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Life Beyond Reel: 'क्रांतिकारी' एमजीआर

'लाइफ बियॉन्ड रील' ईटीवी भारत सितारा सीरीज का हिस्सा है जिसमें उन एक्टर्स को शामिल किया गया है जिन्होंने न सिर्फ सिनेमा जगत बल्कि इसके अलावा भी अन्य क्षेत्र में अपना नाम कमाया है. इस एपिसोड में, हम बात करेंगे तमिल सुपरस्टार एमजीआर के बारे में जिन्होंने अपने शानदार फिल्मी करियर को छोड़कर पॉलिटिक्स में कदम रखा और उसे भी लाजवाब बनाया. एक मैटिनी आइडल जो बाद में कल्ट पर्सनालिटी का केंद्र बना.

Life Beyond Reel the revolutionary MGR
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Published : Dec 4, 2019, 4:56 AM IST

लोगों का एक हुजूम रोता, चीखता चिल्लाता हुआ तमिलनाडू की गलियों में सुपरस्टार मुरुथुर गोपालन रामचंद्रन के अंतिम संस्कार में चलता जा रहा था.


भीड़ को चीरते हुए एक जवान महिला ने विलाप करते हुए कहा, 'थलाइवा, नी सोल्लामाई पोइट्टाए( नेता, आप हमें बिना बताए चले गए)'. अपने बच्चे को गोद में लिए हुए, मां उस भीड़ की ओर अपने लीडर की एक आखिरी झलक पाने के लिए दौड़ी.

ऐसा लगा कि तमिलनाडू के दिल की धड़कने रूक गईं हों. पॉलिटिकल पार्टी के मेंबर्स जितना उनके देहांत से दुख में थे उतना ही राज्य भी शोक में डूबा हुआ था.

फॉलोअर्स एक स्वर में चिल्लाए, 'जब एमजीआर चले गए तो मद्रास को क्यों रहना चाहिए?' जब लीडर के मृत शरीर को फूलों से सजी गाड़ी में ले जाया जा रहा था तो गम की चीख क्रिसेन्डो(धीमे से तेज स्वर की ओर) में सुनाई दे रही थी.

आर. चंद्रशेखर ने दुखी स्वर में कहा, 'दुनिया कभी भी एमजीआर जैसा लीडर दोबारा नहीं देखेगी.'

उनके चाहने वालों की मानें तो, एमजीआर के रूप में भगवान ने धरती पर अपना वंशज भेज दिया है.

अपना फिल्मी करियर छोड़ने के बाद जब तक जिए उन्होंने पॉलिटिशियन बनकर देश की सेवा की, रामचंद्रन सही मायनों में लोगों के राजा बन गए, 'मक्काल थिलागम' जैसा कि लोग उन्हें बुलाते हैं.

लेजेंडरी रामचंद्रन का चरित्र बहुत ही ज्यादा उदार प्रवृत्ति का था.

क्या सुपरस्टार्स अच्छे राजनेता बनते हैं? सबके पास वह क्षमता नहीं होती है.

जब रजनीकांत और कमल हासन ने पॉलिटिक्स में कदम रखने की अपनी इच्छा प्रकट की तब इसने हमें याद दिलाया कि इसकी शुरूआत कहां से हुई है.

आइकॉनिक सिनेस्टार एमजीआर जिन्होंने अपने फलते-फूलते फिल्मी करियर को छोड़कर लोगों का प्रतिनिध्व बनकर इस ट्रेंड को शुरू किया.

मैटिनी आइडल ने पॉलिटिक्स में भी अपना स्थान सबसे ऊंचा बनाया.

तमिल सिनेमा के सबसे प्रभावी एक्टर्स में से एक जिन्होंने बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की और करीब एक दशक तक बखूबी इस कुर्सी की गरिमा बनाए रखी.

खैर, जब सिनेमा इंडिया में अपनी जड़ें जमा रहा था, रामचंद्रन को अपना पहला ब्रेक एलिस आर. दुंगन की डायरेक्टोरियल फिल्म में मिला.

बचपन में ही गरीबी की चोट खाए, एमजीआर ने महान एक्टर से डायरेक्टर और प्रोड्यूसर तक सिनेमा की दुनिया में लगातार खुद को उभारा.

1972 में उन्हें अपनी फीचर फिल्म 'रिक्शॉकरण' के लिए बेस्ट एक्टर के नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

नए कीर्तिमान रचना तो जैसे रामचंद्रन का ट्रेडमार्क स्टाइल था. उनकी सारी नहीं तो बहुत सारी फिल्में ब्लॉकबस्टर हिट रहीं जिन्होंने बहुत सारा पैसा बनाया. उन्हीं की फिल्में थी जो तमिल फिल्म इंडस्ट्री की कामयाबी से कदम मिलाकर चल रही थीं.

बम्पर भीड़ को थिएटर्स तक लाने वाले रामचंद्रन सबसे बड़े आइकॉन बन गए.

उनकी फिल्मों में भावनाओं के दायरे ने क्रिटिक्स की सराहना के साथ साथ सिनेमाप्रेमियों का अटूट और बेशुमार प्यार भी पाया.

परोपकारी और मानवतावादी आइकॉन ने उस तरह जीत का स्वाद चखा जैसा कभी किसी ने नहीं.

लेजेंडरी एक्टर के बारे में बात करते हुए रजनीकांत भी कहते हैं, 'वे कहते हैं कि हर कोई एमजीआर नहीं बन सकता. मैं मानता हूं. एमजीआर क्रांतिकारी है. 1000 सालों में कोई दूसरा एमजीआर नहीं हो सकता. अगर कोई कहता है कि वह अगला एमजीआर होगा, तो वह पागल है.'

लोगों का एक हुजूम रोता, चीखता चिल्लाता हुआ तमिलनाडू की गलियों में सुपरस्टार मुरुथुर गोपालन रामचंद्रन के अंतिम संस्कार में चलता जा रहा था.


भीड़ को चीरते हुए एक जवान महिला ने विलाप करते हुए कहा, 'थलाइवा, नी सोल्लामाई पोइट्टाए( नेता, आप हमें बिना बताए चले गए)'. अपने बच्चे को गोद में लिए हुए, मां उस भीड़ की ओर अपने लीडर की एक आखिरी झलक पाने के लिए दौड़ी.

ऐसा लगा कि तमिलनाडू के दिल की धड़कने रूक गईं हों. पॉलिटिकल पार्टी के मेंबर्स जितना उनके देहांत से दुख में थे उतना ही राज्य भी शोक में डूबा हुआ था.

फॉलोअर्स एक स्वर में चिल्लाए, 'जब एमजीआर चले गए तो मद्रास को क्यों रहना चाहिए?' जब लीडर के मृत शरीर को फूलों से सजी गाड़ी में ले जाया जा रहा था तो गम की चीख क्रिसेन्डो(धीमे से तेज स्वर की ओर) में सुनाई दे रही थी.

आर. चंद्रशेखर ने दुखी स्वर में कहा, 'दुनिया कभी भी एमजीआर जैसा लीडर दोबारा नहीं देखेगी.'

उनके चाहने वालों की मानें तो, एमजीआर के रूप में भगवान ने धरती पर अपना वंशज भेज दिया है.

अपना फिल्मी करियर छोड़ने के बाद जब तक जिए उन्होंने पॉलिटिशियन बनकर देश की सेवा की, रामचंद्रन सही मायनों में लोगों के राजा बन गए, 'मक्काल थिलागम' जैसा कि लोग उन्हें बुलाते हैं.

लेजेंडरी रामचंद्रन का चरित्र बहुत ही ज्यादा उदार प्रवृत्ति का था.

क्या सुपरस्टार्स अच्छे राजनेता बनते हैं? सबके पास वह क्षमता नहीं होती है.

जब रजनीकांत और कमल हासन ने पॉलिटिक्स में कदम रखने की अपनी इच्छा प्रकट की तब इसने हमें याद दिलाया कि इसकी शुरूआत कहां से हुई है.

आइकॉनिक सिनेस्टार एमजीआर जिन्होंने अपने फलते-फूलते फिल्मी करियर को छोड़कर लोगों का प्रतिनिध्व बनकर इस ट्रेंड को शुरू किया.

मैटिनी आइडल ने पॉलिटिक्स में भी अपना स्थान सबसे ऊंचा बनाया.

तमिल सिनेमा के सबसे प्रभावी एक्टर्स में से एक जिन्होंने बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की और करीब एक दशक तक बखूबी इस कुर्सी की गरिमा बनाए रखी.

खैर, जब सिनेमा इंडिया में अपनी जड़ें जमा रहा था, रामचंद्रन को अपना पहला ब्रेक एलिस आर. दुंगन की डायरेक्टोरियल फिल्म में मिला.

बचपन में ही गरीबी की चोट खाए, एमजीआर ने महान एक्टर से डायरेक्टर और प्रोड्यूसर तक सिनेमा की दुनिया में लगातार खुद को उभारा.

1972 में उन्हें अपनी फीचर फिल्म 'रिक्शॉकरण' के लिए बेस्ट एक्टर के नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

नए कीर्तिमान रचना तो जैसे रामचंद्रन का ट्रेडमार्क स्टाइल था. उनकी सारी नहीं तो बहुत सारी फिल्में ब्लॉकबस्टर हिट रहीं जिन्होंने बहुत सारा पैसा बनाया. उन्हीं की फिल्में थी जो तमिल फिल्म इंडस्ट्री की कामयाबी से कदम मिलाकर चल रही थीं.

बम्पर भीड़ को थिएटर्स तक लाने वाले रामचंद्रन सबसे बड़े आइकॉन बन गए.

उनकी फिल्मों में भावनाओं के दायरे ने क्रिटिक्स की सराहना के साथ साथ सिनेमाप्रेमियों का अटूट और बेशुमार प्यार भी पाया.

परोपकारी और मानवतावादी आइकॉन ने उस तरह जीत का स्वाद चखा जैसा कभी किसी ने नहीं.

लेजेंडरी एक्टर के बारे में बात करते हुए रजनीकांत भी कहते हैं, 'वे कहते हैं कि हर कोई एमजीआर नहीं बन सकता. मैं मानता हूं. एमजीआर क्रांतिकारी है. 1000 सालों में कोई दूसरा एमजीआर नहीं हो सकता. अगर कोई कहता है कि वह अगला एमजीआर होगा, तो वह पागल है.'

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Life Beyond Reel: 'क्रांतिकारी' एमजीआर

समरी- 'लाइफ बियॉन्ड रील' ईटीवी भारत सितारा सीरीज का हिस्सा है जिसमें उन एक्टर्स को शामिल किया गया है जिन्होंने न सिर्फ सिनेमा जगत बल्कि इसके अलावा भी अन्य क्षेत्र में अपना नाम कमाया है. इस एपिसोड में, हम बात करेंगे तमिल सुपरस्टार एमजीआर के बारे में जिन्होंने अपने शानदार फिल्मी करियर को छोड़कर पॉलिटिक्स में कदम रखा और उसे भी लाजवाब बनाया. एक मैटिनी आइडल जो बाद में कल्ट पर्सनालिटी का केंद्र बना.

लोगों का एक हुजूम रोता, चीखता चिल्लाता हुआ तमिलनाडू की गलियों में सुपरस्टार मुरुथुर गोपालन रामचंद्रन के अंतिम संस्कार में चलता जा रहा था.

भीड़ को चीरते हुए एक जवान महिला ने विलाप करते हुए कहा, 'थलाइवा, नी सोल्लामाई पोइट्टाए( नेता, आप हमें बिना बताए चले गए)'. अपने बच्चे को गोद में लिए हुए, मां उस भीड़ की ओर अपने लीडर की एक आखिरी झलक पाने के लिए दौड़ी.

ऐसा लगा कि तमिलनाडू के दिल की धड़कने रूक गईं हों. पॉलिटिकल पार्टी के मेंबर्स जितना उनके देहांत से दुख में थे उतना ही राज्य भी शोक में डूबा हुआ था.

फॉलोअर्स एक स्वर में चिल्लाए, 'जब एमजीआर चले गए तो मद्रास को क्यों रहना चाहिए?' जब लीडर के मृत शरीर को फूलों से सजी गाड़ी में ले जाया जा रहा था तो गम की चीख क्रिसेन्डो(धीमे से तेज स्वर की ओर) में सुनाई दे रही थी.

आर. चंद्रशेखर ने दुखी स्वर में कहा, 'दुनिया कभी भी एमजीआर जैसा लीडर दोबारा नहीं देखेगी.'

उनके चाहने वालों की मानें तो, एमजीआर के रूप में भगवान ने धरती पर अपना वंशज भेज दिया है.

अपना फिल्मी करियर छोड़ने के बाद जब तक जिए उन्होंने पॉलिटिशियन बनकर देश की सेवा की, रामचंद्रन सही मायनों में लोगों के राजा बन गए, 'मक्काल थिलागम' जैसा कि लोग उन्हें बुलाते हैं.

लेजेंडरी रामचंद्रन का चरित्र बहुत ही ज्यादा उदार प्रवृत्ति का था.

क्या सुपरस्टार्स अच्छे राजनेता बनते हैं? सबके पास वह क्षमता नहीं होती है.

जब रजनीकांत और कमल हासन ने पॉलिटिक्स में कदम रखने की अपनी इच्छा प्रकट की तब इसने हमें याद दिलाया कि इसकी शुरूआत कहां से हुई है.

आइकॉनिक सिनेस्टार एमजीआर जिन्होंने अपने फलते-फूलते फिल्मी करियर को छोड़कर लोगों का प्रतिनिध्व बनकर इस ट्रेंड को शुरू किया.

मैटिनी आइडल ने पॉलिटिक्स में भी अपना स्थान सबसे ऊंचा बनाया.

तमिल सिनेमा के सबसे प्रभावी एक्टर्स में से एक जिन्होंने बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की और करीब एक दशक तक बखूबी इस कुर्सी की गरिमा बनाए रखी.

खैर, जब सिनेमा इंडिया में अपनी जड़ें जमा रहा था, रामचंद्रन को अपना पहला ब्रेक एलिस आर. दुंगन की डायरेक्टोरियल फिल्म में मिला.

बचपन में ही गरीबी की चोट खाए, एमजीआर ने महान एक्टर से डायरेक्टर और प्रोड्यूसर तक सिनेमा की दुनिया में लगातार खुद को उभारा.

1972 में उन्हें अपनी फीचर फिल्म 'रिक्शॉकरण' के लिए बेस्ट एक्टर के नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.

नए कीर्तिमान रचना तो जैसे रामचंद्रन का ट्रेडमार्क स्टाइल था. उनकी सारी नहीं तो बहुत सारी फिल्में ब्लॉकबस्टर हिट रहीं जिन्होंने बहुत सारा पैसा बनाया. उन्हीं की फिल्में थी जो तमिल फिल्म इंडस्ट्री की कामयाबी से कदम मिलाकर चल रही थीं.

बम्पर भीड़ को थिएटर्स तक लाने वाले रामचंद्रन सबसे बड़े आइकॉन बन गए.

उनकी फिल्मों में भावनाओं के दायरे ने क्रिटिक्स की सराहना के साथ साथ सिनेमाप्रेमियों का अटूट और बेशुमार प्यार भी पाया.

परोपकारी और मानवतावादी आइकॉन ने उस तरह जीत का स्वाद चखा जैसा कभी किसी ने नहीं.

लेजेंडरी एक्टर के बारे में बात करते हुए रजनीकांत भी कहते हैं, 'वे कहते हैं कि हर कोई एमजीआर नहीं बन सकता. मैं मानता हूं. एमजीआर क्रांतिकारी है. 1000 सालों में कोई दूसरा एमजीआर नहीं हो सकता. अगर कोई कहता है कि वह अगला एमजीआर होगा, तो वह पागल है.'


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