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अर्जुन पुरस्कार विजेता सारिका ने कहा, मैंने लगभग एक दशक तक दिन में सिर्फ एक बार भोजन किया है - सारिका

भारतीय महिला खो-खो टीम की कप्तान रही सारिका काले ने कहा, "मुझे भले ही इस साल अर्जुन पुरस्कार के लिये चुना गया है लेकिन मैं अब भी उन दिनों को याद करती हूं जब मैं खो-खो खेलती थी. मैंने लगभग एक दशक तक दिन में केवल एक बार भोजन किया."

Arjun Awardee sarika kale
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Published : Aug 25, 2020, 12:34 PM IST

औरंगाबाद: प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार के लिये चुनी गयी भारतीय महिला खो-खो टीम की पूर्व कप्तान सारिका काले ने कहा कि उनकी जिंदगी में ऐसा भी समय आया था जबकि वित्तीय समस्याओं के कारण लगभग एक दशक वो दिन में केवल एक बार भोजन कर पाती थी लेकिन खेल ने उनकी जिंदगी बदल दी.

अभी महाराष्ट्र सरकार में खेल अधिकारी पद पर कार्यरत काले को 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

Arjun Awardee sarika kale
खो खो खेलते खिलाड़ी

दक्षिण एशियाई खेल 2016 में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय महिला खो-खो टीम की कप्तान रही काले ने कहा, "मुझे भले ही इस साल अर्जुन पुरस्कार के लिये चुना गया है लेकिन मैं अब भी उन दिनों को याद करती हूं जब मैं खो-खो खेलती थी. मैंने लगभग एक दशक तक दिन में केवल एक बार भोजन किया."

उन्होंने कहा, "अपने परिवार की स्थिति के कारण मैं खेल में आयी. इस खेल ने मेरी जिंदगी बदल दी और अब मैं उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर में खेल अधिकारी पद पर कार्य कर रही हूं."

इस 27 वर्षीय खिलाड़ी ने याद किया कि उनके चाचा महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में खेल खेला करते थे और वो उन्हें 13 साल की उम्र में मैदान पर ले गए थे. इसके बाद वो लगातार खेलती रही.

Arjun Awardee sarika kale
अर्जुन पुरस्कार विजेता सारिका

उन्होंने कहा, "मेरी मां सिलाई और घर के अन्य काम करती थी. मेरे पिताजी की शारीरिक मजबूरियां थी और इसलिए वो ज्यादा कमाई नहीं कर पाते थे. हमारा पूरा परिवार मेरे दादा-दादी की कमाई पर निर्भर था."

काले ने कहा, "उन दिनों में मुझे खाने के लिये दिन में केवल एक बार भोजन मिलता था. मुझे तभी खास भोजन मिलता था जब मैं शिविर में जाती थी या किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये जाती थी."

काले ने कहा कि कई परेशानियों के बावजूद उनके परिवार ने उनका साथ दिया और उन्हें कभी विभिन्न टूर्नामेंटों में भाग लेने से नहीं रोका.

Arjun Awardee sarika kale
खो खो खेलते खिलाड़ी

उन्होंने कहा, "खेलों में ग्रामीण और शहरी माहौल का अंतर ये होता है कि ग्रामीण लोगों को आपकी सफलता देर में समझ में आती है भले ही वो कितनी ही बड़ी क्यों न हो."

उनके कोच चंद्रजीत जाधव ने कहा कि काले ने वित्तीय समस्याओं के कारण ये खेल छोड़ा.

जाधव ने कहा, "सारिका 2016 में अपने परिवार की वित्तीय समस्याओं के कारण परेशान थी. उसने यहां तक कि खेल छोड़ने का फैसला कर लिया था. उसकी दादी ने मुझे बताया कि उसने खुद को कमरे में बंद कर दिया है."

उन्होंने कहा, "सारिका से बात करने के बाद वह मैदान पर लौट आयी और ये टर्निंग प्वाइंट था. उसने अपना खेल जारी रखा और पिछले साल उसे सरकारी नौकरी मिल गयी जिससे उससे वित्तीय तौर पर मजबूत होने में मदद मिली."

औरंगाबाद: प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार के लिये चुनी गयी भारतीय महिला खो-खो टीम की पूर्व कप्तान सारिका काले ने कहा कि उनकी जिंदगी में ऐसा भी समय आया था जबकि वित्तीय समस्याओं के कारण लगभग एक दशक वो दिन में केवल एक बार भोजन कर पाती थी लेकिन खेल ने उनकी जिंदगी बदल दी.

अभी महाराष्ट्र सरकार में खेल अधिकारी पद पर कार्यरत काले को 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा.

Arjun Awardee sarika kale
खो खो खेलते खिलाड़ी

दक्षिण एशियाई खेल 2016 में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय महिला खो-खो टीम की कप्तान रही काले ने कहा, "मुझे भले ही इस साल अर्जुन पुरस्कार के लिये चुना गया है लेकिन मैं अब भी उन दिनों को याद करती हूं जब मैं खो-खो खेलती थी. मैंने लगभग एक दशक तक दिन में केवल एक बार भोजन किया."

उन्होंने कहा, "अपने परिवार की स्थिति के कारण मैं खेल में आयी. इस खेल ने मेरी जिंदगी बदल दी और अब मैं उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर में खेल अधिकारी पद पर कार्य कर रही हूं."

इस 27 वर्षीय खिलाड़ी ने याद किया कि उनके चाचा महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में खेल खेला करते थे और वो उन्हें 13 साल की उम्र में मैदान पर ले गए थे. इसके बाद वो लगातार खेलती रही.

Arjun Awardee sarika kale
अर्जुन पुरस्कार विजेता सारिका

उन्होंने कहा, "मेरी मां सिलाई और घर के अन्य काम करती थी. मेरे पिताजी की शारीरिक मजबूरियां थी और इसलिए वो ज्यादा कमाई नहीं कर पाते थे. हमारा पूरा परिवार मेरे दादा-दादी की कमाई पर निर्भर था."

काले ने कहा, "उन दिनों में मुझे खाने के लिये दिन में केवल एक बार भोजन मिलता था. मुझे तभी खास भोजन मिलता था जब मैं शिविर में जाती थी या किसी प्रतियोगिता में भाग लेने के लिये जाती थी."

काले ने कहा कि कई परेशानियों के बावजूद उनके परिवार ने उनका साथ दिया और उन्हें कभी विभिन्न टूर्नामेंटों में भाग लेने से नहीं रोका.

Arjun Awardee sarika kale
खो खो खेलते खिलाड़ी

उन्होंने कहा, "खेलों में ग्रामीण और शहरी माहौल का अंतर ये होता है कि ग्रामीण लोगों को आपकी सफलता देर में समझ में आती है भले ही वो कितनी ही बड़ी क्यों न हो."

उनके कोच चंद्रजीत जाधव ने कहा कि काले ने वित्तीय समस्याओं के कारण ये खेल छोड़ा.

जाधव ने कहा, "सारिका 2016 में अपने परिवार की वित्तीय समस्याओं के कारण परेशान थी. उसने यहां तक कि खेल छोड़ने का फैसला कर लिया था. उसकी दादी ने मुझे बताया कि उसने खुद को कमरे में बंद कर दिया है."

उन्होंने कहा, "सारिका से बात करने के बाद वह मैदान पर लौट आयी और ये टर्निंग प्वाइंट था. उसने अपना खेल जारी रखा और पिछले साल उसे सरकारी नौकरी मिल गयी जिससे उससे वित्तीय तौर पर मजबूत होने में मदद मिली."

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