मुंबईः आज का दिन हिंदी सिनेमाप्रेमियों के लिए दुखद भरा हैं, क्योंकि आज दुनिया ने एक बेहतरीन एक्टर और एक दिलदार इंसान को हमेशा के लिए खो दिया.
इरफान खान का जन्म 7 जनवरी, 1967 को जयपुर, राजस्थान के एक मुस्लिम परिवार में बेगम खान और यासीन अली खान के घर पर हुआ था. उनके माता पता टोंक जिले के पास खजुरिया गाँव से थे और टायर का कारोबार चलाते थे. इरफान शुरू में क्रिकेट में अपना करियर बनाना चाहते थे, उन्हें सीके नायडू टूर्नामेंट के लिए 23 साल से कम उम्र की प्रथम श्रेणी क्रिकेट टीम में भी चुना गया था, लेकिन बदकिस्मती से वह पैसों की कमी के कारण टूर्नामेंट में भाग लेने के लिए नहीं पहुंच पाए.
क्रिकेट का सपना टूटने के बाद इरफान ने अभिनय की तरफ रूख किया और 1984 में नई दिल्ली के राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) से एमए डिग्री पाने के लिए स्कॉलरशिप हासिल की और एक्टिंग में ट्रेनिंग में ली.
अपने करियर के शुरूआती इरफान ने टीवी के पर्दे से की. उन्होंने दूरदर्शन और अन्य चैनलों के कई धारावहिकों में काम किया. अभिनेता पहली बार 'डर' नामक सीरीयल में नजर आए जिसमें उनके साइको किलर के किरदार ने लोगों को इम्प्रेस किया.
इसके बाद उन्होंने 'चाणक्य', 'भारत एक खोज', 'सारा जहां हमारा', 'बनेगी अपनी बात' और 'चंद्रकांता' आदि में काम किया और घर-घर में वह एक जाना-पहचाना चेहरा बन गए.
इसके बाद वह अपने फिल्मी सफर की शुरूआत के लिए मुंबई रवाना हुए. अभिनेता ने पहली बार बड़े पर्दे पर अपनी मौजूदगी 1988 में आई ऑस्कर नॉमिनेटेड फिल्म 'सलाम बॉम्बे!' में दर्ज कराई. इरफान का किरदार सामान्य व्यक्ति का था लेकिन उसके बावजूद उनकी स्क्रीन प्रेजेंस ने लोगों की तारीफें बटोरी.
1990 के दशक में वह कुछ क्रिटिकली अकलेम्ड फिल्मों में भी नजर आए है जिनमें 'एक डॉक्टर की मौत' और 'सच ए लॉन्ग जर्नी'(1998) अहम थी. खान ने 'द बैंडिट' में रत्नाकार उर्फ वाल्मिकी का किरदार भी निभाया जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हुई.
इसी दौरान इरफान के निजी जीवन में भी बदलाव आए. अभिनेता ने सुतापा सिकदर साल 1995 में शादी की और उनके दो बेटे भी हुए- बाबिल और अयान.
अपनी शानदार परफॉरमेंसेस के बाद भी अभिनेता की जिंदगी को पलटने में अभी देर थी. अभिनेता को फिर मिली अपने करियर की वह फिल्म जिसने देश ही नहीं विदेश में भी उन्हें पहचान दिला दी. लंदन में रहने वाले फिल्म निर्माता आसिफ कपड़िया ने उन्हें अपनी इंटरनेशनल फिल्म 'द वॉरियर'(2001) में लीड रोल ऑफर किया. फिल्म कई इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में भी स्क्रीन हुई और विदेशी दर्शकों के बीच खान नामचीन चेहरा बन गए.
इसके बाद उन्होंने 'हासिल'(2003) 'मकबूल'(2004) जैसी फिल्मों में ग्रे शेड किरदार निभाए, जिसके लिए उनकी खूब तारीफ हुई. 'हासिल' के लिए इरफान को बेस्ट विलेन के फिल्मफेयर अवॉर्ड से भी नवाजा गया.
इसके बाद तो उनकी करियर ने जो जोर पकड़ा वह जीवन भर वह रुका ही नहीं. उन्होंने बॉलीवुड में कई फिल्मों में अपने काम से लोगों का दिल जीत लिया जिनमें 'हिंदी मीडियम'(2017), 'द लंचबॉक्स'(2013), 'पीकू'(2015), 'करीब करीब सिंगल'(2017), 'मदारी'(2016), 'कारवां'(2018), 'पान सिंह तोमर'(2010), 'बिल्लू'(2009) 'तलवार'(2015), 'जज्बा'(2015), 'गुंडे'(2014), 'डी-डे'(2013), 'लाइफ इन ए... मेट्रो'(2007) 'रोग'(2005), 'साहेब बीवी और गैंग्स्टर'(2013) और 'अंग्रेजी मीडियम'(2020) आदि शामिल हैं.
बॉलीवुड के साथ-साथ हॉलीवुड में भी उन्होंने अपनी एक्टिंग का जादू बिखेरा और इंटरनेशनल ऑडियंस ने उनके काम की खूब सराहना की.
'द वॉरियर' के बाद, इरफान ने 'द नेमसेक'(2006), 'द दार्जिलिंग लिमिटेड'(2007) 'स्लमडॉग मिलिनेयर'(2008) 'न्यूयॉर्क, आई लव यू' (2009), 'द अमेजिंग स्पाइडर-मैन' (2012), 'लाइफ ऑफ पाई' (2012), 'जुरासिक वर्ल्ड' और 'इनफर्नो' (2015) जैसे इंटरनेशल प्रोजेक्ट में बड़े-बड़े हॉलीवुड सितारों के साथ काम किया और उसके बावजूद अपनी छाप छोड़ने में कामयाब रहे.
इरफान ने अपनी परफॉरमेंस से दर्शकों के दिल तो जीते ही कई अवॉर्ड्स भी अपने नाम किए. आईफा का बेस्ट एक्टर अवॉर्ड, फिल्मफेयर का बेस्ट एक्टर खिताब और बेस्ट एक्टर का नेशनल फिल्म अवॉर्ड आदि.
अभिनेता को अपने काम के लिए 2011 में पद्म श्री से भी सम्मानित किया गया.
इरफान के किरदार जितने मशहूर हैं उतने ही उनके कुछ डायलॉग भी जो स्थिति के साथ बिलकुल सटीक बैठते हैं और लोगों को सोचने पर भी मजबूर कर देते हैं.
फिल्म 'साहेब बीवी और गैंग्स्टर' का उनका डायलॉग 'गॉड मेड मैन एंड टेलर मेड जेंटलमैन' हो या 'जज्बा' का 'यहां सबका एक ही तकिया कलाम है... हजार के नोट पे बापू को सलाम है' सभी ने दर्शकों की खूब तालियां बटोरीं.
ऐसे कई डायलॉग्स है जिनमें उन्होंने लोगों को न सिर्फ एंटरटेन किया बल्कि जिंदगी का मर्म भी सिखा गए.
अभिनेता का करियर अपनी ऊचांइयों पर ही था कि अचानक वक्त पलटा और सबकुछ एकदम से बिखर गया. इरफान ने 2018 में अंजान बिमारी का इलाज कराया जिसके बारे में बाद में पता चला कि उन्हें न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर है. यह एक खतरनाक किस्म का ट्यूमर है जो एक साथ शरीर के कई हिस्सों को नुकसान पहुंचाता है.
लेकिन इरफान के जज्बे और जुझारूपन के सामने ट्यूमर को भी मात खानी पड़ी. वह अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जंग जीत कर वापस आए और दोबारा फिल्मों में काम शुरू किया.
लेकिन यह सफर ज्यादा लंबा नहीं चल सका और इरफान आखिरी बार होमी अदजानिया की फिल्म 'अंग्रेजी मीडियम' में नजर आए. फिल्म में अभिनेता की परफॉरमेंस ने सभी का दिल जीत लिया. इरफान ने आखिरी बार स्क्रीन पर करीना कपूर खान, राधिका मदान, दीपक डोबरियाल और रणवीर शौरी आदि के साथ काम किया. लेकिन प्रमोशन की शुरूआत में ही उनकी तबियत फिर से खराब हो गई और उन्हें डॉक्टर की देख-रेख की जरूरत पड़ी.
28 अप्रैल के दिन सुबह ही तबियत ज्यादा बिगड़ने की वजह से उन्हें मुंबई के कोकिलाबेन धीरुभाई अंबानी अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया. जिसके बाद आज सुबह अभिनेता के करीबी दोस्त और फिल्म निर्माता शूजित सिरकार ने ट्विटर पर यह जानकारी साझा की कि इरफान ने हम सबको हमेशा के लिए अलविदा कह दिया है.
इरफान भले ही हमें अलविदा कह गए हों, लेकिन उनकी फिल्में और उनका अंदाज सभी के दिलों में हमेशा जिंदा रहेगा. और जैसा कि इरफान ने अपने आखिरी ऑडियो मैसेज (अंग्रेजी मीडियम के ट्रेलर रिलीज से पहले) में कहा था, '...पर सच में जब जिंदगी आपके हाथों में नींबू थमाती है तो आप शिकंजी बना पाते हैं या नहीं, देखने वाली बात है. लेकिन पॉजिटिव रहने के अलावा आपको पास ऑप्शन ही क्या है.'
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तो इन्हीं लफ्जों के साथ ईटीवी भारत इरफान को अलविदा कहते हुए उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता है.