हैदराबाद: टीम इंडिया के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने बीसीसीआई के अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल कर दिया. उनका अध्यक्ष बनना तय है. गांगुली को भारत के सफलतम कप्तानों में से एक माना जाता है. आज हम आपको गांगुली के डेब्यू से लेकर उनके बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने तक की पूरी कहानी बताएंगे.
बड़े भाई से मिली क्रिकेट खेलने की प्रेरणा
सौरव के बड़े भाई स्नेहाशीश बचपन से ही क्रिकेट खेलना चाहते थे और अपने बड़े भाई के पीछे उन्होंने भी क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया. गली क्रिकेट खेलते-खेलते दादा का स्कूल की टीम में चयन हो गया फिर स्कूल की टीम से निकलकर स्टेट टीम में चयन होते ही दादा ने भारतीय टीम के लिए खेलने का मन बना लिया और उनका ये सपना 1992 में पूरा हुआ.
1992 में पहली बार भारतीय टीम की जर्सी पहनने का मिला मौका
1992 में गांगुली को पहली बार भारतीय टीम की जर्सी पहनने का मौका मिला. वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे सीरीज में उनका चयन हुआ. उन्हें इस सीरीज में एक मैच खेलने का मौका लेकिन वे इस मैच में सिर्फ तीन रन ही बना पाए. इस वजह से उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया.
1996 में हुई टीम में वापसी
दादा को भारतीय टीम में दोबारा से खेलने के लिए चार साल इंतजार करना पड़ा. चार साल तक घरेलू क्रिकेट में पसीना बहाने के बाद उन्हें 1996 में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट टीम में जगह मिली. उन्होंने अपने पहले दो टेस्ट में दो शतक लगा टेस्ट क्रिकेट में शानदार आगाज किया.
सचिन की कप्तानी में हुई वनडे में वापसी
चार साल वनडे से बाहर रहे गांगुली को तत्कालीन कप्तान सचिन तेंदुलकर ने टाइटन कप के दौरान 1996 को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ मौका दिया. मैच में सचिन के साथ ओपनिंग करते हुए गांगुली ने 54 रन की पारी खेली. बता दें सचिन और गांगुली की जोड़ी 247 मैचों में 12,400 रन के साथ दुनिया की दूसरी सर्वश्रेष्ठ ओपनिंग जोड़ी है.
जगमोहन डालमिया के बेहद करीबी थे गांगुली
गांगुली की टीम में वापसी को लेकर मीडिया में खबरें आ रही थी कि जगमोहन डालमिया की वजह से सौरव गांगुली की क्रिकेट में वापसी हुई थी. डालमिया 1990 में बीसीसीआई के सेक्रेटरी थे. ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने भारतीय क्रिकेट को मिलियन डॉलर कमाना सिखाया. एक गरीब बोर्ड को अमीर बनाने में डालमिया का बहुत बड़ा हाथ था.
2000 मे मिली भारतीय टीम की कमान
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में डेब्यू करे दादा को अभी कम ही समय हुआ था कि फिक्सिंग स्कैंडल के चलते युवा गांगुली को भारतीय वनडे टीम का कप्तान बना दिया गया. इस फैसले को लेकर भी गांगुली डालमिया कनैक्शन चर्चा में आया और मीडिया में खबरे फैली कि उस वक्त के बीसीसीआई अध्यक्ष डालमिया का सौरव गांगुली को कप्तान चुने जाने के पीछे बड़ा हाथ है.
बहरहाल, गांगुली कप्तान बनते ही मीडिया में छाने लगे. इसके बाद भारतीय इतिहास के महान कप्तान बनने की ओर अग्रसर दादा ने कई ऐसे कारनामे किए जो आज तक भारतीय क्रिकेट इतिहास में दर्ज है. उनकी कप्तानी में भारतीय टीम 2002 चैंपियस ट्रॉफी में श्रीलंका के साथ संयुक्त विजेता रहा. इसके बाद उन्होंने 2002 में भारतीय टीम को नेटवेस्ट सीरीज में जीत दिलाई. और 2003 के विश्व कप में भारतीय टीम को फाइनल तक पंहुचाया.
ग्रेग चैपल विवाद
गांगुली का 2005 में जिम्बाब्वे दौरे पर तत्तकालीन भारतीय टीम के कोच ग्रेग चैपल से विवाद हुआ. बुलवायो टेस्ट के दौरान ये विवाद हुआ जिसके बाद उनसे कप्तानी छीन ली गई . चैपल ने एक इमेल बीसीसीआई को लिखा जो मीडिया में लीक हो गया. गांगुली के क्रिकेट करियर में ये सबसे बड़ा विवाद था.
2008 में लिया रिटायरमेंट का फैसला
2008 में गांगुली ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना अंतिम अंतरराष्ट्रीय मैच खेला. इस मैच की पहली पारी में उन्होंने 85 रन बनाए.
2015 में बने सीएबी के अध्यक्ष
2015 में डालमिया के निधन के बाद गांगुली ने सीएबी की कमान संभाली. 2015 से 2019 तक वे सीएबी के अध्यक्ष रहे और अब वे बीसीसीआई के अध्यक्ष बनने के लिए तैयार है.