हैदराबाद : 7 जून 1975 की तारीख पुराने क्रिकेट फैंस को जरूर याद होगी क्योंकि इसी दिन पहले क्रिकेट वर्ल्डकप की शुरूआत इंग्लैंड में हुई थी. इसे प्रूडेंशियल वर्ल्ड कप कहा गया था. इससे पहले केवल 18 अंतरराष्ट्रीय मुकाबले खेले गए थे.
क्रिकेट के उत्थान के नजरिए से इस विश्वकप को बेहद ही खास माना जाता है. इस विश्वकप में कुल आठ टीमों ने हिस्सा लिया था, जिसमें से पूर्वी अफ्रीका और श्रीलंका नॉन टेस्ट प्लेइंग नेशन के रूप में खेली थी. इनके अलावा मेजबान इंग्लैंड, वेस्टइंडीज, भारत, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पाकिस्तान की टीमें शामिल थी. भारत की तरफ से एस वेंकटराघवन टीम के कप्तान थे. उनका जन्म मद्रास (चेन्नई) में हुआ था. 1975 और 1979 दोनों विश्वकप में उन्होंने भारतीय टीम की कप्तानी की थी.
1975 वर्ल्डकप में भारतीय टीम
एस वेंकटराघवन(कप्तान), सुनील गावस्कर, मोहिंदर अमरनाथ, एकनाथ सोलकर, अंशुमन गायकवाड़, गुंडप्पा विश्वनाथ, ब्रजेश पटेल, मदन लाल, सैयद आबिद अली, कर्सन घावरी, फारुख इंजीनियर (विकेटकीपर).
कुल 8 टीमों को दो अलग-अलग ग्रुप रखा गया था. भारतीय टीम को ग्रुप ए में जगह मिली थी. भारत के अलावा इस ग्रुप में इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ईस्ट अफ्रीका की टीम थी, जबकि दूसरे ग्रुप में पाकिस्तान, वेस्टइंडीज, श्रीलंका और ऑस्ट्रेलिया को रखा गया था.
60-60 ओवर के मैचों वाले इस विश्वकप की शुरूआत भारत और मेजबान इंग्लैंड के बीच हुए मैच से हुई. भारतीय तेज गेंदबाज मदनलाल द्वारा विश्वकप इतिहास की पहली गेंद फेंकी गई. आपको बता दें कि भातीय की तरफ से अंशुमन गायकवाड़, मोहिंदर अमरनाथ और कर्सन घावरी अपना ODI डेब्यू कर रहे थे.
पहला मैच (भारत VS इंग्लैंड)
इंग्लैंड ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी का फैसला किया. इंग्लैंड की तरफ से डेनिस एमिस ने शानदार बल्लेबाजी करते हुए 137 रनों की शतकीय पारी खेली. भारत की तरफ से आबिद अली ने 2 और मोहिंदर अमरनाथ व मदनलाल ने 1-1 विकेट हासिल किया. भारतीय टीम को इस मैच को जीतने के लिए बेहद मुश्किल 335 रनों का लक्ष्य मिला था.
जवाब में बल्लेबाजी के लिए मैदान पर उतरी भारतीय टीम से किसी को चमत्कारी प्रदर्शन की उम्मीद भी नहीं थी और हुआ भी बिल्कुल वैसा ही. भारतीय की तरफ से ओपनर बल्लेबाज सुनील गावस्कर ने 174 गेंदों में बेहद ही धीमी बल्लेबाजी करते हुए 36 रन बनाए. इनके अलावा गुंडप्पा विश्वनाथ ने भी 37 रन जोड़े थे. भारतीय टीम अपने निर्धारित 60 ओवरों में केवल 132 रन ही बना सकी और भारत ये मैच 202 रनों से हार गया.
दूसरा मैच ( भारत VS ईस्ट अफ्रीका)
भारत का अगला मैच कमजोर अफ्रीका के साथ था. उस समय ईस्ट अफ्रीका की टीम में केन्या, युगांडा के खिलाड़ी खेलते थे. 11 जून को लीड्स में खेले गए इस मुकाबले में भारत ने 10 विकेट से जीत हासिल की. अफ्रीका के 121 रनों के आसान से लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय सलामी जोड़ी सुनील गावस्कर और फारुख इंजीनियर ने बड़ी ही आसानी ने भारत को वर्ल्डकप की पहली जीत दिलाई. फारुख इंजीनियर को मैन ऑफ द मैच घोषित किया गया. अब तक भारत ने इस जीत के साथ ही 4 अंक भी हासिल कर लिए थे.
तीसरा मैच ( भारत VS न्यूजीलैंड)
अगर भारतीय टीम को इस विश्वकप में बना रहना था तो किसी भी हालत में इस मैच को जीतना था . भारतीय टीम ने 14 जून को मेनचेस्टर में अपना तीसरा मैच न्यूजीलैंड के खिलाफ खेला. अफ्रीका के खिलाफ मिली जीत के बाद उत्साहित भारतीय टीम ने इस मैच में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया. सलामी जोड़ी कुछ खास नहीं कर पाई. सुनील गावस्कर और फारुख इंजीनियर दोनों ही 50 रन के कुल स्कोर से पहले आउट हो गए थे. इस मैच में सातवें नंबर पर बल्लेबाजी करने आए आबिद अली ने बल्ले से कमाल दिखाया और 70 रनों की शानदार पारी खेली और भारत ने न्यूजीलैंड के सामने 231 रनों का लक्ष्य रखा.
जवाब में न्यूजीलैंड के ओपनर बल्लेबाज ग्लैन टर्नर ने शानदार शतकीय पारी खेली. रोमांचक मुकबले में 7 गेंद शेष रहते न्यूजीलैंड ने भारत को इस मैच में हरा दिया टर्नर को इस मैच के लिए मैन ऑफ द मैच के अवॉर्ड दिया गया. इसी हार के साथ भारत के सेमीफाइनल में पंहुचने का सपना भी टूट गया और भारत इस पहले विश्वकप एक जीत के साथ बाहर हो गया था. बाद में फाइनल मुकाबले में क्लाइव लॉयड की कप्तानी में वेस्टइंडीज ने ऑस्ट्रेलिया को 17 रनों से हराते हुए पहला विश्वकप अपने नाम कर लिया.
नोट : इस विश्वकप में इंग्लैंड के खिलाफ सुनील गावस्कर की वो 36 रनों की पारी आज भी चर्चा का विषय बनी रहती है.