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आत्महत्या के विचार आते थे, लेकिन कोच ने मुझे इससे बाहर निकाल लिया : सुंदर गुर्जर

पैरालंपिक में पदार्पण करते हुए कांस्य पदक जीतने वाले भाला फेंक के खिलाड़ी सुंदर सिंह गुर्जर कुछ समय पहले अपना अंग गंवाने और आत्महत्या के विचारों से जूझ रहे थे. लेकिन अब वह उन लोगों विशेषकर अपने कोच महावीर सैनी का आभार जताना चाहते हैं, जिन्होंने उन्हें मुश्किल हालात से बाहर निकाला.

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भाला फेंक खिलाड़ी सुंदर सिंह गुर्जर
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Published : Sep 7, 2021, 6:52 PM IST

नई दिल्ली: साल 2015 तक सुंदर शारीरिक रूप से पूर्णत: सक्षम खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा पेश करते थे और वह जूनियर राष्ट्रीय शिविर का हिस्सा भी थे, जिसमें टोक्यो ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा भी हिस्सा ले रहे थे.

लेकिन 25 साल के इस खिलाड़ी का जीवन उस समय बदल गया, जब एक मित्र के घर की टिन की छत उनके ऊपर गिर गई और उनका बायां हाथ काटना पड़ा.

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सुंदर ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अपने कोच की मदद से पैरा खिलाड़ी वर्ग में वापसी की. उन्होंने एक साल के भीतर साल 2016 रियो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन एक बार फिर मुसीबतों से उनका सामना हुआ.

सुंदर ने पीटीआई को दिए साक्षात्कार में कहा, मैंने वापसी की और साल 2016 पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया. लेकिन डिस्क्वालीफाई हो गया. उस समय यह सोचकर मैं टूट गया था कि सब कुछ खत्म हो गया है, मेरे लिए कुछ भी नहीं बचा.

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उन्होंने कहा, मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा, लेकिन उस समय मेरे कोच (महावीर सैनी) ने महसूस किया कि मेरे दिमाग में कुछ गलत चल रहा है. कुछ महीनों तक उन्होंने चौबीस घंटे मुझे अपने साथ रखा, मुझे अकेला नहीं छोड़ा.

सुंदर ने कहा, समय बीतने के साथ मेरे विचार बदल गए. मैं सोचने लगा कि मैं दोबारा खेलना शुरू कर सकता हूं और दुनिया के वापस जवाब दे सकता हूं.

सुंदर रियो पैरालंपिक की स्पर्धा के लिए 52 सेकेंड देर से पहुंचे थे, जिसके कारण उन्हें डिस्क्वालीफाई कर दिया गया था.

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टोक्यो पैरालंपिक की एफ46 भाला फेंक स्पर्धा के कांस्य पदक विजेता ने कहा, साल 2016 पैरालंपिक के दौरान मैं अपनी स्पर्धा में शीर्ष पर चल रहा था. लेकिन कॉल रूम में 52 सेकेंड देर से पहुंचा और मुझे डिस्क्वालीफाई कर दिया गया. इसके बाद मेरा दिल टूट गया. सुंदर ने अपने जीवन और कैरियर को बदलने का श्रेय अपने कोच महावीर को दिया.

उन्होंने कहा, मैं साल 2009 से खेलों से जुड़ा था. शुरुआत में मैं गोला फेंक का हिस्सा था और मैंने राष्ट्रीय गोला फेंक स्पर्धा में पदक भी जीता. मैंने डेढ़ साल तक गोला फेंक में हिस्सा लिया और इसके बाद मेरे कोच महावीर सैनी ने मुझे कहा कि अगर तुम्हें अपने कैरियर में अच्छा करना है तो गोला फेंक छोड़कर भाला फेंक से जुड़ना होगा.

सुंदर ने कहा, उन्होंने मेरे अंदर कुछ प्रतिभा देखी होगी और उन्होंने मुझे ट्रेनिंग देनी शुरू की. इसके बाद से अब तक कोच ने मेरा काफी समर्थन किया. सुंदर ने शिविर में नीरज के साथ ट्रेनिंग के समय को भी याद किया.

यह भी पढ़ें: हम भले ही पदक से चूक गए, लेकिन महिला हॉकी का भविष्य उज्जवल है : सलीमा टेटे

उन्होंने कहा, वह मेरा दो साल जूनियर था. मैं अंडर-20 में हिस्सा लेता था और वह अंडर-18 में. हम युवा स्तर पर कुछ प्रतियोगिताओं में एक साथ खेले. जूनियर भारतीय शिविर में मैं और नीरज 2013-14 में साइ सोनीपत शिविर में एक साथ थे. इसके बाद साल 2015 में मेरे साथ दुर्घटना हुई और मुझे पैरा स्पर्धा में हिस्सा लेना पड़ा.

सुंदर ने कहा कि अब उनका लक्ष्य अपनी कमियां दूर करके पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतना है और उन्होंने उम्मीद जताई कि साल 2024 पेरिस पैरालंपिक में वह इस उपलब्धि को हासिल कर पाएंगे.

यह भी पढ़ें: हॉकी को राष्‍ट्रीय खेल घोषित करने संबंधी याचिका पर SC का सुनवाई से इनकार

सुंदर हमवतन पैरालंपियन अवनी लेखरा और देवेंद्र झझारिया के साथ पिछले साल नवंबर से राजस्थान सरकार के वन विभाग में अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं. लेकिन उन्हें पहली बार वेतन पैरालंपिक पदक जीतने के बाद मिला.

उन्होंने कहा, मैं राजस्थान में वन विभाग में पांच नवंबर 2020 से काम कर रहा हूं. लेकिन जिस दिन मैंने पैरालंपिक पदक जीता. उस दिन दो घंटे के भीतर मुझे 10 महीने का वेतन मिल गया.

नई दिल्ली: साल 2015 तक सुंदर शारीरिक रूप से पूर्णत: सक्षम खिलाड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा पेश करते थे और वह जूनियर राष्ट्रीय शिविर का हिस्सा भी थे, जिसमें टोक्यो ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता नीरज चोपड़ा भी हिस्सा ले रहे थे.

लेकिन 25 साल के इस खिलाड़ी का जीवन उस समय बदल गया, जब एक मित्र के घर की टिन की छत उनके ऊपर गिर गई और उनका बायां हाथ काटना पड़ा.

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सुंदर ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अपने कोच की मदद से पैरा खिलाड़ी वर्ग में वापसी की. उन्होंने एक साल के भीतर साल 2016 रियो पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया, लेकिन एक बार फिर मुसीबतों से उनका सामना हुआ.

सुंदर ने पीटीआई को दिए साक्षात्कार में कहा, मैंने वापसी की और साल 2016 पैरालंपिक के लिए क्वालीफाई किया. लेकिन डिस्क्वालीफाई हो गया. उस समय यह सोचकर मैं टूट गया था कि सब कुछ खत्म हो गया है, मेरे लिए कुछ भी नहीं बचा.

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उन्होंने कहा, मैंने आत्महत्या करने के बारे में सोचा, लेकिन उस समय मेरे कोच (महावीर सैनी) ने महसूस किया कि मेरे दिमाग में कुछ गलत चल रहा है. कुछ महीनों तक उन्होंने चौबीस घंटे मुझे अपने साथ रखा, मुझे अकेला नहीं छोड़ा.

सुंदर ने कहा, समय बीतने के साथ मेरे विचार बदल गए. मैं सोचने लगा कि मैं दोबारा खेलना शुरू कर सकता हूं और दुनिया के वापस जवाब दे सकता हूं.

सुंदर रियो पैरालंपिक की स्पर्धा के लिए 52 सेकेंड देर से पहुंचे थे, जिसके कारण उन्हें डिस्क्वालीफाई कर दिया गया था.

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टोक्यो पैरालंपिक की एफ46 भाला फेंक स्पर्धा के कांस्य पदक विजेता ने कहा, साल 2016 पैरालंपिक के दौरान मैं अपनी स्पर्धा में शीर्ष पर चल रहा था. लेकिन कॉल रूम में 52 सेकेंड देर से पहुंचा और मुझे डिस्क्वालीफाई कर दिया गया. इसके बाद मेरा दिल टूट गया. सुंदर ने अपने जीवन और कैरियर को बदलने का श्रेय अपने कोच महावीर को दिया.

उन्होंने कहा, मैं साल 2009 से खेलों से जुड़ा था. शुरुआत में मैं गोला फेंक का हिस्सा था और मैंने राष्ट्रीय गोला फेंक स्पर्धा में पदक भी जीता. मैंने डेढ़ साल तक गोला फेंक में हिस्सा लिया और इसके बाद मेरे कोच महावीर सैनी ने मुझे कहा कि अगर तुम्हें अपने कैरियर में अच्छा करना है तो गोला फेंक छोड़कर भाला फेंक से जुड़ना होगा.

सुंदर ने कहा, उन्होंने मेरे अंदर कुछ प्रतिभा देखी होगी और उन्होंने मुझे ट्रेनिंग देनी शुरू की. इसके बाद से अब तक कोच ने मेरा काफी समर्थन किया. सुंदर ने शिविर में नीरज के साथ ट्रेनिंग के समय को भी याद किया.

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उन्होंने कहा, वह मेरा दो साल जूनियर था. मैं अंडर-20 में हिस्सा लेता था और वह अंडर-18 में. हम युवा स्तर पर कुछ प्रतियोगिताओं में एक साथ खेले. जूनियर भारतीय शिविर में मैं और नीरज 2013-14 में साइ सोनीपत शिविर में एक साथ थे. इसके बाद साल 2015 में मेरे साथ दुर्घटना हुई और मुझे पैरा स्पर्धा में हिस्सा लेना पड़ा.

सुंदर ने कहा कि अब उनका लक्ष्य अपनी कमियां दूर करके पैरालंपिक में स्वर्ण पदक जीतना है और उन्होंने उम्मीद जताई कि साल 2024 पेरिस पैरालंपिक में वह इस उपलब्धि को हासिल कर पाएंगे.

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सुंदर हमवतन पैरालंपियन अवनी लेखरा और देवेंद्र झझारिया के साथ पिछले साल नवंबर से राजस्थान सरकार के वन विभाग में अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं. लेकिन उन्हें पहली बार वेतन पैरालंपिक पदक जीतने के बाद मिला.

उन्होंने कहा, मैं राजस्थान में वन विभाग में पांच नवंबर 2020 से काम कर रहा हूं. लेकिन जिस दिन मैंने पैरालंपिक पदक जीता. उस दिन दो घंटे के भीतर मुझे 10 महीने का वेतन मिल गया.

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