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अपशिष्ट जल में कोविड-19 : भारत-ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने विकसित किया सेंसर

ब्रिटेन और भारत के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से एक कम लागत वाला सेंसर विकसित किया है, जो अपशिष्ट जल में कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस के अंशों का पता लगा सकता है.

अपशिष्ट जल में कोविड-19 का पता
अपशिष्ट जल में कोविड-19 का पता
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Published : Jun 10, 2021, 7:57 PM IST

लंदन : ब्रिटेन और भारत के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से एक कम लागत वाला सेंसर विकसित किया है, जो अपशिष्ट जल में कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस के अंशों का पता लगा सकता है. इससे स्वास्थ्य अधिकारियों के लिये इस बात की बेहतर समझ विकसित करने में मदद मिलेगी कि यह रोग कितने बड़े हिस्से में फैला है.

स्ट्रैथसाइडल विवि, आईआईटी बॉम्बे द्वारा विकसित तकनीक

स्ट्रैथसाइडल विश्वविद्यालय (Strathclyde University) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे (Indian Institute of Technology-IIT Bombay) द्वारा विकसित इस तकनीक का इस्तेमाल निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कोविड-19 (Covid -19) के व्यापक प्रसार पर नजर रखने में किया जा सकता है, जो बड़े पैमाने पर लोगों की जांच करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं.

हाल ही में 'सेंसर्स एंड एक्चुएटर्स बी: कैमिकल' (Sensors and Actuators B: Chemical) नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अनुसंधान के अनुसार सेंसर का पोर्टेबल उपकरण के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है. इसमें सार्स-कोव-2 वायरस का पता लगाने के लिये मानक पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction-PCR) जांच का उपयोग किया जाता है. इसमें समयबद्ध गुणवत्तापूर्ण पीसीआर जांच के लिए महंगे रसायनों और प्रयोगशाला की जरूरत नहीं होती.

अपशिष्ट जल के साथ सेंसर का परीक्षण

मुंबई में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (sewage treatment plant) से एकत्र किए गए अपशिष्ट जल के साथ सेंसर का परीक्षण किया गया था, जिसमें सार्स-कोव-2 (SARS-CoV-2) राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid-RNA) था.

सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग (Department of Civil and Environmental Engineering) में चांसलर फेलो डॉ एंडी वार्ड ने कहा कि कई निम्न-से-मध्यम आय वाले देशों को सामूहिक परीक्षण के लिए आवश्यक सुविधाओं तक सीमित पहुंच के कारण लोगों के बीच कोविड -19 का पता लगाने में चुनौती का सामना करना पड़ता है. अपशिष्ट जल में वायरस के अंशों के बारे में पता चलने से सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को यह समझने में मदद मिलेगी कि यह बीमारी कितने बड़े क्षेत्र में कितनी फैली है.

पढ़ेंः कोविड-19 : हांगकांग में 12 साल और इससे अधिक आयु के बच्चों का टीकाकरण होगा शुरू

बहुमुखी है विकसित तरीका- डॉ सिद्धार्थ तल्लूर

आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग (Department of Electrical Engineering) में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सिद्धार्थ तल्लूर (Associate Professor Dr. Siddharth Tallur) ने कहा कि हमने जो तरीका विकसित किया है वह सिर्फ सार्स-कोव-2 पर लागू नहीं है, इसे किसी भी अन्य वायरस पर लागू किया जा सकता है, इसलिए यह बहुत बहुमुखी है. उन्होंने कहा कि भविष्य में हम सटीकता बढ़ाने के लिए परीक्षण को और अधिक अनुकूल करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

(पीटीआई-भाषा)

लंदन : ब्रिटेन और भारत के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से एक कम लागत वाला सेंसर विकसित किया है, जो अपशिष्ट जल में कोविड-19 के लिए जिम्मेदार वायरस के अंशों का पता लगा सकता है. इससे स्वास्थ्य अधिकारियों के लिये इस बात की बेहतर समझ विकसित करने में मदद मिलेगी कि यह रोग कितने बड़े हिस्से में फैला है.

स्ट्रैथसाइडल विवि, आईआईटी बॉम्बे द्वारा विकसित तकनीक

स्ट्रैथसाइडल विश्वविद्यालय (Strathclyde University) और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-बॉम्बे (Indian Institute of Technology-IIT Bombay) द्वारा विकसित इस तकनीक का इस्तेमाल निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कोविड-19 (Covid -19) के व्यापक प्रसार पर नजर रखने में किया जा सकता है, जो बड़े पैमाने पर लोगों की जांच करने के लिये संघर्ष कर रहे हैं.

हाल ही में 'सेंसर्स एंड एक्चुएटर्स बी: कैमिकल' (Sensors and Actuators B: Chemical) नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अनुसंधान के अनुसार सेंसर का पोर्टेबल उपकरण के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है. इसमें सार्स-कोव-2 वायरस का पता लगाने के लिये मानक पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (Polymerase Chain Reaction-PCR) जांच का उपयोग किया जाता है. इसमें समयबद्ध गुणवत्तापूर्ण पीसीआर जांच के लिए महंगे रसायनों और प्रयोगशाला की जरूरत नहीं होती.

अपशिष्ट जल के साथ सेंसर का परीक्षण

मुंबई में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (sewage treatment plant) से एकत्र किए गए अपशिष्ट जल के साथ सेंसर का परीक्षण किया गया था, जिसमें सार्स-कोव-2 (SARS-CoV-2) राइबोन्यूक्लिक एसिड (Ribonucleic Acid-RNA) था.

सिविल और पर्यावरण इंजीनियरिंग विभाग (Department of Civil and Environmental Engineering) में चांसलर फेलो डॉ एंडी वार्ड ने कहा कि कई निम्न-से-मध्यम आय वाले देशों को सामूहिक परीक्षण के लिए आवश्यक सुविधाओं तक सीमित पहुंच के कारण लोगों के बीच कोविड -19 का पता लगाने में चुनौती का सामना करना पड़ता है. अपशिष्ट जल में वायरस के अंशों के बारे में पता चलने से सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों को यह समझने में मदद मिलेगी कि यह बीमारी कितने बड़े क्षेत्र में कितनी फैली है.

पढ़ेंः कोविड-19 : हांगकांग में 12 साल और इससे अधिक आयु के बच्चों का टीकाकरण होगा शुरू

बहुमुखी है विकसित तरीका- डॉ सिद्धार्थ तल्लूर

आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग (Department of Electrical Engineering) में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ सिद्धार्थ तल्लूर (Associate Professor Dr. Siddharth Tallur) ने कहा कि हमने जो तरीका विकसित किया है वह सिर्फ सार्स-कोव-2 पर लागू नहीं है, इसे किसी भी अन्य वायरस पर लागू किया जा सकता है, इसलिए यह बहुत बहुमुखी है. उन्होंने कहा कि भविष्य में हम सटीकता बढ़ाने के लिए परीक्षण को और अधिक अनुकूल करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे.

(पीटीआई-भाषा)

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