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हैप्पी बर्थडे 'नसीर साहब'! - jaane bhi do yaron

आज हिंदी सिनेमा के मेनस्ट्रीम और पैरलल सिनेमा के वन ऑफ द बेस्ट एक्टर 'नसीर साहब' उर्फ नसीरूद्दीन शाह जी का जन्मदिन हैं. हिंदी सिनेमा के मास्टरक्लास नसीर साहब को जन्मदिन की बधाई देते हुए आइये डालते हैं उनके फिल्मी करियर और जीवन पर एक नजर...

naseer sahab
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Published : Jul 20, 2019, 10:30 AM IST

मुंबईः हिंदी फिल्म जगत के लेजेंडरी एक्टर और आर्टिस्ट 'नसीर साहब' यानी की नसीरूद्दीन शाह जी का आज जन्मदिन है. इस अभिनेता के खास दिन पर आइये जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ अनकहे पहलू...


'कर्मा', 'विश्वात्मा', 'मासूम', 'हीरो हीरालाल', 'मालामाल', 'मोहरा', इंकलाब', 'जाने भी दो यारों', 'सरफरोश' और कई सारे बेहकरीन फिल्मों का जब जिक्र होता है तो पहली इमेज जो ध्यान में आती है वो है हिंदी सिनेमा के वन ऑफ द फाइनेस्ट एक्टर वर्सटाइल, मल्टीटैलेंटेड लेजेंडरी नसीरूद्दीन शाह साहब की.

और आए भी क्यों न! नसीर साहब की एक्टिंग का तो जमाना दीवाना है और पूरा बॉलीवुड कायल. रोल चाहे कॉमेडी हो, विलन का, हीरो का या भले ही सपोर्टिंग कास्ट, नसीर साहब ने हर रोल के साथ जस्टिस किया और उस कैरेक्टर को ऐसा ऑडियंस के सामने पोश किया कि वो कैरेक्टर हमेशा हमेशा के लिए लोगों के दिलों में बस गया. चाहे वो 'मोहरा' के शांत और शरीफ दिखने वाले खूखांर विलन का किरदार हो, 'कर्मा' के दिलदार और अपने इरादों पर कायम 'खैरू भाई' हो या फिर 'चमत्कार' के हिलेरियस भूत 'मार्को'.

पढ़ें- 'मिशन मंगल' के डायलॉग्स पर बन रहे मजेदार मीम्स



मगर इस लेजेंटरी एक्टर का सफर भी आसान नहीं रहा है. 20 जुलाई सन 1950 को यूपी के बाराबंकी में पैदा हुए नसीर साहब ने 'सेंट जोसेफ कॉलेज', नैनीताल से स्कूलिंग की, 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' से ग्रेजुएट हुए और दिल्ली के 'नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा' के भी शागिर्द रहे.

शाह ने क्रिटकली अकेल्मड और हिंदी पैरलल सिनेमा की शान कहे जाने वाली फिल्में- 'निशांत', 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है', 'त्रिकाल', 'भावनी भवाई', 'जुनून', 'मंडी', 'मोहन जोशी हाजिर हो', 'अर्ध सत्य', 'कथा' और 'जाने भी दो यारों' जैसी फिल्मों में काम किया है.

स्टेज के इस बेहतरीन एक्टर ने1980 में फिल्म 'हम पांच' से मेनस्ट्रीम सिनेमा में कदम रखा और एक बार जो कदम रखा फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक्टिंग का जादू ऐसा कि चाहे 1980 हो या 2019 जो भी रोल हो, जैसी भी फिल्म हो नसीर साहब लाजवाब होते है.

यही वजह है शायद कि इस 69 साल के अनकनवेंशल एक्टर को तीन बार 'नेशनल फिल्म अवार्ड', तीन 'फिल्मफेयर' और 'वेनिस फिल्म फेस्टिवल' में एक अवॉर्ड के अलावा भारत सरकार द्वारा इस अभिनय के मास्टर को हिंदी सिनेमा में अपने बहुमूल्य योगदान के लिए 'पद्म श्री' और 'पद्म भूषण' से भी नवाजा गया है.

आज नसीरुद्दीन शाह के बेहतरीन कामों को याद करते हुए इन्हें लंबी और हेल्थी उम्र की दुआएं देते हुए जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले कई सालों तक हिंदी सिनेमा का ये सितारा यूं ही जगमगता रहे और अपनी रौशनी से फिल्म इंटस्ट्री को रौशन करता रहेगा.

मुंबईः हिंदी फिल्म जगत के लेजेंडरी एक्टर और आर्टिस्ट 'नसीर साहब' यानी की नसीरूद्दीन शाह जी का आज जन्मदिन है. इस अभिनेता के खास दिन पर आइये जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ अनकहे पहलू...


'कर्मा', 'विश्वात्मा', 'मासूम', 'हीरो हीरालाल', 'मालामाल', 'मोहरा', इंकलाब', 'जाने भी दो यारों', 'सरफरोश' और कई सारे बेहकरीन फिल्मों का जब जिक्र होता है तो पहली इमेज जो ध्यान में आती है वो है हिंदी सिनेमा के वन ऑफ द फाइनेस्ट एक्टर वर्सटाइल, मल्टीटैलेंटेड लेजेंडरी नसीरूद्दीन शाह साहब की.

और आए भी क्यों न! नसीर साहब की एक्टिंग का तो जमाना दीवाना है और पूरा बॉलीवुड कायल. रोल चाहे कॉमेडी हो, विलन का, हीरो का या भले ही सपोर्टिंग कास्ट, नसीर साहब ने हर रोल के साथ जस्टिस किया और उस कैरेक्टर को ऐसा ऑडियंस के सामने पोश किया कि वो कैरेक्टर हमेशा हमेशा के लिए लोगों के दिलों में बस गया. चाहे वो 'मोहरा' के शांत और शरीफ दिखने वाले खूखांर विलन का किरदार हो, 'कर्मा' के दिलदार और अपने इरादों पर कायम 'खैरू भाई' हो या फिर 'चमत्कार' के हिलेरियस भूत 'मार्को'.

पढ़ें- 'मिशन मंगल' के डायलॉग्स पर बन रहे मजेदार मीम्स



मगर इस लेजेंटरी एक्टर का सफर भी आसान नहीं रहा है. 20 जुलाई सन 1950 को यूपी के बाराबंकी में पैदा हुए नसीर साहब ने 'सेंट जोसेफ कॉलेज', नैनीताल से स्कूलिंग की, 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' से ग्रेजुएट हुए और दिल्ली के 'नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा' के भी शागिर्द रहे.

शाह ने क्रिटकली अकेल्मड और हिंदी पैरलल सिनेमा की शान कहे जाने वाली फिल्में- 'निशांत', 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है', 'त्रिकाल', 'भावनी भवाई', 'जुनून', 'मंडी', 'मोहन जोशी हाजिर हो', 'अर्ध सत्य', 'कथा' और 'जाने भी दो यारों' जैसी फिल्मों में काम किया है.

स्टेज के इस बेहतरीन एक्टर ने1980 में फिल्म 'हम पांच' से मेनस्ट्रीम सिनेमा में कदम रखा और एक बार जो कदम रखा फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक्टिंग का जादू ऐसा कि चाहे 1980 हो या 2019 जो भी रोल हो, जैसी भी फिल्म हो नसीर साहब लाजवाब होते है.

यही वजह है शायद कि इस 69 साल के अनकनवेंशल एक्टर को तीन बार 'नेशनल फिल्म अवार्ड', तीन 'फिल्मफेयर' और 'वेनिस फिल्म फेस्टिवल' में एक अवॉर्ड के अलावा भारत सरकार द्वारा इस अभिनय के मास्टर को हिंदी सिनेमा में अपने बहुमूल्य योगदान के लिए 'पद्म श्री' और 'पद्म भूषण' से भी नवाजा गया है.

आज नसीरुद्दीन शाह के बेहतरीन कामों को याद करते हुए इन्हें लंबी और हेल्थी उम्र की दुआएं देते हुए जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले कई सालों तक हिंदी सिनेमा का ये सितारा यूं ही जगमगता रहे और अपनी रौशनी से फिल्म इंटस्ट्री को रौशन करता रहेगा.

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हैप्पी बर्थडे 'नसीर साहब'!

मुंबईः हिंदी फिल्म जगत के लेजेंडरी एक्टर और आर्टिस्ट 'नसीर साहब' यानी की  नसीरूद्दीन शाह जी का आज जन्मदिन है.  इस अभिनेता के खास दिन पर आइये जानते हैं उनकी जिंदगी के कुछ अनकहे पहलू...

'कर्मा', 'विश्वात्मा', 'मासूम', 'हीरो हीरालाल', 'मालामाल', 'मोहरा', इंकलाब', 'जाने भी दो यारों', 'सरफरोश' और कई सारे बेहकरीन फिल्मों का जब जिक्र होता है तो पहली इमेज जो ध्यान में आती है वो है हिंदी सिनेमा के वन ऑफ द फाइनेस्ट एक्टर वर्सटाइल, मल्टीटैलेंटेड लेजेंडरी नसीरूद्दीन शाह साहब की.

और आए भी क्यों न! नसीर साहब की एक्टिंग का तो जमाना दीवाना है और पूरा बॉलीवुड कायल. रोल चाहे कॉमेडी हो, विलन का, हीरो का या भले ही सपोर्टिंग कास्ट, नसीर साहब ने हर रोल के साथ जस्टिस किया और उस कैरेक्टर को ऐसा ऑडियंस के सामने पोश किया कि वो कैरेक्टर हमेशा हमेशा के लिए लोगों के दिलों में बस गया. चाहे वो 'मोहरा' के शांत और शरीफ दिखने वाले खूखांर विलन का किरदार हो, 'कर्मा' के दिलदार और अपने इरादों पर कायम 'खैरू भाई' हो या फिर 'चमत्कार' के हिलेरियस भूत 'मार्को'.

मगर इस लेजेंटरी एक्टर का सफर भी आसान नहीं रहा है. 20 जुलाई सन 1950 को यूपी के बाराबंकी में पैदा हुए नसीर साहब ने 'सेंट जोसेफ कॉलेज', नैनीताल से स्कूलिंग की, 'अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी' से ग्रेजुएट हुए और दिल्ली के 'नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा' के भी शागिर्द रहे.

शाह ने क्रिटकली अकेल्मड और हिंदी पैरलल सिनेमा की शान कहे जाने वाली फिल्में- 'निशांत', 'आक्रोश', 'स्पर्श', 'मिर्च मसाला', 'अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है', 'त्रिकाल', 'भावनी भवाई', 'जुनून', 'मंडी', 'मोहन जोशी हाजिर हो', 'अर्ध सत्य', 'कथा' और 'जाने भी दो यारों' जैसी फिल्मों में काम किया है.

स्टेज के इस बेहतरीन एक्टर ने1980 में फिल्म 'हम पांच' से मेनस्ट्रीम सिनेमा में कदम रखा और एक बार जो कदम रखा फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और एक्टिंग का जादू ऐसा कि चाहे 1980 हो या 2019 जो भी रोल हो, जैसी भी फिल्म हो नसीर साहब लाजवाब होते है. 

यही वजह है शायद कि इस 69 साल के अनकनवेंशल एक्टर को तीन बार 'नेशनल फिल्म अवार्ड', तीन 'फिल्मफेयर' और 'वेनिस फिल्म फेस्टिवल' में एक अवॉर्ड के अलावा भारत सरकार द्वारा इस अभिनय के मास्टर को हिंदी सिनेमा में अपने बहुमूल्य योगदान के लिए 'पद्म श्री' और 'पद्म भूषण' से भी नवाजा गया है.

आज नसीरुद्दीन शाह  के बेहतरीन कामों को याद करते हुए इन्हें लंबी और हेल्थी उम्र की दुआएं देते हुए जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले कई सालों तक हिंदी सिनेमा का ये सितारा यूं ही जगमगता रहे और अपनी रौशनी से फिल्म इंटस्ट्री को रौशन करता रहेगा.


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