संयुक्त राष्ट्र: ब्रिटेन ने भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान के साथ-साथ अफ्रीकी प्रतिनिधित्व को शामिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सीटों के विस्तार का आह्वान किया है. उसने रेखांकित किया कि अब समय आ गया है कि शक्तिशाली संयुक्त राष्ट्र निकाय 2020 के दशक में प्रवेश करे. संयुक्त राष्ट्र में ब्रिटेन के स्थायी प्रतिनिधि और जुलाई महीने के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्ष राजदूत बारबरा वुडवर्ड की टिप्पणियां तब आईं जब उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संवाददाताओं को महीने के लिए सुरक्षा परिषद के काम के कार्यक्रम के बारे में जानकारी दी.
वुडवर्ड ने सोमवार को यहां संवाददाताओं से कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार पर, 'हम भारत, ब्राजील, जर्मनी व जापान और अफ्रीकी प्रतिनिधित्व को शामिल करने के लिए परिषद की स्थायी सीटों का विस्तार देखना चाहते हैं. अब समय आ गया है कि परिषद 2020 के दशक में प्रवेश करे.' वुडवर्ड ने पिछले सप्ताह ब्रिटिश विदेश मंत्री जेम्स क्लेवरली की टिप्पणियों का उल्लेख किया जिसमें उन्होंने बहुपक्षीय प्रणाली में सुधार को आगे बढ़ाने की ब्रिटेन की महत्वाकांक्षा की घोषणा की थी.
वुडवर्ड ने कहा कि जुलाई में ब्रिटेन की सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता उस प्रक्रिया में पहला कदम है. भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान के लिए स्थायी यूएनएससी सदस्यता के लिए ब्रिटेन के समर्थन के कारण पर एक सवाल का जवाब देते हुए, वुडवर्ड ने कहा, 'जिन चार देशों का हमने समर्थन किया, उनके पीछे हमारी सोच आंशिक रूप से भौगोलिक संतुलन से संबंधित थी.'
उन्होंने कहा, 'भारत और ब्राजील को शामिल करने से परिषद में व्यापक भौगोलिक प्रतिनिधित्व आएगा, लेकिन उन देशों को भी इसमें शामिल किया जाएगा जिनका प्रभाव स्पष्ट कारणों से 1945 में मूल सुरक्षा परिषद बनाए जाने के समय की तुलना में अधिक है.' पिछले हफ्ते, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सितंबर में शुरू होने वाले 78वें सत्र में सुरक्षा परिषद सुधार पर अंतर सरकारी वार्ता (आईजीएन) जारी रखने के लिए एक मौखिक निर्णय का मसौदा अपनाया.
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि राजदूत रुचिरा कांबोज ने इस बात पर जोर दिया कि आईजीएन के ‘रोल-ओवर’ निर्णय को केवल एक नासमझ तकनीकी कवायद तक सीमित नहीं किया जा सकता है. कांबोज ने कहा था, 'हम इस तकनीकी निर्णय को एक ऐसी प्रक्रिया में जान फूंकने के एक और बर्बाद अवसर के रूप में देखते हैं जिसने चार दशकों से अधिक समय में जीवन या विकास का कोई संकेत नहीं दिखाया है.'
कांबोज ने इस बात पर जोर दिया था कि अब यह स्पष्ट है कि आईजीएन अपने वर्तमान स्वरूप और तौर-तरीकों में वास्तविक सुधार की दिशा में किसी भी प्रगति के बिना अगले 75 वर्षों तक चल सकता है. भारत की इस आलोचना पर ‘पीटीआई-भाषा’ के एक सवाल का जवाब देते हुए कि आईजीएन बिना किसी प्रगति के अगले 75 वर्षों तक चल सकता है, वुडवर्ड ने कहा, 'मैं मानती हूं कि यह एक बहुत ही निराशाजनक प्रक्रिया रही है.'
(पीटीआई-भाषा)