ग्लासगो : ग्लासगो में जलवायु पर चर्चा के लिए एकत्रित हुए करीब 200 देशों ने ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार उत्सर्जन में कमी लाने के लक्ष्य को हासिल करने के इरादे से शनिवार को एक समझौते पर सहमति जताई. हालांकि, कुछ देशों का मानना है कि आखिरी समय में समझौते की भाषा में कुछ बदलावों से कोयले को लेकर प्रतिबद्धता पर पानी फिर गया.
छोटे द्वीपीय देशों समेत कई देशों ने कहा है कि वे कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के बजाय इसे चरणबद्ध तरीके से कम करने के भारत के सुझाव से बेहद निराश हैं क्योंकि कोयला आधारित संयंत्र ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का सबसे बड़ा स्रोत हैं.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने एक बयान में कहा, 'पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील धरती के लिए कदम उठाना बेहद जरूरी है. हम जलवायु आपदा के कगार पर खड़े हैं.'
ग्लासगो में दो सप्ताह तक संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में कई देशों ने एक-एक कर अपनी आपत्ति जताई कि कैसे यह समझौता जलवायु संकट से निपटने में पर्याप्त नहीं है. लेकिन, कई देशों ने कहा कि कुछ नहीं करने से बेहतर है कि कुछ किया जाए और इस दिशा में आगे बढ़ते रहना बेहतर होगा.
गुतारेस ने कहा, 'हमने इस सम्मेलन में लक्ष्यों को हासिल नहीं किया, क्योंकि प्रगति के मार्ग में कुछ बाधाएं हैं.'
स्विट्जरलैंड की पर्यावरण मंत्री सिमोनेटा सोमारुगा ने कहा कि समझौते की भाषा में बदलाव से वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 डिग्री फारेनहाइट) तक सीमित करना कठिन होगा.
जलवायु मामलों पर अमेरिका के दूत जॉन केरी ने कहा कि सरकारों के पास कोयला के संबंध में भारत के बयान को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. उन्होंने कहा, अगर हमने ऐसा नहीं किया होता तो हमारे बीच कोई समझौता नहीं होता.
केरी ने बाद में संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'हम वास्तव में जलवायु अराजकता से बचने और स्वच्छ हवा, सुरक्षित पानी और स्वस्थ ग्रह हासिल करने की दिशा में पहले से कहीं ज्यादा करीब हैं.'
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कई अन्य देशों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अंतिम समझौते को कमजोर करने वाली मांगों को लेकर भारत की आलोचना की. ऑस्ट्रेलिया के जलवायु वैज्ञानिक बिल हरे ने कहा, भारत का अंतिम समय में समझौते की.
(पीटीआई-भाषा)