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Film Review: नक़ल के ठेकेदारों की अंजान दुनिया दिखाती है सेटर्स!..... - सोनाली सहगल

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Published : May 3, 2019, 9:38 AM IST

मुंबई : सेटर्स का मतलब होता है, सेटिंग करने वाला. लेखक-निर्देशक अश्विनी चौधरी की 'सेटर्स' में एजुकेशन सिस्टम में सेंध लगाने वाले सेटर्स की कहानी को दर्शाया गया है. तकरीबन हर हिन्दुस्तानी को पता होता है कि जब कोई परीक्षा होती है तो उसमें नक़ल होती है, लेकिन इस नक़ल का स्रोत क्या होगा है? इस बारे में हमारी कल्पनाएं सीमित होती हैं.

व्यापम जैसे घोटाले जब होते हैं तो एक आम आदमी सोचता है कि शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्या घोटाले हो सकते हैं? ये एक ऐसी दुनिया है जिसके बारे में लोगों को नहीं पता, लेकिन जब आप फिल्म सेटर्स देखेंगे तो पता चलेगा कि आपका सामना एक अंजान दुनिया से है. इस दुनिया के बारे में अब तक न हॉलीवुड न बॉलीवुड और न ही रीजनल भाषा में कोई फिल्म बनी है.

इसके साथ ही ये जरुर कहा जा सकता है कि आप इस फिल्म को देख कर दंग रह जाएंगे. आप देखेंगे कि परीक्षाओं में खासकर व्यावसायिक परीक्षाओं में क्या इतना बड़ा घोटाला हो सकता है. क्यों लोग मेरिट में आते हैं? कैसे आते हैं ? किस तरह से इसके पीछे होने वाली साजिश को अंजाम दिया जाता है. ये एक अनजानी एलियन की दुनिया में ले जाने वाली फिल्म है.

देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षाओं में किस तरह से सेटर्स छात्रों को पास कराने के लिए बड़ा गेम प्लान बनाते हैं और फिर उसे किस तरह एक्जिक्यूट किया जाता है. उसे इस कहानी में बेहद बारीकी से रिसर्च कर दिखाया गया है. जहां तक परफॉरमेंस की बात है तो श्रेयस तलपडे और आफताब शिवदासानी जैसे कलाकारों ने जिन्हें आपने अब तक कॉमेडी फिल्मों में भी देखा है.

अपनी इमेज से 360 डिग्री विपरीत जाकर किरदार निभाया है और वो भी बड़ा ही बखूबी. इस फिल्म से श्रेयस अब उस सितारों की श्रेणी में आते हैं. जिनके कंधे पर पूरी फिल्म चलाने का भरोसा किया जा सकता है. फिल्म इकबाल के बाद उनकी उसी तरह की जबरदस्त कलाकारी दिखाई देती है.

आफताब शिवदासानी की एक्टिंग को लेकर बहुत कम लोगों ने उन्हें एक्सप्लोर किया है. वो लंबे समय से कॉमेडी ही करते नज़र आये हैं. वो चाइल्ड आर्टिस्ट भी रहे हैं. लेकिन इस फिल्म में उनका एक अलग परफॉरमेंस है. विजय राज और नीरज सूद की भी अच्छी एक्टिंग नज़र आई. पवन मल्होत्रा भी बेहतरीन रहे. वो जिस किरदार में रहते हैं उसे जीवन कर देते हैं.

फिल्म के निर्देशक अश्विनी चौधरी की जितनी तारीफ़ की जाय कम है. आज के दौर में अलग-अलग मिज़ाज के कलाकारों को लेकर एक फिल्म का प्रोजेक्ट बनाना ही अपने आप में कठिन काम होता है. लेकिन धूप जैसी अवॉर्ड विनिंग फिल्म बना चुके अश्विनी ने इस चुनौती को पार कर लिया और अपने मिशन में कामयाब भी रहे.

क्यों देखें: थ्रिलर फिल्मों के शौकीन और एजुकेशन सिस्टम के फर्जीवाड़े को जानने के लिए यह फिल्म देख सकते हैं.

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मुंबई : सेटर्स का मतलब होता है, सेटिंग करने वाला. लेखक-निर्देशक अश्विनी चौधरी की 'सेटर्स' में एजुकेशन सिस्टम में सेंध लगाने वाले सेटर्स की कहानी को दर्शाया गया है. तकरीबन हर हिन्दुस्तानी को पता होता है कि जब कोई परीक्षा होती है तो उसमें नक़ल होती है, लेकिन इस नक़ल का स्रोत क्या होगा है? इस बारे में हमारी कल्पनाएं सीमित होती हैं.

व्यापम जैसे घोटाले जब होते हैं तो एक आम आदमी सोचता है कि शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्या घोटाले हो सकते हैं? ये एक ऐसी दुनिया है जिसके बारे में लोगों को नहीं पता, लेकिन जब आप फिल्म सेटर्स देखेंगे तो पता चलेगा कि आपका सामना एक अंजान दुनिया से है. इस दुनिया के बारे में अब तक न हॉलीवुड न बॉलीवुड और न ही रीजनल भाषा में कोई फिल्म बनी है.

इसके साथ ही ये जरुर कहा जा सकता है कि आप इस फिल्म को देख कर दंग रह जाएंगे. आप देखेंगे कि परीक्षाओं में खासकर व्यावसायिक परीक्षाओं में क्या इतना बड़ा घोटाला हो सकता है. क्यों लोग मेरिट में आते हैं? कैसे आते हैं ? किस तरह से इसके पीछे होने वाली साजिश को अंजाम दिया जाता है. ये एक अनजानी एलियन की दुनिया में ले जाने वाली फिल्म है.

देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षाओं में किस तरह से सेटर्स छात्रों को पास कराने के लिए बड़ा गेम प्लान बनाते हैं और फिर उसे किस तरह एक्जिक्यूट किया जाता है. उसे इस कहानी में बेहद बारीकी से रिसर्च कर दिखाया गया है. जहां तक परफॉरमेंस की बात है तो श्रेयस तलपडे और आफताब शिवदासानी जैसे कलाकारों ने जिन्हें आपने अब तक कॉमेडी फिल्मों में भी देखा है.

अपनी इमेज से 360 डिग्री विपरीत जाकर किरदार निभाया है और वो भी बड़ा ही बखूबी. इस फिल्म से श्रेयस अब उस सितारों की श्रेणी में आते हैं. जिनके कंधे पर पूरी फिल्म चलाने का भरोसा किया जा सकता है. फिल्म इकबाल के बाद उनकी उसी तरह की जबरदस्त कलाकारी दिखाई देती है.

आफताब शिवदासानी की एक्टिंग को लेकर बहुत कम लोगों ने उन्हें एक्सप्लोर किया है. वो लंबे समय से कॉमेडी ही करते नज़र आये हैं. वो चाइल्ड आर्टिस्ट भी रहे हैं. लेकिन इस फिल्म में उनका एक अलग परफॉरमेंस है. विजय राज और नीरज सूद की भी अच्छी एक्टिंग नज़र आई. पवन मल्होत्रा भी बेहतरीन रहे. वो जिस किरदार में रहते हैं उसे जीवन कर देते हैं.

फिल्म के निर्देशक अश्विनी चौधरी की जितनी तारीफ़ की जाय कम है. आज के दौर में अलग-अलग मिज़ाज के कलाकारों को लेकर एक फिल्म का प्रोजेक्ट बनाना ही अपने आप में कठिन काम होता है. लेकिन धूप जैसी अवॉर्ड विनिंग फिल्म बना चुके अश्विनी ने इस चुनौती को पार कर लिया और अपने मिशन में कामयाब भी रहे.

क्यों देखें: थ्रिलर फिल्मों के शौकीन और एजुकेशन सिस्टम के फर्जीवाड़े को जानने के लिए यह फिल्म देख सकते हैं.

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मुंबई : सेटर्स का मतलब होता है, सेटिंग करने वाला. लेखक-निर्देशक अश्विनी चौधरी की 'सेटर्स' में एजुकेशन सिस्टम में सेंध लगाने वाले सेटर्स की कहानी को दर्शाया गया है. तकरीबन हर हिन्दुस्तानी को पता होता है कि जब कोई परीक्षा होती है तो उसमें नक़ल होती है, लेकिन इस नक़ल का स्रोत क्या होगा है? इस बारे में हमारी कल्पनाएं सीमित होती हैं. 

व्यापम जैसे घोटाले जब होते हैं तो एक आम आदमी सोचता है कि शिक्षा के क्षेत्र में ऐसे क्या घोटाले हो सकते हैं? ये एक ऐसी दुनिया है जिसके बारे में लोगों को नहीं पता, लेकिन जब आप फिल्म सेटर्स देखेंगे तो पता चलेगा कि आपका सामना एक अंजान दुनिया से है. इस दुनिया के बारे में अब तक न हॉलीवुड न बॉलीवुड और न ही रीजनल भाषा में कोई फिल्म बनी है.

इसके साथ ही ये जरुर कहा जा सकता है कि आप इस फिल्म को देख कर दंग रह जाएंगे. आप देखेंगे कि परीक्षाओं में खासकर व्यावसायिक परीक्षाओं में क्या इतना बड़ा घोटाला हो सकता है. क्यों लोग मेरिट में आते हैं? कैसे आते हैं ? किस तरह से इसके पीछे होने वाली साजिश को अंजाम दिया जाता है. ये एक अनजानी एलियन की दुनिया में ले जाने वाली फिल्म है.

देश में इंजीनियरिंग और मेडिकल की परीक्षाओं में किस तरह से सेटर्स छात्रों को पास कराने के लिए बड़ा गेम प्लान बनाते हैं और फिर उसे किस तरह एक्जिक्यूट किया जाता है. उसे इस कहानी में बेहद बारीकी से रिसर्च कर दिखाया गया है. जहां तक परफॉरमेंस की बात है तो श्रेयस तलपडे और आफताब शिवदासानी जैसे कलाकारों ने जिन्हें आपने अब तक कॉमेडी फिल्मों में भी देखा है.

अपनी इमेज से 360 डिग्री विपरीत जाकर किरदार निभाया है और वो भी बड़ा ही बखूबी. इस फिल्म से श्रेयस अब उस सितारों की श्रेणी में आते हैं. जिनके कंधे पर पूरी फिल्म चलाने का भरोसा किया जा सकता है. फिल्म इकबाल के बाद उनकी उसी तरह की जबरदस्त कलाकारी दिखाई देती है.

आफताब शिवदासानी की एक्टिंग को लेकर बहुत कम लोगों ने उन्हें एक्सप्लोर किया है. वो लंबे समय से कॉमेडी ही करते नज़र आये हैं. वो चाइल्ड आर्टिस्ट भी रहे हैं. लेकिन इस फिल्म में उनका एक अलग परफॉरमेंस है. विजय राज और नीरज सूद की भी अच्छी एक्टिंग नज़र आई. पवन मल्होत्रा भी बेहतरीन रहे. वो जिस किरदार में रहते हैं उसे जीवन कर देते हैं.    

फिल्म के निर्देशक अश्विनी चौधरी की जितनी तारीफ़ की जाय कम है. आज के दौर में अलग-अलग मिज़ाज के कलाकारों को लेकर एक फिल्म का प्रोजेक्ट बनाना ही अपने आप में कठिन काम होता है. लेकिन धूप जैसी अवॉर्ड विनिंग फिल्म बना चुके अश्विनी ने इस चुनौती को पार कर लिया और अपने मिशन में कामयाब भी रहे. 



क्यों देखें: थ्रिलर फिल्मों के शौकीन और एजुकेशन सिस्टम के फर्जीवाड़े को जानने के लिए यह फिल्म देख सकते हैं।


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