नई दिल्ली: भारतीय फुटबॉल टीम के मुख्य कोच का पद संभालने के लिए पूर्व खिलाडियों की भी राय जरुरी है. जबकि कुछ ने विदेशी कोचों की आवश्यकता के बारे में बात की है, जबकि भारत में पर्याप्त अनुभवी खिलाड़ी मौजुद हैं.
भारतीय फुटबॉल टीम के पूर्व कप्तान बाईचुंग भूटिया ने कहा कि कोच की प्रोफाइल ज्यादा मायने रखती है और राष्ट्रीयता नहीं. उन्होंने कहा कि, "यह उस व्यक्ति की प्रोफाइल पर निर्भर करता है की वे भारतीय हैं या फिर विदेशी. हमें ये देख कर कोच ता चयन करना है की उसने किस तरह का काम किया है."
भूटिया ने भी कहा कि उनके लिए भारतीय और विदेशी कोच को लेकर बहस करना बहुत मुश्किल है और इस फैसले का कोच के चयन से कोई लेना-देना नहीं है. यह कहना बहुत मुश्किल है कि मैं किसी विदेशी को पसंद करता हूं या फिर मैं किसी भारतीय को पसंद करता हूं. निर्णय केवल अनुभव और व्यक्ति के कैलिबर को ध्यान में रखते हुए लिया जाना चाहिए.
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) ने चार दशकों के बाद थाईलैंड में किंग्स कप के आगामी संस्करण में भाग लेने का फैसला किया है - भारत ने आखिरी बार 1977 में टूर्नामेंट में भाग लिया था. एआईएफएफ ने पहले से मौजूद वित्तीय बाधाओं के कारण एक हाई-प्रोफाइल कोच को बनाने में असमर्थता व्यक्त की है और अब ये देखना दिलचस्प होगा कि क्या एआईएफएफ किसी नए कोच को अच्छा भुगतान करता है या नहीं
इसलिए, मायने ये रखता है की कोच ने अभी तक कैसा खेला है और उसका पिछला रिकॉर्ड कैसा है राष्ट्रीयता कभी मायने नहीं रखती है. एशियाई कप में टीम को मिली सफलता के साथ, यह महत्वपूर्ण होगा कि भारतीय फुटबॉल यहां से कोई भी कदम पीछे न ले जाए.