कुमार ने भी 2008 विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य जीते थे.



भारतीय मुक्केबाजी में इसे अगर अच्छे दौर की शुरुआत कहा जाए तो गलती नहीं होगी. दो ओलम्पिक में दो पदक जीतकर भारत ने अपने आप को साबित किया था. इसके अलावा अन्य टूर्नामेंट में भी भारतीय मुक्केबाज लगातार पदक ला रहे थे. इस बीच मैरी कॉम बड़ा नाम बन चुकी थीं.



और इन्हीं सबके कारण रियो ओलम्पिक-2016 में पदक की उम्मीद बंधी थी. खैर, यहां भारत को निराशा मिली और भारत ओलम्पिक में पदक की हैट्रिक नहीं लगा सका. रियो में भारत के सिर्फ तीन मुक्केबाज ही पहुंचे थे और ये तीनों पुरुष थे. इन तीनों में शिव थापा, विकास और मनोज के नाम थे.



विकास क्वार्टर फाइनल में हार गए थे जबकि बाकी दोनों मुक्केबाज प्री-क्वार्टर फाइनल में हार गए थे.



लेकिन 2016 के बाद से अगर भारतीय मुक्केबाजों को देखा जाए तो ये दिन-ब-दिन मजबूत ही हुए हैं. बड़े टूर्नामेंट्स में लगातार पदक वो भी एक-दो नहीं इससे ज्यादा. पदक के रंग भी बदले. ऐसे में टोक्यो ओलम्पिक-2020 में भारतीय मुक्केबाजों से पदक की उम्मीद लाजमी है.



विजेंदर को भी लगता है कि इस बार उम्मीद अच्छी है लेकिन इसके लिए महासंघ और खेल मंत्रालय को भी खिलाड़ियों का ध्यान रखना होगा.



अब पेशेवर मुक्केबाज बन चुके विजेंदर ने एक मीडिया हाउस से बातकर कहा, "उम्मीद तो काफी है. नई पीढ़ी है. जोश है इनमें. कई मुक्केबाज अच्छा कर रहे हैं इसलिए भारत की उम्मीदें तो अच्छी हैं, लेकिन मैंने हाल ही में कहीं पढ़ा था कि अमित पंघल को पर्सनल कोच चाहिए लेकिन उसे मिला नहीं. तो इस तरह की समस्याएं खिलाड़ियों को न आएं. खिलाड़ियों के न्यूट्रीशन का, मेडिकल सुविधाओं का अच्छे से ध्यान रखा जाए तो उम्मीदें तो काफी हैं."



विजेंदर ने हालांकि किसी एक खिलाड़ी को पदक का दावेदार नहीं बताया और कहा कि सभी से उम्मीद की जा सकती है.



उन्होंने कहा, "मुझे हर किसी से उम्मीद है. मैं किसी एक का नाम लेकर किसी पर दबाव नहीं बढ़ाना चाहता. सभी खिलाड़ी अच्छा करें, अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दें मैं यही चाहता हूं."



वैसे अगर देखा जाए तो पुरुषों में अमित पंघल भारत की एक सबसे बड़ी उम्मीद बनकर उभरे हैं. राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक जीतने के अलावा अमित ने एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता. पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में भी वो रजत पदक लेकर आए. लगभग सभी बड़े टूर्नामेंट्स के फाइनल में अमित ने जगह बनाई है और इन सभी जगह उन्होंने जिस तरह का खेल दिखाया है उससे वो भारत की पदक की उम्मीद बने हैं.



ओलम्पिक खेलने के लिए अमित को हालांकि अभी क्वालीफायर की बाधा पार करनी है और यही एक चुनौती उनके और ओलम्पिक पदक के बीच में है.



महिलाओं में मैरी कॉम जैसी दिग्गज से पदक की उम्मीद होना लाजमी है. ओलम्पिक खेलने के लिए इस मुक्केबाज ने 48 किलोग्राम भारवर्ग से 51 किलोग्राम भारवर्ग में शिफ्ट किया. इसी भारवर्ग में वो 2012 में ओलम्पिक पदक जीत चुकी हैं और अब क्वालीफायर के लिए जरिए ओलम्पिक कोटा हासिल करने को बेताब हैं.



महिलाओं में सिर्फ मैरी कॉम ही नहीं हैं. मंजू रानी और लवलिना बोर्गोहेन दो ऐसे नाम हैं, जो खेलों के महाकुम्भ में छुपी रुस्तम साबित हो सकती हैं. मंजू ने पिछले साल विश्व चैम्पियनशिप में रजत पदक जीता था. इसलिए उनसे भी काफी उम्मीदें बढ़ गई हैं.


Conclusion:
Last Updated : Feb 18, 2020, 2:38 AM IST
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