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महात्मा गांधी को था फुटबॉल का जुनून, दक्षिण अफ्रीका में शुरू किए थे तीन क्लब - महात्मा गांधी

महात्मा गांधी ने 1896 में डरबन, प्रीटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबॉल क्लबों की स्थापना की. गांधी ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया.

Mahatma Gandhi
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Published : Oct 21, 2019, 4:09 PM IST

Updated : Oct 21, 2019, 4:22 PM IST

नई दिल्ली: महात्मा गांधी को दुनिया उनके सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के लिए जानती है. गांधी, जिन्हें हम प्यार से बापू बुलाते हैं, उन्होंने भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद कराने का महान काम अपने हाथों में लेने से पहले अच्छा-खासा समय दक्षिण अफ्रीका में बिताया था. दक्षिण अफ्रीका में ही गांधी के साथ अंतिम सांस तक रहने वाले सिद्धांतों की नींव पड़ी.

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में तीन क्लबों की स्थापना की

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सिद्धांतों को पहली बार आजमाया और सफल भी हुए. इन्हीं सिद्धातों को दूसरे रूप में आजमाने के लिए गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 1896 में डरबन, प्रीटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबॉल क्लबों की स्थापना की और इन्हें पैसिव रेजिस्टर्स सॉकर क्लब्स नाम दिया.

फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया

सबसे अहम बात ये थी कि गांधी ने अपनी इन फुटबॉल टीमों को उन्हीं गुणों और सिद्धांतों से लैस किया, जिसकी बदौलत वे पहले दक्षिण अफ्रीकी में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई और फिर भारत की स्वतंत्रता की जंग में कूदे और सफल भी रहे. गांधी ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया और खुद को एक मध्यस्थ और प्रदर्शनकारी के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया.

Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी 1914 में

मैच वाली राशि के उपयोग का तरीखा अनोखा

गांधी की फुटबॉल टीम में वे लोग शामिल थे, जो दक्षिण अफ्रीका में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई में गांधी के साथ थे. ये स्थानीय लोग थे और वहां के गोरे शासकों और गोरी स्थानीय जनता के अत्यचारों से मुक्ति पाना चाहते थे. गांधी ने इन्हें एक माध्यम बनाया और इन्हें खेल की शिक्षा न देकर इनका उपयोग बड़ी समझदारी से अपनी सामाजिक मांगों को पूरा करने के लिए किया. गांधी की टीमें जो भी मैच जीततीं, उससे मिलने वाली राशि का उपयोग उन लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए किया जाता था, जो अहिंसा की लड़ाई में जेल में डाल दिए गए थे.

1914 में भारत लौट आए गांधी

ये काफी समय तक चलता रहा, लेकिन अंतत: महात्मा गांधी को 1914 में भारत आना पड़ा. उन्होंने हालांकि इन क्लबों को बंद नहीं किया. इसकी कमान गांधी ने 1913 के लेबर स्ट्राइक में शामिल अपने पुराने साथी अल्बर्ट क्रिस्टोफर को सौंप दी. क्रिस्टोफर ने 1914 में दक्षिण अफ्रीका की पहली पेशेवर फुटबॉल टीम का गठन किया. इस टीम में मुख्यतया भारतीय मूल के खिलाड़ियों को रखा गया.

फुटबॉल के माध्यम से लोगों को आंदोलन से जोड़ा

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में अफ्रीकन हिस्ट्री के प्रोफेसर पीटर अलेगी इसे बहुत बड़ी घटना मानते हैं. एक वेबसाइट ने अलेगी के हवाले से लिखा है, "यह अफ्रीका महाद्वीप का पहला ऐसा संगठित फुटबॉल समूह था, जिसका नेतृत्व वहां के गोरे लोगों के हाथों में नहीं था. गांधी ने फुटबॉल के माध्यम से लोगों को अपने सामाजिक आंदोलन से जोड़ा. मैचों के दौरान गांधी और उनके सहयोगी अक्सर संदेश लिखे पैम्पलेट बांटा करते थे."

Mahatma Gandhi
1896 में किया था फुटबॉल क्लबों की स्थापना

साउथ अफ्रीकन इंडोर फुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष पूबालन गोविंदसामी ने फीफा को दिए साक्षात्कार में गांधी को फुटबॉल लेजेंड करार दिया. फीफा ने पूबालन के हवाले से लिखा है, "गांधी ने समझ लिया था कि इस देश में फुटबॉल के प्रति लोगों के अंदर अपार प्यार है और इसी प्यार के माध्यम से उन्हें सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनाया जा सकता है."

फुटबॉल के प्रति जुनूनी थे गांधी

पूबालन ने हालांकि गांधी के महान व्यक्तित्व के एक ऐसे अनछुए पहलू को लोगों के सामने पेश किया, जिसके बारे में लोग सोच भी नहीं सकते थे.

वे कहते हैं, "गांधी फुटबॉल के प्रति जुनूनी थे. वे इसके माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करना चाहते थे. गांधी ने फुटबॉल को सामाजिक बदलाव के साधन के रूप में इस्तेमाल किया. इसका कारण ये था कि वे जानते थे कि इस खेल के माध्यम से टीम वर्क को प्रोमोट किया जा सकता है. इसके माध्यम से गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रह रही भारतीय जनता को अपने साथ किया और फिर एकीकृत करते हुए उन्हें वहां की सामाजिक बुराइयों के प्रति लड़ने के लिए प्रेरित किया. ये उन्नत सोच सिर्फ गांधी जैसे महान विचारक के पास ही हो सकती थी."

भारतीयों ने फुटबॉल क्लबों की स्थापना की

फुटबॉल के लिए गांधी के खेतों का इस्तेमाल होता था. हालांकि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि बापू ने भी कभी फुटबॉल खेली हो, लेकिन वे फुटबॉल मैचों के दौरान सक्रिय रूप से मौजूद रहते थे. बापू जब भारत लौटे तब भी उनके क्लब जिंदा रहे और कई भारतीय मूल के लोगों ने मूनलाइटर्स एफसी और मैनिंग रेंजर्स एफसी जैसे क्लबों की स्थापना की.

Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी को था फुटबॉल का जुनून

पूर्व क्लबों से नहीं टूटा सम्पर्क

भारत आने के बाद बापू स्वतंत्रता की लड़ाई में व्यस्त हो गए लेकिन उनका अपने पूर्व क्लबों से सम्पर्क नहीं टूटा. उनके पुराने दोस्त क्रिस्टोफर ने उनके कहने पर अपनी क्रिस्टोफर कंटींजेंट नाम की एक टीम के साथ 1921 से 1922 के बीच भारत दौरा किया और भारत में कई क्षेत्रों में 14 मैच खेले. फीफा डॉट कॉम के मुताबिक इन मैचों में गांधी की भागीदारी काफी सक्रिय थी. खासतौर पर अहमदाबाद दौरे के दौरान गांधी ने इस टीम के साथ काफी समय व्यतीत किया था.

बाद में हालांकि भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई के बल पकड़ने के बाद गांधी ने वैचारिक रूप से फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों का विरोध किया था, क्योंकि उनके मुताबिक ये औपनिवेशिकता और विलासिता के प्रतीक हैं और इनसे बचा जाना चाहिए. बापू ने हालांकि हमेशा से ये माना कि फुटबॉल में लोगों को एकीकृत करने की ताकत है और इस ताकत का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए. उनके इस कथन में इस खेल के प्रति उनका जुनून छुपा था, जो उनके युवाकाल से ही परिलक्षित हो रहा था.

नई दिल्ली: महात्मा गांधी को दुनिया उनके सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के लिए जानती है. गांधी, जिन्हें हम प्यार से बापू बुलाते हैं, उन्होंने भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद कराने का महान काम अपने हाथों में लेने से पहले अच्छा-खासा समय दक्षिण अफ्रीका में बिताया था. दक्षिण अफ्रीका में ही गांधी के साथ अंतिम सांस तक रहने वाले सिद्धांतों की नींव पड़ी.

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में तीन क्लबों की स्थापना की

गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सिद्धांतों को पहली बार आजमाया और सफल भी हुए. इन्हीं सिद्धातों को दूसरे रूप में आजमाने के लिए गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 1896 में डरबन, प्रीटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबॉल क्लबों की स्थापना की और इन्हें पैसिव रेजिस्टर्स सॉकर क्लब्स नाम दिया.

फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया

सबसे अहम बात ये थी कि गांधी ने अपनी इन फुटबॉल टीमों को उन्हीं गुणों और सिद्धांतों से लैस किया, जिसकी बदौलत वे पहले दक्षिण अफ्रीकी में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई और फिर भारत की स्वतंत्रता की जंग में कूदे और सफल भी रहे. गांधी ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया और खुद को एक मध्यस्थ और प्रदर्शनकारी के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया.

Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी 1914 में

मैच वाली राशि के उपयोग का तरीखा अनोखा

गांधी की फुटबॉल टीम में वे लोग शामिल थे, जो दक्षिण अफ्रीका में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई में गांधी के साथ थे. ये स्थानीय लोग थे और वहां के गोरे शासकों और गोरी स्थानीय जनता के अत्यचारों से मुक्ति पाना चाहते थे. गांधी ने इन्हें एक माध्यम बनाया और इन्हें खेल की शिक्षा न देकर इनका उपयोग बड़ी समझदारी से अपनी सामाजिक मांगों को पूरा करने के लिए किया. गांधी की टीमें जो भी मैच जीततीं, उससे मिलने वाली राशि का उपयोग उन लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए किया जाता था, जो अहिंसा की लड़ाई में जेल में डाल दिए गए थे.

1914 में भारत लौट आए गांधी

ये काफी समय तक चलता रहा, लेकिन अंतत: महात्मा गांधी को 1914 में भारत आना पड़ा. उन्होंने हालांकि इन क्लबों को बंद नहीं किया. इसकी कमान गांधी ने 1913 के लेबर स्ट्राइक में शामिल अपने पुराने साथी अल्बर्ट क्रिस्टोफर को सौंप दी. क्रिस्टोफर ने 1914 में दक्षिण अफ्रीका की पहली पेशेवर फुटबॉल टीम का गठन किया. इस टीम में मुख्यतया भारतीय मूल के खिलाड़ियों को रखा गया.

फुटबॉल के माध्यम से लोगों को आंदोलन से जोड़ा

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में अफ्रीकन हिस्ट्री के प्रोफेसर पीटर अलेगी इसे बहुत बड़ी घटना मानते हैं. एक वेबसाइट ने अलेगी के हवाले से लिखा है, "यह अफ्रीका महाद्वीप का पहला ऐसा संगठित फुटबॉल समूह था, जिसका नेतृत्व वहां के गोरे लोगों के हाथों में नहीं था. गांधी ने फुटबॉल के माध्यम से लोगों को अपने सामाजिक आंदोलन से जोड़ा. मैचों के दौरान गांधी और उनके सहयोगी अक्सर संदेश लिखे पैम्पलेट बांटा करते थे."

Mahatma Gandhi
1896 में किया था फुटबॉल क्लबों की स्थापना

साउथ अफ्रीकन इंडोर फुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष पूबालन गोविंदसामी ने फीफा को दिए साक्षात्कार में गांधी को फुटबॉल लेजेंड करार दिया. फीफा ने पूबालन के हवाले से लिखा है, "गांधी ने समझ लिया था कि इस देश में फुटबॉल के प्रति लोगों के अंदर अपार प्यार है और इसी प्यार के माध्यम से उन्हें सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनाया जा सकता है."

फुटबॉल के प्रति जुनूनी थे गांधी

पूबालन ने हालांकि गांधी के महान व्यक्तित्व के एक ऐसे अनछुए पहलू को लोगों के सामने पेश किया, जिसके बारे में लोग सोच भी नहीं सकते थे.

वे कहते हैं, "गांधी फुटबॉल के प्रति जुनूनी थे. वे इसके माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करना चाहते थे. गांधी ने फुटबॉल को सामाजिक बदलाव के साधन के रूप में इस्तेमाल किया. इसका कारण ये था कि वे जानते थे कि इस खेल के माध्यम से टीम वर्क को प्रोमोट किया जा सकता है. इसके माध्यम से गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रह रही भारतीय जनता को अपने साथ किया और फिर एकीकृत करते हुए उन्हें वहां की सामाजिक बुराइयों के प्रति लड़ने के लिए प्रेरित किया. ये उन्नत सोच सिर्फ गांधी जैसे महान विचारक के पास ही हो सकती थी."

भारतीयों ने फुटबॉल क्लबों की स्थापना की

फुटबॉल के लिए गांधी के खेतों का इस्तेमाल होता था. हालांकि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि बापू ने भी कभी फुटबॉल खेली हो, लेकिन वे फुटबॉल मैचों के दौरान सक्रिय रूप से मौजूद रहते थे. बापू जब भारत लौटे तब भी उनके क्लब जिंदा रहे और कई भारतीय मूल के लोगों ने मूनलाइटर्स एफसी और मैनिंग रेंजर्स एफसी जैसे क्लबों की स्थापना की.

Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी को था फुटबॉल का जुनून

पूर्व क्लबों से नहीं टूटा सम्पर्क

भारत आने के बाद बापू स्वतंत्रता की लड़ाई में व्यस्त हो गए लेकिन उनका अपने पूर्व क्लबों से सम्पर्क नहीं टूटा. उनके पुराने दोस्त क्रिस्टोफर ने उनके कहने पर अपनी क्रिस्टोफर कंटींजेंट नाम की एक टीम के साथ 1921 से 1922 के बीच भारत दौरा किया और भारत में कई क्षेत्रों में 14 मैच खेले. फीफा डॉट कॉम के मुताबिक इन मैचों में गांधी की भागीदारी काफी सक्रिय थी. खासतौर पर अहमदाबाद दौरे के दौरान गांधी ने इस टीम के साथ काफी समय व्यतीत किया था.

बाद में हालांकि भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई के बल पकड़ने के बाद गांधी ने वैचारिक रूप से फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों का विरोध किया था, क्योंकि उनके मुताबिक ये औपनिवेशिकता और विलासिता के प्रतीक हैं और इनसे बचा जाना चाहिए. बापू ने हालांकि हमेशा से ये माना कि फुटबॉल में लोगों को एकीकृत करने की ताकत है और इस ताकत का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए. उनके इस कथन में इस खेल के प्रति उनका जुनून छुपा था, जो उनके युवाकाल से ही परिलक्षित हो रहा था.

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महात्मा गांधी को था फुटबाल का जूनून, दक्षिण अफ्रीका में शुरू किए थे तीन क्लब

नई दिल्ली: महात्मा गांधी को दुनिया उनके सत्य, अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के लिए जानती है. गांधी, जिन्हें हम प्यार से बापू बुलाते हैं, उन्होंने भारत को अंग्रेजों की बेड़ियों से आजाद कराने का महान काम अपने हाथों में लेने से पहले अच्छा-खासा समय दक्षिण अफ्रीका में बिताया था. दक्षिण अफ्रीका में ही गांधी के साथ अंतिम सांस तक रहने वाले सिद्धांतों की नींव पड़ी.



गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में अपने सिद्धांतों को पहली बार आजमाया और सफल भी हुए. इन्हीं सिद्धातों को दूसरे रूप में आजमाने के लिए गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में 1896 में डरबन, प्रीटोरिया और जोहान्सबर्ग में तीन फुटबॉल क्लबों की स्थापना की और इन्हें पैसिव रेजिस्टर्स सॉकर क्लब्स नाम दिया.



सबसे अहम बात ये थी कि गांधी ने अपनी इन फुटबॉल टीमों को उन्हीं गुणों और सिद्धांतों से लैस किया, जिसकी बदौलत वे पहले दक्षिण अफ्रीकी में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई और फिर भारत की स्वतंत्रता की जंग में कूदे और सफल भी रहे. गांधी ने दक्षिण अफ्रीकी धरती पर फुटबॉल को सत्याग्रह का माध्यम बनाया और खुद को एक मध्यस्थ और प्रदर्शनकारी के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया.



गांधी की फुटबॉल टीम में वे लोग शामिल थे, जो दक्षिण अफ्रीका में नस्लवाद के खिलाफ लड़ाई में गांधी के साथ थे. ये स्थानीय लोग थे और वहां के गोरे शासकों और गोरी स्थानीय जनता के अत्यचारों से मुक्ति पाना चाहते थे. गांधी ने इन्हें एक माध्यम बनाया और इन्हें खेल की शिक्षा न देकर इनका उपयोग बड़ी समझदारी से अपनी सामाजिक मांगों को पूरा करने के लिए किया. गांधी की टीमें जो भी मैच जीततीं, उससे मिलने वाली राशि का उपयोग उन लोगों के परिजनों को आर्थिक मदद पहुंचाने के लिए किया जाता था, जो अहिंसा की लड़ाई में जेल में डाल दिए गए थे.



ये काफी समय तक चलता रहा, लेकिन अंतत: महात्मा गांधी को 1914 में भारत आना पड़ा. उन्होंने हालांकि इन क्लबों को बंद नहीं किया. इसकी कमान गांधी ने 1913 के लेबर स्ट्राइक में शामिल अपने पुराने साथी अल्बर्ट क्रिस्टोफर को सौंप दी. क्रिस्टोफर ने 1914 में दक्षिण अफ्रीका की पहली पेशेवर फुटबॉल टीम का गठन किया. इस टीम में मुख्यतया भारतीय मूल के खिलाड़ियों को रखा गया.



मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में अफ्रीकन हिस्ट्री के प्रोफेसर पीटर अलेगी इसे बहुत बड़ी घटना मानते हैं. एक वेबसाइट ने अलेगी के हवाले से लिखा है, "यह अफ्रीका महाद्वीप का पहला ऐसा संगठित फुटबॉल समूह था, जिसका नेतृत्व वहां के गोरे लोगों के हाथों में नहीं था. गांधी ने फुटबॉल के माध्यम से लोगों को अपने सामाजिक आंदोलन से जोड़ा. मैचों के दौरान गांधी और उनके सहयोगी अक्सर संदेश लिखे पैम्पलेट बांटा करते थे."



साउथ अफ्रीकन इंडोर फुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष पूबालन गोविंदसामी ने फीफा को दिए साक्षात्कार में गांधी को फुटबॉल लेजेंड करार दिया. फीफा ने पूबालन के हवाले से लिखा है, "गांधी ने समझ लिया था कि इस देश में फुटबॉल के प्रति लोगों के अंदर अपार प्यार है और इसी प्यार के माध्यम से उन्हें सामाजिक आंदोलन का हिस्सा बनाया जा सकता है."



पूबालन ने हालांकि गांधी के महान व्यक्तित्व के एक ऐसे अनछुए पहलू को लोगों के सामने पेश किया, जिसके बारे में लोग सोच भी नहीं सकते थे.



वे कहते हैं, "गांधी फुटबाल के प्रति जुनूनी थे. वे इसके माध्यम से आत्मिक शांति प्राप्त करना चाहते थे. गांधी ने फुटबॉल को सामाजिक बदलाव के साधन के रूप में इस्तेमाल किया. इसका कारण ये था कि वे जानते थे कि इस खेल के माध्यम से टीम वर्क को प्रोमोट किया जा सकता है. इसके माध्यम से गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में रह रही भारतीय जनता को अपने साथ किया और फिर एकीकृत करते हुए उन्हें वहां की सामाजिक बुराइयों के प्रति लड़ने के लिए प्रेरित किया. ये उन्नत सोच सिर्फ गांधी जैसे महान विचारक के पास ही हो सकती थी."



फुटबॉल के लिए गांधी के खेतों का इस्तेमाल होता था. हालांकि इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि बापू ने भी कभी फुटबॉल खेली हो, लेकिन वे फुटबॉल मैचों के दौरान सक्रिय रूप से मौजूद रहते थे. बापू जब भारत लौटे तब भी उनके क्लब जिंदा रहे और कई भारतीय मूल के लोगों ने मूनलाइटर्स एफसी और मैनिंग रेंजर्स एफसी जैसे क्लबों की स्थापना की.



भारत आने के बाद बापू स्वतंत्रता की लड़ाई में व्यस्त हो गए लेकिन उनका अपने पूर्व क्लबों से सम्पर्क नहीं टूटा. उनके पुराने दोस्त क्रिस्टोफर ने उनके कहने पर अपनी क्रिस्टोफर कंटींजेंट नाम की एक टीम के साथ 1921 से 1922 के बीच भारत दौरा किया और भारत में कई क्षेत्रों में 14 मैच खेले. फीफा डॉट कॉम के मुताबिक इन मैचों में गांधी की भागीदारी काफी सक्रिय थी. खासतौर पर अहमदाबाद दौरे के दौरान गांधी ने इस टीम के साथ काफी समय व्यतीत किया था.



बाद में हालांकि भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई के बल पकड़ने के बाद गांधी ने वैचारिक रूप से फुटबॉल और क्रिकेट जैसे खेलों का विरोध किया था, क्योंकि उनके मुताबिक ये औपनिवेशिकता और विलासिता के प्रतीक हैं और इनसे बचा जाना चाहिए. बापू ने हालांकि हमेशा से ये माना कि फुटबॉल में लोगों को एकीकृत करने की ताकत है और इस ताकत का सकारात्मक उपयोग होना चाहिए. उनके इस कथन में इस खेल के प्रति उनका जुनून छुपा था, जो उनके युवाकाल से ही परिलक्षित हो रहा था.




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Last Updated : Oct 21, 2019, 4:22 PM IST
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