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दुनिया जलवायु खतरे के क्षेत्र में जा रही है, वैज्ञानिकों ने किया आगाह - जलवायु परिवर्तन

जलवायु वैज्ञानिकों ने आगाह किया है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर देशों की सही भूमिका नहीं निभाने से धरती का तापमान खतरे के बिंदु से आगे निकल जाएगा. वहीं संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस (UN Secretary-General Antonio Guterres) ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन पर आईपीसीसी की रिपोर्ट में सरकारों और निगमों के द्वारा जलवायु संबंधी वादों के टूटने का खुलासा किया गया है.

The world is heading into the climate danger zone
दुनिया जलवायु खतरे के क्षेत्र में जा रही
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Published : Apr 4, 2022, 10:44 PM IST

Updated : Apr 5, 2022, 11:04 AM IST

बर्लिन : दुनिया के शीर्ष जलवायु वैज्ञानिकों ने सोमवार को आगाह किया कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर देश तेजी से प्रतिबद्धता नहीं निभाते हैं तो धरती पर तापमान एक प्रमुख खतरे के बिंदु से आगे निकल जाएगा. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस (UN Secretary-General Antonio Guterres) ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट ने सरकारों और निगमों द्वारा जलवायु संबंधी वादों के टूटने का खुलासा किया, जिसमें उन पर हानिकारक जीवाश्म ईंधन पर टिके रहने का आरोप लगाया गया है. उन्होंने कहा, 'यह शर्मसार करने वाली फाइल है, जो खोखले वादों को दर्शाती है.'

वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में सरकारें इस सदी में वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमत हुई थीं. हालांकि, कई विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान वृद्धि के पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाने के मद्देनजर लक्ष्य प्राप्ति के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती ही एकमात्र उपाय है. पैनल ने कहा, '(राष्ट्रीय संकल्पों से) अनुमानित वैश्विक उत्सर्जन तापमान को 1.5 सेल्सियस तक सीमित करता है और 2030 के बाद इसे दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना कठिन बना देता है.'

रिपोर्ट के सह-अध्यक्ष, इंपीरियल कॉलेज लंदन के जेम्स स्की ने बताया, 'अगर हम अभी जो कर रहे उसे जारी रखते हैं तो हम तापमान को दो डिग्री तक सीमित नहीं करने जा रहे हैं, 1.5 डिग्री की तो बात ही नहीं करें.' रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचे में निवेश और कृषि के लिए बड़े पैमाने पर वनों के सफाया से पेरिस लक्ष्य कमजोर हुआ है. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख गुतारेस ने कहा, 'पेरिस में सहमत 1.5 डिग्री की सीमा को पहुंच के भीतर रखने के लिए हमें इस दशक में वैश्विक उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कटौती करने की आवश्यकता है.' उन्होंने कहा, 'लेकिन वर्तमान जलवायु प्रतिज्ञाओं का मतलब उत्सर्जन में 14 प्रतिशत की वृद्धि होगी.'

ये भी पढ़ें - भारत की 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की प्रतिज्ञा वास्तविक जलवायु कार्रवाई : विशेषज्ञ

रिपोर्ट के लेखकों ने कहा है कि उन्हें 'पूरा विश्वास' है कि देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने के अपने प्रयासों को आगे नहीं बढ़ाते हैं तो सदी के अंत तक ग्रह औसतन 2.4 सेल्सियस से 3.5 सेल्सियस गर्म हो जाएगा. यह ऐसा स्तर है जिस के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि निश्चित रूप से दुनिया की अधिकतर आबादी पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा. गुतारेस और रिपोर्ट के सह-अध्यक्षों के कड़े शब्दों के बावजूद पूरी रिपोर्ट में किसी खास देश को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है. सुझाए गए समाधान में जीवाश्म ईंधन से सौर और पवन जैसी अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने, परिवहन का विद्युतीकरण, संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग और ऐसे उपायों के लिए भुगतान करने में असमर्थ गरीब देशों के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय सहायता शामिल हैं.

(पीटीआई-भाषा)

बर्लिन : दुनिया के शीर्ष जलवायु वैज्ञानिकों ने सोमवार को आगाह किया कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर देश तेजी से प्रतिबद्धता नहीं निभाते हैं तो धरती पर तापमान एक प्रमुख खतरे के बिंदु से आगे निकल जाएगा. संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस (UN Secretary-General Antonio Guterres) ने कहा कि जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (आईपीसीसी) की रिपोर्ट ने सरकारों और निगमों द्वारा जलवायु संबंधी वादों के टूटने का खुलासा किया, जिसमें उन पर हानिकारक जीवाश्म ईंधन पर टिके रहने का आरोप लगाया गया है. उन्होंने कहा, 'यह शर्मसार करने वाली फाइल है, जो खोखले वादों को दर्शाती है.'

वर्ष 2015 के पेरिस जलवायु समझौते में सरकारें इस सदी में वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने पर सहमत हुई थीं. हालांकि, कई विशेषज्ञों का कहना है कि तापमान वृद्धि के पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से 1.1 डिग्री सेल्सियस अधिक हो जाने के मद्देनजर लक्ष्य प्राप्ति के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में भारी कटौती ही एकमात्र उपाय है. पैनल ने कहा, '(राष्ट्रीय संकल्पों से) अनुमानित वैश्विक उत्सर्जन तापमान को 1.5 सेल्सियस तक सीमित करता है और 2030 के बाद इसे दो डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना कठिन बना देता है.'

रिपोर्ट के सह-अध्यक्ष, इंपीरियल कॉलेज लंदन के जेम्स स्की ने बताया, 'अगर हम अभी जो कर रहे उसे जारी रखते हैं तो हम तापमान को दो डिग्री तक सीमित नहीं करने जा रहे हैं, 1.5 डिग्री की तो बात ही नहीं करें.' रिपोर्ट में कहा गया है कि जीवाश्म ईंधन के बुनियादी ढांचे में निवेश और कृषि के लिए बड़े पैमाने पर वनों के सफाया से पेरिस लक्ष्य कमजोर हुआ है. संयुक्त राष्ट्र प्रमुख गुतारेस ने कहा, 'पेरिस में सहमत 1.5 डिग्री की सीमा को पहुंच के भीतर रखने के लिए हमें इस दशक में वैश्विक उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कटौती करने की आवश्यकता है.' उन्होंने कहा, 'लेकिन वर्तमान जलवायु प्रतिज्ञाओं का मतलब उत्सर्जन में 14 प्रतिशत की वृद्धि होगी.'

ये भी पढ़ें - भारत की 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य की प्रतिज्ञा वास्तविक जलवायु कार्रवाई : विशेषज्ञ

रिपोर्ट के लेखकों ने कहा है कि उन्हें 'पूरा विश्वास' है कि देश ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती करने के अपने प्रयासों को आगे नहीं बढ़ाते हैं तो सदी के अंत तक ग्रह औसतन 2.4 सेल्सियस से 3.5 सेल्सियस गर्म हो जाएगा. यह ऐसा स्तर है जिस के बारे में विशेषज्ञों का कहना है कि निश्चित रूप से दुनिया की अधिकतर आबादी पर इसका गंभीर प्रभाव पड़ेगा. गुतारेस और रिपोर्ट के सह-अध्यक्षों के कड़े शब्दों के बावजूद पूरी रिपोर्ट में किसी खास देश को जिम्मेदार नहीं ठहराया गया है. सुझाए गए समाधान में जीवाश्म ईंधन से सौर और पवन जैसी अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ने, परिवहन का विद्युतीकरण, संसाधनों का अधिक कुशल उपयोग और ऐसे उपायों के लिए भुगतान करने में असमर्थ गरीब देशों के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय सहायता शामिल हैं.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Apr 5, 2022, 11:04 AM IST
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