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अमिताभ सर के साथ काम करना सपने से भी बड़ा- ईटीवी भारत से बोले 'झुंड' के निर्देशक नागराज मंजुले - नागराज मंजुले इंटरव्यू ईटीवी भारत

नागराज की फिल्म 'झुंड' 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के जरिए नागराज ने पहली बार सदी के महानायक जिनको कहां जाता है वह अमिताभ बच्चन जी के साथ काम किया. इसी मौके पर ईटीवी भारत ने फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले से विशेष बातचीत की.

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Published : Mar 3, 2022, 5:12 PM IST

Updated : Mar 4, 2022, 2:46 PM IST

हैदराबाद : फिल्मे तो कई आती हैं, लेकिन कुछ फिल्मे ऐसी होती है, जो लोगो के दिलो में घर बनाती है, जो समाज जीवन की सच्चाई को दर्शाती है. ऐसी ही 'सैराट' और 'फंड्री' इन फिल्मों के माध्यम से समाज जीवन की रचना को दिखाने वाले फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की.

नागराज की फिल्म 'झुंड' 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के जरिए नागराज ने पहली बार सदी के महानायक जिनको कहां जाता है वह अमिताभ बच्चन जी के साथ काम किया. इसी मौके पर ईटीवी भारत ने फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले से विशेष बातचीत की.

प्रश्न - झुंड इस फिल्म की कल्पना कैसे आई और ये पूरी प्रक्रिया कैसे रही?

ईटीवी भारत से बोले 'झुंड' के निर्देशक नागराज मंजुले

उत्तर - झुंड मेरे पास एक कन्सेप्ट आया था. मुझे बताया गया था की, एक रिअल लाईफ कन्सेप्ट है. लोगो पर प्रेरित ये कहानी हो सकती है, जिसमें हम बच्चन जी के साथ काम कर सकते हैं. इसके बाद मैंने इसपर रिसर्च की. नागपूर के जो विजय बारसे है, उनके स्टूडेंट हैं अखिलेश और बाकी भी जो 100-200 स्टूडेंट हैं, जो उनके साथ खेलते है, उनकी कहानी मैंने जानी-समझी और एक स्क्रीनप्ले लिखा. इसके बाद बच्चन जी को सुनाया, उनको पसंद आया फिर इस फिल्म का काम शुरू हुआ.

प्रश्न - बच्चन जी के साथ आपका काम करने का अनुभव कैसा था?

उत्तर - बहुत अच्छा रहा. मै पिछले आठ दिन से यही बात कर रहा हूं. मगर थक नही रहा हू. बल्कि मैं इसका आनंद ले रहा हूं. ये सवाल जो पूछा जा रहा है इसकी भी एक खुशी है... मेरा सपना नहीं था मैं फिल्ममेकर बनूंगा ये भी मेरा सपना नहीं था...बच्चन सर के साथ काम करने का मौका मिले तो दुनिया कोई भी डायरेक्टर नहीं होगा जो करना नहीं चाहेगा. मेरे राह में ये मौका आ गया. ये मेरे लिए ख्वाब से भी बड़ा है... मेरे लिए ये अमूल्य है.

प्रश्न - कोविड की वजह से ये जो फिल्म रही वह देरी से प्रदर्शित हो रही है, क्या इस दौरान आपने इसमें कुछ बदलाव किए?

उत्तर - ऐसा नहीं है. कोविड आ गया तो बदलाव करो. थोडा एडिटिंग में काम हो सकता है. वक्त ज्यादा मिला तो, बार बार देखा जाता है, लेकिन अंत में फिल्म वैसी ही बनती है जैसी आप बनाते है.

प्रश्न - आपके फिल्मों मे पिछड़ा वर्ग पर भाष्य किया जाता है, मराठी में इस पर कम का हो रहा है, ऐसा आपको लगता है?

उत्तर - सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया, हिंदी फिल्मों में भी अगर देखा जाए तो दलित हो, महिलाए हो इनकी बातें ज्यादा नहीं होती. हर एक के बारे में बात करनी चाहिए, ऐसा मैं मानता हूं. साहित्य में भी, फिल्मों मे भी समाज और जिंदगी के हर एक चीज में इसका होना बहुत जरुरी है.

प्रश्न - फँड्री और सैराट ये आपकी जीवन की अनमोल फिल्मे रही. इसके पिछे क्या प्रेरणा रही?

उत्तर - इस बारे में मैं बहुत बार बात कर चुका हूं. मेरी पूरी फिल्म मेकिंग की प्रेरणा के बारे में. सैराट के बारे में बात करे तो, बचपन से प्रेम के बारे में जो सोचता था, और प्यार करना हमारे भारत में बहुत मुश्किल चीज है और आप जब किसी लड़की के बारे सोचते हो तो आपको बहुत सारी चीजें याद आने लगती है. जाति, धर्म, गरीबी-अमीरी जैसी चीजें. बहुत छोटी-छोटी चीजें होती हैं, जो प्रेरणा बनके आपसे काम करवाती है. मैं वही सोचता हूं कि जिंदगी बेहतर हो, सब एक-दूसरे से प्यार करें, लिंग, धर्म के नाम पर हम एक दूसरे के साथ भेदभाव ना करे.

प्रश्न - झुंड फिल्म के माध्यम से आपने बच्चन जी के साथ काम किया. बहुत सारा समय आपने उनके साथ बिताया. बहुत सारी बातें आपको सिखने को मिली होंगी. क्या आप इनमें से कुछ शेयर करेंगे.

उत्तर - बहुत कुछ सिखने को मिला. इतने बड़े स्टार होकर भी वो सेट पर बड़ी सादगी से रहते हैं. ये बहुत समझने और सीखने वाली बात है. और बहोत सारी यादें हैं. सीखने के लिए आपको हर बार सीखने की जरुरत नहीं होती. आप देख कर भी सीख जाते हैं और बच्चन सर से तो हर कोई सीख सकता है.

प्रश्न - आनेवाले समय में नागराज हिंदी मे कुछ नया लेकर नजर आएंगे?

उत्तर - मैं कोशिश करुंगा कि हर भाषा में काम करूं. भाषा कोई समस्या नहीं है. हर भाषा में कर सकता हू. मराठी तो करना ही है. और हिंदी भी करू, तेलुगू, तमिल भी करू.

प्रश्न - सर, आखिरी सवाल, झुंड मराठी में क्यो नहीं आयी?

उत्तर - कहानी हिंदी में है. नागपुर के बहुत सारे लोग हिंदी बोलते हैं. आप अगर जाने तो ये बच्चे हिंदी बोलते हैं. बच्चन सर के साथ ये फिल्म बनानी थी इसलिए ये हिंदी है.

ये भी पढे़ं : अमिताभ बच्चन की 'झुंड' देख रो पड़े आमिर खान, फिल्म की पूरी टीम को घर बुलाया

हैदराबाद : फिल्मे तो कई आती हैं, लेकिन कुछ फिल्मे ऐसी होती है, जो लोगो के दिलो में घर बनाती है, जो समाज जीवन की सच्चाई को दर्शाती है. ऐसी ही 'सैराट' और 'फंड्री' इन फिल्मों के माध्यम से समाज जीवन की रचना को दिखाने वाले फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले ने ईटीवी भारत से विशेष बातचीत की.

नागराज की फिल्म 'झुंड' 4 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज हो रही है. इस फिल्म के जरिए नागराज ने पहली बार सदी के महानायक जिनको कहां जाता है वह अमिताभ बच्चन जी के साथ काम किया. इसी मौके पर ईटीवी भारत ने फिल्म निर्देशक नागराज मंजुले से विशेष बातचीत की.

प्रश्न - झुंड इस फिल्म की कल्पना कैसे आई और ये पूरी प्रक्रिया कैसे रही?

ईटीवी भारत से बोले 'झुंड' के निर्देशक नागराज मंजुले

उत्तर - झुंड मेरे पास एक कन्सेप्ट आया था. मुझे बताया गया था की, एक रिअल लाईफ कन्सेप्ट है. लोगो पर प्रेरित ये कहानी हो सकती है, जिसमें हम बच्चन जी के साथ काम कर सकते हैं. इसके बाद मैंने इसपर रिसर्च की. नागपूर के जो विजय बारसे है, उनके स्टूडेंट हैं अखिलेश और बाकी भी जो 100-200 स्टूडेंट हैं, जो उनके साथ खेलते है, उनकी कहानी मैंने जानी-समझी और एक स्क्रीनप्ले लिखा. इसके बाद बच्चन जी को सुनाया, उनको पसंद आया फिर इस फिल्म का काम शुरू हुआ.

प्रश्न - बच्चन जी के साथ आपका काम करने का अनुभव कैसा था?

उत्तर - बहुत अच्छा रहा. मै पिछले आठ दिन से यही बात कर रहा हूं. मगर थक नही रहा हू. बल्कि मैं इसका आनंद ले रहा हूं. ये सवाल जो पूछा जा रहा है इसकी भी एक खुशी है... मेरा सपना नहीं था मैं फिल्ममेकर बनूंगा ये भी मेरा सपना नहीं था...बच्चन सर के साथ काम करने का मौका मिले तो दुनिया कोई भी डायरेक्टर नहीं होगा जो करना नहीं चाहेगा. मेरे राह में ये मौका आ गया. ये मेरे लिए ख्वाब से भी बड़ा है... मेरे लिए ये अमूल्य है.

प्रश्न - कोविड की वजह से ये जो फिल्म रही वह देरी से प्रदर्शित हो रही है, क्या इस दौरान आपने इसमें कुछ बदलाव किए?

उत्तर - ऐसा नहीं है. कोविड आ गया तो बदलाव करो. थोडा एडिटिंग में काम हो सकता है. वक्त ज्यादा मिला तो, बार बार देखा जाता है, लेकिन अंत में फिल्म वैसी ही बनती है जैसी आप बनाते है.

प्रश्न - आपके फिल्मों मे पिछड़ा वर्ग पर भाष्य किया जाता है, मराठी में इस पर कम का हो रहा है, ऐसा आपको लगता है?

उत्तर - सिर्फ महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया, हिंदी फिल्मों में भी अगर देखा जाए तो दलित हो, महिलाए हो इनकी बातें ज्यादा नहीं होती. हर एक के बारे में बात करनी चाहिए, ऐसा मैं मानता हूं. साहित्य में भी, फिल्मों मे भी समाज और जिंदगी के हर एक चीज में इसका होना बहुत जरुरी है.

प्रश्न - फँड्री और सैराट ये आपकी जीवन की अनमोल फिल्मे रही. इसके पिछे क्या प्रेरणा रही?

उत्तर - इस बारे में मैं बहुत बार बात कर चुका हूं. मेरी पूरी फिल्म मेकिंग की प्रेरणा के बारे में. सैराट के बारे में बात करे तो, बचपन से प्रेम के बारे में जो सोचता था, और प्यार करना हमारे भारत में बहुत मुश्किल चीज है और आप जब किसी लड़की के बारे सोचते हो तो आपको बहुत सारी चीजें याद आने लगती है. जाति, धर्म, गरीबी-अमीरी जैसी चीजें. बहुत छोटी-छोटी चीजें होती हैं, जो प्रेरणा बनके आपसे काम करवाती है. मैं वही सोचता हूं कि जिंदगी बेहतर हो, सब एक-दूसरे से प्यार करें, लिंग, धर्म के नाम पर हम एक दूसरे के साथ भेदभाव ना करे.

प्रश्न - झुंड फिल्म के माध्यम से आपने बच्चन जी के साथ काम किया. बहुत सारा समय आपने उनके साथ बिताया. बहुत सारी बातें आपको सिखने को मिली होंगी. क्या आप इनमें से कुछ शेयर करेंगे.

उत्तर - बहुत कुछ सिखने को मिला. इतने बड़े स्टार होकर भी वो सेट पर बड़ी सादगी से रहते हैं. ये बहुत समझने और सीखने वाली बात है. और बहोत सारी यादें हैं. सीखने के लिए आपको हर बार सीखने की जरुरत नहीं होती. आप देख कर भी सीख जाते हैं और बच्चन सर से तो हर कोई सीख सकता है.

प्रश्न - आनेवाले समय में नागराज हिंदी मे कुछ नया लेकर नजर आएंगे?

उत्तर - मैं कोशिश करुंगा कि हर भाषा में काम करूं. भाषा कोई समस्या नहीं है. हर भाषा में कर सकता हू. मराठी तो करना ही है. और हिंदी भी करू, तेलुगू, तमिल भी करू.

प्रश्न - सर, आखिरी सवाल, झुंड मराठी में क्यो नहीं आयी?

उत्तर - कहानी हिंदी में है. नागपुर के बहुत सारे लोग हिंदी बोलते हैं. आप अगर जाने तो ये बच्चे हिंदी बोलते हैं. बच्चन सर के साथ ये फिल्म बनानी थी इसलिए ये हिंदी है.

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Last Updated : Mar 4, 2022, 2:46 PM IST
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