नई दिल्ली: भारत के पूर्व कप्तान और महान बल्लेबाजों में शुमार सचिन तेंदुलकर ने कहा है कि भारत को एडिलेड ओवल मैदान पर खेले गए पहले टेस्ट मैच की हार से बाहर निकलने के लिए कुछ अद्भुत सा करने की जरूरत है. सचिन ने एक मीडिया हाउस को दिए इंटरव्यू में भारतीय टीम से जुड़ी कई बातों पर चर्चा की.
भारत को पहले टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया ने 8 विकेट से हरा दिया था. इस मैच में सबसे ज्यादा शर्मनाक रहा भारत का दूसरी पारी में प्रदर्शन. दूसरी पारी में टीम सिर्फ 36 रन ही बना सकी जो टेस्ट की एक पारी में उसका अब तक का न्यूनतम स्कोर है.
शीर्ष क्रम की विफलता एक कारण रही थी लेकिन 47 साल के तेंदुलकर को ऐसा नहीं लगता कि ये खिलाड़ियों पर दबाव का कारण बन सकता है. सचिन ने कहा कि शीर्ष क्रम के बल्लेबाजों की तकनीक में खामियों के कारण भारत के प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ा. सचिन ने फ्रंटलाइन बल्लेबाजों में एक आम कमी की बात कही और वो है- मजबूत फॉरवर्ड डिफेंस.
सचिन ने साथ ही कहा कि अगर भारत दौरे की शुरुआत टी-20 सीरीज से करती और इसके बाद वनडे और फिर टेस्ट सीरीज खेलती जिसका आखिरी मैच गुलाबी गेंद से खेला जाता तो ये लाल गेंद से गुलाबी गेंद की तरफ जाने की अच्छी प्रक्रिया होती.
इंटरव्यू के कुछ अंश
सवाल : क्या आपको ऐसी आशंका थी की डे-नाइट टेस्ट मैच में ऑस्ट्रेलिया का अनुभव ज्यादा है तो भारत के खिलाफ उसे बढ़त मिलेगी?
जवाब : पहला टेस्ट ही एक डर था क्योंकि मुझे लगता है कि एडिलेड से पहले हमने जो आखिरी टेस्ट खेला वो फरवरी में था. इसके बाद कोई क्रिकेट नहीं खेली गई (कोविड-19 के कारण). हर कोई आईपीएल की तैयारी कर रहा था जो टी-20 प्रारूप है. मेरे हिसाब से बेहतर ये होता कि आईपीएल के बाद आप ऑस्ट्रेलिया के साथ टी-20 सीरीज खेलते इसके बाद वनडे और फिर टेस्ट सीरीज जिसकी शुरुआत लाल गेंद से करते. आखिरी टेस्ट गुलाबी गेंद से खेलते. मेरे हिसाब से यह गुलाबी गेंद टेस्ट मैच के लिए अच्छा ट्रांजिशन होता.
सवाल : आपकी आशंका क्या थी और आपका डर क्या था जो सच हुआ?
जवाब : पहली पारी में हमारे पास बढ़त थी और हमने अच्छी शुरुआत की थी. उस समय कोई डर नहीं था. बात यह थी कि जो मैंने अभी कही, मैंने जब दौरे का कार्यक्रम देखा, जो मैंने पहले कहा वो एक अच्छा विकल्प हो सकता था. हमने पहली पारी में अच्छी क्रिकेट खेली लेकिन दूसरी पारी में वो एक घंटा काफी मुश्किल था और तभी चीजें बदल गईं. साथ ही टिम पेन ने आकर अहम रन बनाए. अगर हमारी पहली पारी की बढ़त 90 या 100 रनों की होती तो सोच अलग होती. साथ ही समय भी काफी अहम रहा. इसने टेस्ट में बड़ा रोल निभाया.
सवाल : क्या आप इस तरह के परिणाम की उम्मीद कर रहे थे, खासकर तब जब दूसरी पारी में भारतीय बल्लेबाजी जिस तरह से बिखरी?
जवाब : नहीं, मैं इसकी उम्मीद नहीं कर रहा था क्योंकि मुझे लगता है कि पहली पारी में हमने अच्छी बल्लेबाजी की। दूसरी पारी में हमारे बल्लेबाज ज्यादा खेल नहीं पाए. गेंद ज्यादा मूव नहीं कर रही थी, थोड़ी बहुत ही कर रही थी. आमतौर पर जब बल्लेबाज रन करते हैं तो हम दूसरी चीजों पर नहीं देखते हैं जैसे कि वह कितनी बार बीट हुआ. लेकिन जब बल्ले से एज लगती है तो हम कई चीजों पर बात करते हैं.
एक बदलाव यह है कि आप आगे की तरफ बड़ा पैर निकालें, जो मुझे लगता है कि नहीं हुआ. विदेशों में मुझे लगता है कि आगे बड़ा पैर निकालना काफी अहम है. कम पैर निकालना आपको परेशानी में डाल सकता है और अगर सीम से थोड़ा बहुत मूवमेंट है तो आपके हाथ कम फुटवर्क की भरपाई करेंगे.
सवाल : भारतीय बल्लेबाजों की क्या कमी रहीं? क्या वो स्विंग होती गेंदों को टैकल नहीं कर पाए या स्थिति ही ऐसी थी?
जवाब : पहली पारी में 244 रन बनाकर और उन्हें 200 रनों के भीतर आउट कर हमारे पास बढ़त तो थी. हमने पृथ्वी शॉ का विकेट जल्दी खो दिया. मुझे अभी भी याद है कि जसप्रीत बुमराह उस शाम को खेले थे. कुल मिलाकर ड्रेसिंग रूम में माहौल अच्छा था. अगली सुबह मुझे लगता है कि फुटवर्क थोड़ा बेहतर हो सकता था, आप ज्यादा फ्रंटफुट पर खेलते, लंबा पैर निकालते. अगर आप लंबा पैर निकालते हैं तो आपके हाथ अपने आप शरीर के पास आ जाते हैं. अगर पैर अच्छे से आगे नहीं निकालते हैं तो आपके हाथ शरीर से दूर रहते हैं.
सवाल : मैच के बाद विराट ने बल्लेबाजी को इच्छाशक्ति की कमी की बात कही थी. क्या यह इसलिए भी था क्योंकि बल्लेबाजों के पास सही तकनीक नहीं थी और वह दबाव को झेल नहीं पाए?
जवाब : उन्होंने दबाव की स्थिति को झेला है. पृथ्वी और मयंक को छोड़कर सभी खिलाड़ियों ने काफी क्रिकेट खेली है. विराट, रहाणे, पुजारा, साहा काफी लंबे समय से खेल रहे हैं, वहीं हनुमा विहारी इन लोगों की अपेक्षा कम खेले हैं. इसलिए खिलाड़ियों में दबाव को झेलने की क्षमता तो है और उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ किया. लेकिन कई बार आपको किस्मत की भी जरूरत होती है. और जैसा मैंने कहा कि ज्यादा ऐसे मौके नहीं थे कि बल्लेबाज बीट हो रहे हों और बिना विकेट खोए बल्लेबाजी कर रहे हों. ऐसा नहीं हुआ. गेंद किनारा लेकर सीधे फील्डरों के हाथ में जा रही थीं. पहली पारी में भी कई बार एज लगीं लेकिन वह फील्डरों के हाथ में नहीं गईं. मुझे याद है कि तीन बार गेंद फील्डर तक नहीं पहुंची. दूसरी पारी में विकेट सख्त हो गई और इससे ज्यादा उछाल, तेजी मिलने लगी. मैं फिर कहूंगा कि अगर आप लंबा पैर निकालते तो आप बल्ले और गेंद के फासले को कम करते और गेंद को ज्यादा कुछ करने का मौका नहीं देते.
सवाल : रवींद्र जडेजा को छोड़कर कोई और ऑलराउंडर नहीं है, वो एडिलेड में नहीं थे. क्या आपको लगता है कि भारत को ऑलराउंडर की कमी खली?
जवाब : रविचंद्रन अश्विन भी बल्लेबाजी कर सकते हैं. वह अच्छी साझेदारियां बनाने में सक्षम हैं. जब हम अश्विन और जडेजा की बात करते हैं तो यह इस पर निर्भर करता है कि कौन किस पिच पर ज्यादा उपयोगी रहेगा और फिर आप उस गेंदबाज को चुनते हैं. उनकी बल्लेबाजी एक बोनस है, दोनों बल्लेबाजी कर सकते हैं. मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि टीम प्रबंधन उनकी गेंदबाजी काबिलियत को देख रहा होगा और इस बात के बारे में ज्यादा नहीं सोच रहा होगा कि वह नंबर-8 पर आकर कितने रन बनाते हैं. यहां वह रन काफी अहम हो सकते हैं लेकिन यह दोनों मुख्य तौर पर गेंदबाजी के लिए चुने जाते हैं.
सवाल : भारतीय फील्डिंग भी सवालों के घेरे में रही. खिलाड़ियों ने दूसरी पारी में कई कैच छोड़े इसमें से एक टिम पेन का कैच अहम था.
जवाब : मुझे याद है कि जब हम बड़े हो रहे थे तब आचरेकर सर ने कहा था कि कैचों से ही मैच जीते जाते हैं. यह हमारे साथ हमेशा रहा. इसलिए कैच नहीं छोड़ने चाहिए. इसमें कोई शक नहीं है कि फील्डिंग में सुधार किया जाना है.
सवाल : एडिलेड में हमारे गेंदबाजों ने अच्छा किया. उनके प्रदर्शन को लेकर आपकी राय?
जवाब : मुझे लगता है कि उनका प्रदर्शन शानदार रहा, इसमें कोई शक नहीं है. पहली पारी में यह काफी अनुशासित और एकाग्र था और उन्होंने दबाव बनाए रखा. ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजी भी ओवर डिफेंसिव हो गई. लेकिन ऐसी स्थितियां थी जहां बल्लेबाज विपक्षी टीम पर दबाव डाल सकते थे. इसलिए जब रन करने का मौका होता है तो बल्लेबाज को रन करने चाहिए. अच्छी गेंद का सम्मान करना चाहिए.