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जानें महामारी के बाद हमारी जिंदगी पुराने ढर्रे पर कितने वक्त में लौटेगी - इप्सोस के सर्वेक्षण के अनुसार

काेराेना के संकट के बाद हमारी जिंदगी पुराने ढर्रे पर कितने वक्त में लौटगी. इस पर एक सर्वे किया गया है. यह सर्वे दुनिया के 30 देशाें के लाेगाें के बयान पर आधारित है. इसमें ज्यादा लाेगाें का मानना है कि अगले 12 महीने में हम पहले की तरह जीवन जी पाएंगे. आइए इस पर डालतें हैं एक नजर....

काेराेना
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Published : Apr 18, 2021, 6:24 PM IST

हैदराबाद : काेराेना की दूसरी लहर के बीच अब लाेगाें काे सामान्य जीवन में लाैटने की बेचैनी सताने लगी है. लाेगाें की इसी इच्छा काे जानने के लिए विश्व आर्थिक मंच इप्सोस द्वारा एक सर्वे किया गया. इसमें पाया गया है कि कोरोना के बाद सामान्य जन-जीवन में लाैटने में कितना वक्त लगेगा. इप्सोस के सर्वेक्षण के अनुसार, अगले 12 महीनों के भीतर अधिकांश लोगों को जीवन 'सामान्य' पटरी लौटने की उम्मीद है.

सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश लोग अगले 12 महीनों के भीतर 'सामान्य' जीवन में लौटने की उम्मीद करते हैं. सर्वेक्षण 30 देशों के लाेगाें के विचाराें आधारित है.

इसे भी पढ़ें : अभिनेता अर्जुन रामपाल और नील नितिन मुकेश कोरोना पॉजिटिव

सर्वेक्षण के अनुसार, 59 फीसदी लोगों का मामना है कि अगले 12 महीनों के भीतर हम सामान्य जीवन में प्रवेश कर पाएंगे, जिसमें 6 फीसदी लोगों काे लगता है कि हम सामान्य जीवन जी रहे हैं. वहीं 9 फीसदी लोग सोचते हैं कि इसमें तीन महीने से अधिक नहीं लगेगा, जबकि 13 फीसदी लोगों काे लगता है कि इसमें चार से छह महीने लगेंगे.

इसमें से 32 फीसदी लोग मानते हैं कि इसमें सात से 12 महीने (औसत समय) लगेग, जबकि पांच में से एक को लगता है कि इसमें तीन साल (10%) से अधिक समय लगेगा या कह सकते हैं कि 8 फीसदी का मानना है कि ऐसा कभी नहीं होगा.

वहीं सऊदी अरब, रूस, भारत और चीन में 70 फीसदी से अधिक वयस्कों को भरोसा है कि एक साल के अंदर उनका जीवन पूरी तरह पटरी पर आ जाएगा.

इसके उलट जापान में 80 फीसदी और फ्रांस, इटली, दक्षिण कोरिया और स्पेन में आधे से अधिक लाेगाें काे लगता है कि इसमें बहुत समय लगेगा.

भारत, चीन और सऊदी अरब के अधिकांश लोगों को लगता है कि महामारी अगले छह महीनों तक रहेगी. इसके विपरीत, जापान में हर पांच में चार और ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, पोलैंड, स्पेन और स्वीडन में आधे से अधिक का मानना है कि इसमें एक वर्ष से अधिक समय लगेगा.

सर्वेक्षण के अनुसार, 45 फीसदी वयस्कों का कहना है कि लगभग एक साल पहले महामारी की शुरुआत से उनकी मानसिक और इमाेशनल स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है.

वहीं 27 फीसदी से कम का कहना है कि वे इस वर्ष की शुरुआत से ऐसा महसूस कर रहे हैं. जाे लाेग पिछले तीन महीनों (23%) में अपने भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार देख रहे हैं, उनका औसत प्रतिशत पिछले साल की तुलना में सात अंक अधिक है.

हैदराबाद : काेराेना की दूसरी लहर के बीच अब लाेगाें काे सामान्य जीवन में लाैटने की बेचैनी सताने लगी है. लाेगाें की इसी इच्छा काे जानने के लिए विश्व आर्थिक मंच इप्सोस द्वारा एक सर्वे किया गया. इसमें पाया गया है कि कोरोना के बाद सामान्य जन-जीवन में लाैटने में कितना वक्त लगेगा. इप्सोस के सर्वेक्षण के अनुसार, अगले 12 महीनों के भीतर अधिकांश लोगों को जीवन 'सामान्य' पटरी लौटने की उम्मीद है.

सर्वेक्षण के अनुसार, अधिकांश लोग अगले 12 महीनों के भीतर 'सामान्य' जीवन में लौटने की उम्मीद करते हैं. सर्वेक्षण 30 देशों के लाेगाें के विचाराें आधारित है.

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सर्वेक्षण के अनुसार, 59 फीसदी लोगों का मामना है कि अगले 12 महीनों के भीतर हम सामान्य जीवन में प्रवेश कर पाएंगे, जिसमें 6 फीसदी लोगों काे लगता है कि हम सामान्य जीवन जी रहे हैं. वहीं 9 फीसदी लोग सोचते हैं कि इसमें तीन महीने से अधिक नहीं लगेगा, जबकि 13 फीसदी लोगों काे लगता है कि इसमें चार से छह महीने लगेंगे.

इसमें से 32 फीसदी लोग मानते हैं कि इसमें सात से 12 महीने (औसत समय) लगेग, जबकि पांच में से एक को लगता है कि इसमें तीन साल (10%) से अधिक समय लगेगा या कह सकते हैं कि 8 फीसदी का मानना है कि ऐसा कभी नहीं होगा.

वहीं सऊदी अरब, रूस, भारत और चीन में 70 फीसदी से अधिक वयस्कों को भरोसा है कि एक साल के अंदर उनका जीवन पूरी तरह पटरी पर आ जाएगा.

इसके उलट जापान में 80 फीसदी और फ्रांस, इटली, दक्षिण कोरिया और स्पेन में आधे से अधिक लाेगाें काे लगता है कि इसमें बहुत समय लगेगा.

भारत, चीन और सऊदी अरब के अधिकांश लोगों को लगता है कि महामारी अगले छह महीनों तक रहेगी. इसके विपरीत, जापान में हर पांच में चार और ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, पोलैंड, स्पेन और स्वीडन में आधे से अधिक का मानना है कि इसमें एक वर्ष से अधिक समय लगेगा.

सर्वेक्षण के अनुसार, 45 फीसदी वयस्कों का कहना है कि लगभग एक साल पहले महामारी की शुरुआत से उनकी मानसिक और इमाेशनल स्वास्थ्य प्रभावित हुआ है.

वहीं 27 फीसदी से कम का कहना है कि वे इस वर्ष की शुरुआत से ऐसा महसूस कर रहे हैं. जाे लाेग पिछले तीन महीनों (23%) में अपने भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार देख रहे हैं, उनका औसत प्रतिशत पिछले साल की तुलना में सात अंक अधिक है.

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