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द्वितीय विश्व युद्ध के बलिदानों की याद दिलाते हैं पूरे रूस में फैले स्मारक

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान किए गए बलिदानों की याद के रूप में कई रूसी शहरों में विशाल प्रतिमाएं और स्मारक बनाए गए हैं. इन स्मारकों ने एक दोहरे उद्देश्य की सेवा की है. उन्होंने न सिर्फ सैनिकों की वीरता का जश्न मनाया बल्कि उन्हें सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार के रूप में भी देखा जाता है.

Monuments recall sacrifices during World War Two
रूसी शहर वोल्गोग्राद में स्थापित यूरोप की सबसे ऊंची प्रतिमा 'द मदरलैंड कॉल्स'
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Published : Jun 22, 2020, 4:41 PM IST

कीव (रूस) : यूरोप की सबसे ऊंची प्रतिमा 'द मदरलैंड कॉल्स' है. इसमें आप तलवार लहराती एक महिला की आकृति देख सकते हैं. यह प्रतिमा 85 मीटर (278 फीट) की है, जो कि रूसी शहर वोल्गोग्राद में स्थित है.

इस विशालकाय प्रतिमा का निर्माण आठ साल में 1967 में पूरा हुआ था. यह प्रतिमा स्टेलिनग्राद (वोल्गोग्राद का पुराना नाम) की लड़ाई को याद करने के लिए बनाए गए स्मारक परिसर के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. उस लड़ाई में लगभग 20 लाख लोग मारे गए थे. उस दौरान सोवियत सैनिकों ने नाजी सेनाओं को खदेड़ दिया था.

प्रतिमा के पैरों के नीचे लगभग 35 हजार अज्ञात सैनिकों के अवशेष पड़े हैं, जिन्होंने शहर की रक्षा की थी. प्रतिमा को आधिकारिक तौर पर तीन साल के बदलाव के बाद गत 9 मई को दोबारा खोल दिया गया है.

रूसी शहर वोल्गोग्राद में स्थापित यूरोप की सबसे ऊंची प्रतिमा 'द मदरलैंड कॉल्स'

मदरलैंड स्मारक यूक्रेन की राजधानी कीव के प्रमुख स्थलों में से एक है. यह हाथों में ढाल और तलवार के साथ एक महिला की विशालकाय प्रतिमा है. यह युद्ध के दौरान लोगों की वीरता का प्रतीक है. इसका अनावरण 1981 में किया गया था. यह नीपर नदी के ऊपर स्थित है. प्रतिमा की कुल ऊंचाई 102 मीटर है, जिसमें 40-मीटर ऊंचा स्तंभ और 62 मीटर की प्रतिमा है.

दरअसल, 'द मदरलैंड कॉल्स' के नवीकरण में कई प्रकार की चुनौतियां आईं. मरम्मत परियोजना के प्रमुख व्लादिमीर एंटोनोव ने बताया कि यह प्रतिमा हवा के बीच कई टन कंक्रीट से तैयार की गई है. हमें इसके चारों ओर लड़की (मचान) लगाने की आवश्यकता थी, जिससे गुणवत्ता की मरम्मत का संचालन करने के लिए कार्यकर्ता और नवीकरणकर्ता प्रतिमा के हर हिस्से तक पहुंच पाएं.

एंटोनोव ने बताया कि कंक्रीट में दरारें ठीक करने के लिए और प्रतिमा के चारों ओर एक मौसमरोधी कोटिंग लगाने के लिए नवीनीकरण की आवश्यकता थी.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ की पीड़ा और वीरता रूस की राष्ट्रीय पहचान का एक बुनियादी हिस्सा बन गई है.

पढ़ें- विश्व धरोहर दिवस : महामारी के खिलाफ थीम 'साझी संस्कृति, साझी धरोहर और साझा दायित्व'

टेक्सास विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष स्कॉट पाल्मर बताते हैं, 'आप जहां भी जाएं, हर जगह महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध का एक स्मारक है.'

बेलारूस की राजधानी मिंस्क के बाहरी इलाके में एक खुला स्मारक परिसर है, जिसे माउंड ऑफ ग्लोरी कहा जाता है. यह 1969 में बेलारूस की मुक्ति की 25वीं वर्षगांठ और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने जीवन का बलिदान देने वाले सैनिकों को सम्मानित करने के लिए बनाया गया था.

स्मारक के लिए मिट्टी सोवियत संघ के आसपास के नौ शहरों से और साथ ही युद्ध के मैदानों से लाई गई थी. बेलारूस युद्ध के दौरान जबर्दस्त रूप से पीड़ित हुआ. विभिन्न अनुमानों से इसकी लगभग एक तिहाई आबादी का खात्मा हो गया था. बेलारूस पर नाजी का कब्जा 22 जून, 1941 से अगस्त 1944 तक चला. पाल्मर कहते है, 'तब इन स्मारकों ने लोगों को सहारा दिया.'

पाल्मर ने बताया कि उस वक्त 2.7 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. यह एक भयानक आपदा थी. विश्व इतिहास में नहीं तो यह निश्चित रूप से आधुनिक इतिहास में अभूतपूर्व था. इसका नुकसान सोवियत संध के लोगों को भुगतना पड़ा था.

उन्होंने कहा, 'आपको इसका अर्थ निकालने के लिए कई तरीके खोजने होंगे. स्मारक का निर्माण महान देशभक्ति युद्ध के इस पंथ के जन्म एक प्रयास था. हां, प्रचार कार्य करने और रैली निकालने के लिए (कम्युनिस्ट पार्टी) यह एक बड़ी जरूरत थी.'

पढ़ें- यूरोपियन कैपिटल ऑफ कल्चर समारोह में पोर्ट सिटी को टाइटल अवार्ड

मास्को की क्रेमलिन वॉल पर द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे शक्तिशाली और प्रतीकात्मक स्मारकों में एक अज्ञात सैनिक का मकबरा है. 1941 में शुरू हुई मॉस्को की लड़ाई की 25वीं वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए अज्ञात सैनिक के अवशेषों को 1966 में एक सामूहिक कब्र से स्थानांतरित कर दिया गया था. कब्र के सामने एक अनन्त लौ और एक शिलालेख है, जिसमें 'आपका नाम अज्ञात है, लेकिन आपके कर्म अमर हैं' लिखा हुआ है. यहां इस स्थल पर गार्ड सदैव मौजूद रहते हैं.

इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि इन स्मारकों ने एक दोहरे उद्देश्य की सेवा की. उन्होंने सैनिकों की वीरता का जश्न मनाया, लेकिन साथ ही उन्हें सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार के रूप में इस्तेमाल किया गया. यूक्रेन के इतिहास संस्थान का एक शोध सहयोगी टेटियाना टेस्टुशेंको का कहना है कि इस तरह के स्मारक सोवियत साम्राज्य के अधिकार की याद दिलाते हैं.

कीव (रूस) : यूरोप की सबसे ऊंची प्रतिमा 'द मदरलैंड कॉल्स' है. इसमें आप तलवार लहराती एक महिला की आकृति देख सकते हैं. यह प्रतिमा 85 मीटर (278 फीट) की है, जो कि रूसी शहर वोल्गोग्राद में स्थित है.

इस विशालकाय प्रतिमा का निर्माण आठ साल में 1967 में पूरा हुआ था. यह प्रतिमा स्टेलिनग्राद (वोल्गोग्राद का पुराना नाम) की लड़ाई को याद करने के लिए बनाए गए स्मारक परिसर के आकर्षण का मुख्य केंद्र है. उस लड़ाई में लगभग 20 लाख लोग मारे गए थे. उस दौरान सोवियत सैनिकों ने नाजी सेनाओं को खदेड़ दिया था.

प्रतिमा के पैरों के नीचे लगभग 35 हजार अज्ञात सैनिकों के अवशेष पड़े हैं, जिन्होंने शहर की रक्षा की थी. प्रतिमा को आधिकारिक तौर पर तीन साल के बदलाव के बाद गत 9 मई को दोबारा खोल दिया गया है.

रूसी शहर वोल्गोग्राद में स्थापित यूरोप की सबसे ऊंची प्रतिमा 'द मदरलैंड कॉल्स'

मदरलैंड स्मारक यूक्रेन की राजधानी कीव के प्रमुख स्थलों में से एक है. यह हाथों में ढाल और तलवार के साथ एक महिला की विशालकाय प्रतिमा है. यह युद्ध के दौरान लोगों की वीरता का प्रतीक है. इसका अनावरण 1981 में किया गया था. यह नीपर नदी के ऊपर स्थित है. प्रतिमा की कुल ऊंचाई 102 मीटर है, जिसमें 40-मीटर ऊंचा स्तंभ और 62 मीटर की प्रतिमा है.

दरअसल, 'द मदरलैंड कॉल्स' के नवीकरण में कई प्रकार की चुनौतियां आईं. मरम्मत परियोजना के प्रमुख व्लादिमीर एंटोनोव ने बताया कि यह प्रतिमा हवा के बीच कई टन कंक्रीट से तैयार की गई है. हमें इसके चारों ओर लड़की (मचान) लगाने की आवश्यकता थी, जिससे गुणवत्ता की मरम्मत का संचालन करने के लिए कार्यकर्ता और नवीकरणकर्ता प्रतिमा के हर हिस्से तक पहुंच पाएं.

एंटोनोव ने बताया कि कंक्रीट में दरारें ठीक करने के लिए और प्रतिमा के चारों ओर एक मौसमरोधी कोटिंग लगाने के लिए नवीनीकरण की आवश्यकता थी.

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ की पीड़ा और वीरता रूस की राष्ट्रीय पहचान का एक बुनियादी हिस्सा बन गई है.

पढ़ें- विश्व धरोहर दिवस : महामारी के खिलाफ थीम 'साझी संस्कृति, साझी धरोहर और साझा दायित्व'

टेक्सास विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष स्कॉट पाल्मर बताते हैं, 'आप जहां भी जाएं, हर जगह महान देशभक्तिपूर्ण युद्ध का एक स्मारक है.'

बेलारूस की राजधानी मिंस्क के बाहरी इलाके में एक खुला स्मारक परिसर है, जिसे माउंड ऑफ ग्लोरी कहा जाता है. यह 1969 में बेलारूस की मुक्ति की 25वीं वर्षगांठ और द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अपने जीवन का बलिदान देने वाले सैनिकों को सम्मानित करने के लिए बनाया गया था.

स्मारक के लिए मिट्टी सोवियत संघ के आसपास के नौ शहरों से और साथ ही युद्ध के मैदानों से लाई गई थी. बेलारूस युद्ध के दौरान जबर्दस्त रूप से पीड़ित हुआ. विभिन्न अनुमानों से इसकी लगभग एक तिहाई आबादी का खात्मा हो गया था. बेलारूस पर नाजी का कब्जा 22 जून, 1941 से अगस्त 1944 तक चला. पाल्मर कहते है, 'तब इन स्मारकों ने लोगों को सहारा दिया.'

पाल्मर ने बताया कि उस वक्त 2.7 करोड़ लोगों ने अपनी जान गंवाई थी. यह एक भयानक आपदा थी. विश्व इतिहास में नहीं तो यह निश्चित रूप से आधुनिक इतिहास में अभूतपूर्व था. इसका नुकसान सोवियत संध के लोगों को भुगतना पड़ा था.

उन्होंने कहा, 'आपको इसका अर्थ निकालने के लिए कई तरीके खोजने होंगे. स्मारक का निर्माण महान देशभक्ति युद्ध के इस पंथ के जन्म एक प्रयास था. हां, प्रचार कार्य करने और रैली निकालने के लिए (कम्युनिस्ट पार्टी) यह एक बड़ी जरूरत थी.'

पढ़ें- यूरोपियन कैपिटल ऑफ कल्चर समारोह में पोर्ट सिटी को टाइटल अवार्ड

मास्को की क्रेमलिन वॉल पर द्वितीय विश्व युद्ध के सबसे शक्तिशाली और प्रतीकात्मक स्मारकों में एक अज्ञात सैनिक का मकबरा है. 1941 में शुरू हुई मॉस्को की लड़ाई की 25वीं वर्षगांठ को चिह्नित करने के लिए अज्ञात सैनिक के अवशेषों को 1966 में एक सामूहिक कब्र से स्थानांतरित कर दिया गया था. कब्र के सामने एक अनन्त लौ और एक शिलालेख है, जिसमें 'आपका नाम अज्ञात है, लेकिन आपके कर्म अमर हैं' लिखा हुआ है. यहां इस स्थल पर गार्ड सदैव मौजूद रहते हैं.

इतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि इन स्मारकों ने एक दोहरे उद्देश्य की सेवा की. उन्होंने सैनिकों की वीरता का जश्न मनाया, लेकिन साथ ही उन्हें सोवियत कम्युनिस्ट पार्टी के प्रचार के रूप में इस्तेमाल किया गया. यूक्रेन के इतिहास संस्थान का एक शोध सहयोगी टेटियाना टेस्टुशेंको का कहना है कि इस तरह के स्मारक सोवियत साम्राज्य के अधिकार की याद दिलाते हैं.

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