नई दिल्ली/इंग्लैंड: ब्रिटेन और भारत का मौजूदा वैज्ञानिक अनुसंधान सहयोग और गहरा होता जा रहा है. दोनों देश एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) से निपटने के लिए आठ मिलियन पाउंड की पांच नई परियोजनाओं को शुरू करने वाले हैं जिससे एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया और जीन के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक स्तर पर महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है.
ब्रिटिश उच्चायोग के एक बयान के अनुसार दक्षिण एशिया और राष्ट्रमंडल के राज्य मंत्री मंत्री लॉर्ड तारिक अहमद ने अनुदान की घोषणा की.
भारत फार्मास्युटिकल उद्योग में विश्व स्तर पर एंटीमाइक्रोबायल्स का प्रमुख उत्पादक है. इस अनुसंधान परियोजना का उद्देश्य रोगाणुरोधी विनिर्माण से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थो एएमआर को कैसे बढ़ावा देते हैं इसकी बेहतर समझ को विकसित करना है.
इस साल सितंबर में पांच परियोजनाओं पर काम करने की योजना है. यूके रिसर्च एंड इनोवेशन फंड से ब्रिटेन इस इंटरनेशनल रिसर्च के लिए चार मिलियन पाउंड का योगदान दे रहा है और भारत अपने संसाधनों के साथ इसका मिलान कर रहा है. बयान में कहा गया है कि अनुसंधान को पूरा करने के लिए कुल आठ मिलियन पाउंड खर्च किए जाएंगे.
अहमद ने कहा कि यूके ने पहले ही कोविड-19 के लिए वैक्सीन निर्माण के लिए भारत के सीरम इंस्टीट्यूट के साथ समझौता किया हुआ है. यदि ये क्लिनिकल परीक्षण सफल होते हैं, तो विकासशील देशों में एक अरब लोगों को वैक्सीन वितरित करने की योजना है. लेकिन और भी बहुत कुछ है जो हम एक साथ कर सकते हैं वैश्विक स्वास्थ्य मुद्दों से निपटने के लिए. हमारे संपन्न अनुसंधान से यूके और भारत के अलावा अन्य लोगों को भी बहुत लाभ होगा.
भारत में उच्चायुक्त सर फिलिप बार्टन ने कहा कि यूके भारत का दूसरा सबसे बड़ा अनुसंधान क्षेत्र में साझेदार हैं, जिसके साथ संयुक्त अनुसंधान अगले वर्ष तक 400 मिलियन पाउंड होने की उम्मीद है. यह विशाल निवेश हमें कोरोना जैसे वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों पर एक साथ मिलकर काम करने में सक्षम बनाता है.
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उन्होंने कहा कि आज की घोषणा हमारे उत्कृष्ट अनुसंधान संबंधों और एंटी-माइक्रोबियल प्रतिरोध के खिलाफ महत्वपूर्ण लड़ाई को मजबूत करेगा.