बीजिंग : चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे तिब्बती शहर निंगची का दौरा किया है. जिनपिंग ल्हासा में दलाई लामा के आधिकारिक निवास पोटाला पैलेस के पास दिखाई दिए. एक दशक में तिब्बत की राजधानी की यह उनकी पहली यात्रा थी. निंगची और ल्हासा की अचानक तीन दिवसीय यात्रा को भारत को चिंता के साथ देखना चाहिए.
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बुधवार को निंगची मेनलिंग हवाई अड्डे पर पहुंचे थे जहां स्थानीय लोगों सहित विभिन्न जातीय समूहों व अधिकारियों ने उनका गर्मजोशी से स्वागत किया था.
इसके बाद ब्रह्मपुत्र नदी घाटी में पारिस्थितिक संरक्षण का निरीक्षण करने के लिए वह 'न्यांग रिवर ब्रिज' गए, जिसे तिब्बती भाषा में 'यारलुंग ज़ंगबो' कहा जाता है.
इसके बाद उन्होंने न्यांग नदी पुल का दौरा किया. ब्रह्मपुत्र नदी जिसे तिब्बती भाषा में यारलुंग जंगबो कहा जाता है, के बेसिन में पारिस्थितिक संरक्षण का निरीक्षण किया. दरअसल निंगची तिब्बत में एक प्रान्तीय स्तर का शहर है जो अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटा हुआ है. चीन, दक्षिण तिब्बत के हिस्से के रूप में अरुणाचल प्रदेश पर दावा करता है, जिसे भारत ने दृढ़ता से खारिज कर दिया है.
भारत-चीन सीमा विवाद में 3,488 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) शामिल है. चीनी नेता समय-समय पर तिब्बत जाते हैं. लेकिन शी, जो चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और शक्तिशाली केंद्रीय सेना के भी प्रमुख हैं, का तिब्तत दौरा काफी महत्वपूर्ण घटनाक्रम है. शी ऐसे समय पर तिब्बत का दौरा करने पहुंचे जब भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में पिछले साल मई से गतिरोध जारी है.
ऐसे में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के कई हिस्सों के साथ भारतीय सेना और चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के बीच चल रहे तीव्र सैन्य गतिरोध के बीच निंगची के सीमा प्रान्त की यात्रा, चीन की अड़ियल और युद्ध की स्थिति का संकेत है. निंगची एक महत्वपूर्ण सैन्य स्टेशन के रूप में विकसित हुआ है, चीन निंगची के दक्षिण में एक क्षेत्र के लिए क्षेत्रीय आधिपत्य का दावा करता है जिसमें अधिकांश अरुणाचल प्रदेश शामिल है जिसे चीन अपने 'दक्षिणी तिब्बत' के हिस्से के रूप में संदर्भित करता है
चीन के कई नेता समय-समय पर तिब्बत जाते हैं, लेकिन चीन की सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी और शक्तिशाली केंद्रीय सैन्य आयोग (चीनी सेना का समग्र आलाकमान) के प्रमुख शी हाल के वर्षों में तिब्बत के सीमावर्ती शहर का दौरा करने वाले संभवत: पहले शीर्ष नेता हैं.
चीन के सोशल मीडिया पर जारी की एक वीडियो में शी न्यिंगची के लोगों के साथ नजर आ रहे हैं. निंगची को तिब्बत का स्विटजरलैंड कहा जाता है.
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हांगकांग के 'साउथ चाइन मॉर्निंग पोस्ट' समाचार पत्र ने शी के हवाले से कहा, ' भविष्य में, तिब्बत के सभी जातीय समूह के लोग एक सुखी जीवन जीएंगे, मैं उतना ही आश्वस्त हूं, जितना की आप.'
शी के 2013 में राष्ट्रपति पद का कार्यभार संभालने के बाद यह उनका पहला तिब्बत दौरा है. वह बतौर उपराष्ट्रपति 2011 में हिमालय क्षेत्र आए थे.
निंगची, जून में तब चर्चा में आया था, जब चीन ने तिब्बत में अपनी पहली बुलेट ट्रेन का पूरी तरह से संचालन शुरू किया था. यह ट्रेन तिब्बत की प्रांतीय राजधानी ल्हासा को निंगची से जोड़ती है.
चीनी सेना के समग्र आलाकमान, हाल के वर्षों में तिब्बत के सीमावर्ती शहर का दौरा करने वाले शायद वे पहले शीर्ष नेता हैं. निंगची जून में उस समय चर्चा में था जब चीन ने तिब्बत में पहली बुलेट ट्रेन का संचालन किया था. यह ट्रेन तिब्बत की प्रांतीय राजधानी ल्हासा को निंगची से जोड़ती है. इसकी डिजाइन गति 160 किमी प्रति घंटा है और यह 435.5 किमी की दूरी तय करने वाली सिंगल-लाइन विद्युतीकृत रेलवे पर चलती है.
10 वर्ष पहले भी किया था दौरा
इससे पहले जिनपिंग करीब 10 वर्ष पहले 17 प्वाइंट एग्रीमेंट समझौते की 60वीं वर्षगांठ के दौरान यहां आए थे. उस समय वे पहले ल्हासा गए लेकिन इस बार वे पहले निंगची के लोगों से मिले हैं. चीनी राष्ट्रपति शी ने ल्हासा में एक सभा को संबोधित किया. सूत्रों की मानें तो जिनपिंग ने ल्हासा की मोंटेसरी का भी दौरा किया है.
भारत-चीन और तिब्बत का कनेक्शन
भारत-चीन सीमा विवाद का दायरा लद्दाख, डोकलाम, नाथूला से होते हुए अरुणाचल प्रदेश की तवांग घाटी तक जाता है. अरुणाचल प्रदेश के तवांग इलाके पर चीन की निगाहें हमेशा से रही हैं. वे तवांग को तिब्बत का हिस्सा मानते हैं और कहते हैं कि तवांग और तिब्बत में सांस्कृतिक समानता है. तवांग बौद्धों का प्रमुख धर्मस्थल भी है.
तिब्बत पर भारत का रुख
अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञों का मानना है कि तिब्बत के मामले में भारत की नीति बेहद लचर रही है. दरअसल, साल 1914 में शिमला समझौते के तहत मैकमोहन रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा माना गया था. बाद में 1954 में तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू ने एक समझौते के तहत तिब्बत को चीन का हिस्सा मान लिया.
इसके बाद मार्च 1962 में नेहरू का चीन के साथ तिब्बत पर करार खत्म हो गया और यह यथास्थिति 2003 तक बनी रही. फिर 2003 में जब वाजपेयी चीन के दौरे पर गए तो उन्होंने तिब्बत पर समझौता कर लिया. स्पष्ट है कि भारत के इसी लचर रवैये की वजह से चीन तिब्बत को लेकर भारत पर आंखें तरेरता रहता है.