उन्होंने 1957 से 1995 के दौरान फिल्मों में सक्रिय योगदान दिया. वो कई फिल्मों में छोटी बहन के किरदार में नज़र आईं, लेकिन 'भाभी' और 'छोटी' बहन जैसी फिल्मों से उन्हें पहचान मिली.
8 जनवरी 1939 को मुंबई के एक मराठी भाषी परिवार में जन्मीं नंदा के पिता मास्टर विनायक भी एक अभिनेता थे. अपने पिता की मौत के बाद नंदा को महज आठ साल की छोटी उम्र में रोजी-रोटी के लिए फिल्मों में काम करना पड़ा.
नंदा के मामा वी शांताराम ने उन्हें अपनी फिल्म 'तूफान और दीया' में बड़ा ब्रेक दिया. भाई-बहन के रिश्तों पर बनी ये फिल्म बड़ी हिट साबित हुई. उन्हें फिल्म 1957 में आई फिल्म 'भाभी' के लिए पहली बार सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री का फिल्मफेयर नॉमिनेशन मिला.
नंदा का कहना था कि उन्हें अवॉर्ड इसलिए नहीं मिला क्योंकि अवॉर्ड के लिए लॉबिंग की गई थी. इसके बाद वो देव आनंद के साथ फिल्म 'काला बाजार' में सपोर्टिंग रोल में नज़र आईं. उन्होंने 'धूल का फूल' जैसी कई बड़ी फिल्मों में छोटे-छोटे किरदार भी निभाए.
नंदा का फिल्मकार मनमोहन देसाई के साथ अफेयर था. 18 जून 1992 को दोनों की सगाई भी हुई, लेकिन ये रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिक पाया. नंदा ने 'मंदिर' और 'जग्गू' जैसी फ़िल्मों में बतौर बाल कलाकार अपने करियर की शुरुआत की. उन्होंने देव आनंद के साथ 'काला बाज़ार', 'हम दोनों', 'तीन देवियां', शशि कपूर के साथ 'नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे', 'जब-जब फूल खिले', राजेश खन्ना के साथ 'द ट्रेन' समेत कई यादगार फिल्मों में काम किया.
नंदा के निधन के बाद बॉलीवुड इंडस्ट्री में उनकी करीबी दोस्त आशा पारेख, सायरा बानो और हेलन हैरान हैं. सायरा ने कहा, “नंदा एकदम ठीक थीं, बस उनके पैर में थोड़ी तकलीफ थी. आशा पारेख और मैंने कल ही उनके बारे में चर्चा की थी.” सायरा आगे निष्कर्ष के रूप में कहती हैं, “नंदा हमेशा यही बात कहती थी कि वो बुढ़ापे में कभी अस्पताल का चेहरा नहीं देखना चाहतीं और अब हम उनकी इस बात पर विश्वास कर सकते हैं. वो अब हमारे साथ नहीं हैं.”
नंदा ने हिंदी सिनेमा में छोटे से लेकर बड़े हर तरह के किरदार निभाकर सिनेमा जगत में एक बड़ा नाम कमाया है और अपने किरदार से कई लोगों के दिल जीते हैं.