लंदन : ब्रिटेन के शोधकर्ता एक विवादास्पद प्रयोग शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं. इसमें टीके के विकास को गति देने और अध्ययन के लिए स्वस्थ स्वयंसेवक (ऐसे लोग जो खुद की इच्छा से अपने शरीर पर परीक्षण की अनुमति देते हों) को कोरोना वायरस से संक्रमित किया जाएगा. इसे 'चैलेंज अध्ययन' कहा जाता है. यह जोखिम भरा है, लेकिन इसके समर्थकों का कहना है कि यह मानक अनुसंधान की तुलना में तेजी से परिणाम दे सकता है.
33.6 मिलियन पाउंड निवेश करेगी ब्रिटिश सरकार
ब्रिटिश सरकार अध्ययन में 33.6 मिलियन पाउंड (43.4 मिलियन अमरीकी डालर) निवेश करने की तैयारी कर रही है. लंदन इंपीरियल कॉलेज ने मंगलवार को कहा कि अध्ययन 18 से 30 वर्ष की आयु के बीच के स्वस्थ स्वयंसेवकों पर किया जाएगा. व्यापार, ऊर्जा और औद्योगिक रणनीति विभाग के अलावा रॉयल फ्री लंदन एनएचएस फाउंडेशन ट्रस्ट और hIVIVO (एक कंपनी) के साथ साझेदारी में अध्ययन किया जाएगा. इनके पास परीक्षण का अनुभव है.
शोध से वायरस के बारे में समझ में सुधार होगा
अध्ययन के सह अन्वेषक पीटर ओपेंशॉ ने कहा कि स्वयंसेवकों को जानबूझकर संक्रमित करना सही नहीं है, लेकिन इस तरह के अध्ययन से बीमारी के बारे में बहुत जानकारी मिल जाती है. कोविड-19 के मामले में यह और जरूरी है. अध्ययन के पहले चरण में शोधकर्ताओं का लक्ष्य रोग के कारण के लिए आवश्यक सबसे छोटे स्तर के प्रदर्शन को निर्धारित करना होगा. इसके बाद शोधकर्ता एक ही स्वयंसेवक का उपयोग करके अध्ययन करेंगे कि शरीर में विभिन्न तरह के संभावित टीके कैसे काम करते हैं. वैक्सीन टास्कफोर्स चेयर केट बिंघम ने कहा कि शोध से वायरस के बारे में हमारी समझ में सुधार होगा और अनुसंधान के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलेगी. उन्होंने एक बयान में कहा कि बहुत कुछ है, जो हम प्रतिरक्षा के संदर्भ में सीख सकते हैं.