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जानिए क्या है ईरान-अमेरिका में 52 नंबर का कनेक्शन

ट्रंप ने ईरान को चेतावनी देते हुए उसके 52 महत्वपूर्ण स्थलों को निशाना बनाने की चेतावनी दी है. दरअसल, ट्रंप ने जिस संख्या का जिक्र किया है, वह बेहद अहम है और उसके अपने ऐतिहासिक मायने हैं.

ट्रंप  और खुमेनी
ट्रंप और खुमेनी
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Published : Jan 5, 2020, 12:06 PM IST

Updated : Jan 7, 2020, 7:26 AM IST

नई दिल्ली : हाल ही में अमेरिका द्वारा इराक में ईरानी खुफिया सेवा के प्रमुख को निशाना बनाने के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ गया. अमेरिकी हवाई हमले में ईरानी खुफिया सेवा के शीर्ष अधिकारी कासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी, जिसके चलते ईरान ने अमेरिका से बदला लेने की धमकी दी है. इस धमकी के बाद अपेक्षा के अनुरूप अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है...

जी हां, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान की धमकी का जवाब दिया है और कहा है कि उसके निशाने पर ईरान के बेहद अहम 52 स्थान हैं. यदि ईरान ने कोई गुस्ताखी की तो वह बहुत जल्द घातक जवाबी कार्रवाई करेगा. दरअसल ट्रंप ने चेतावनी देते हुए जिस संख्या का जिक्र किया है, वह बेहद अहम है और इसके अपने ऐतिहासिक मायने हैं. चलिए आपको बताते हैं कि ट्रंप ने जिस 52 संख्या का जिक्र किया है वह क्या है? इस संख्या का अमेरिका और ईरान से क्या संबंध है?

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ट्रंप ने जिस संख्या का जिक्र किया है, उसका संबंध 4 नवंबर 1979 के ईरान बंधक संकट से है, जो उस समय अमेरिका और ईरान के बीच एक कूटनीतिक गतिरोध बना था.

दरअसल, ईरान के लोग तत्कालीन हुकमरान रजा शाह पहलवी की सरकार से तंग आ चुके थे, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन का समर्थन हासिल था. तभी सरकार से आक्रोशित कुछ लोग कट्टर इस्लामी धर्मगुरु आयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी के आंदोलन के प्रभाव में आए. उन्होंने ईरान के लोगों के हित की बात की. उन्होंने वादा किया कि पुराने निजाम को उखाड़ फेकेंगे और ईरान के लोगों को पूरा अख्तियार दिलाएंगे.

जुलाई 1979 में क्रांतिकारियों ने शाह को अपनी सरकार गिराने के लिए मजबूर कर दिया. रजा शाह पहलवी डरकर मिस्र भाग गया और ईरान में खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक सरकार का गठन हो गया.

इस बीच अमेरिका ने शाह को अपने देश में इलाज की इजाजत दे दी, जो कैंसर से जूझ रहा था. ईरान के लोगों को लगा की अमेरिका शाह को शरण दे रहा है.

4 नवंबर 1979 को शाह न्यूयॉर्क पहुंच गए. इसके बाद आयातुल्लाह समर्थक आंदोलनकारी छात्र तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास में घुस गए और लोगों को बंधक बना लिया. बंधकों में ज्यादातर राजनयिक और दूतावास के कर्मचारी शामिल थे. हालांकि आंदोलनकारी छात्रों ने कुछ लोगों को तुरंत रिहा कर दिया था, लेकिन 52 लोगों को 444 दिन तक बंधक बनाए रखा.

आंदोलनकारियों ने अमेरिका से मांग की कि वह शाह पहलवी को ईरान के सुपुर्द करे, ताकि आयातुल्लाह खुमैनी उनके खिलाफ मुकद्दमा चला सकें. इस बीच अमेरिका ने इस मामले को कूटनीतिक तरीके से हल करने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी न मिल सकी.

पढ़ें- डोनाल्ड ट्रंप की ईरान को चेतावनी, न‍िशाने पर हैं देश के 52 ठिकाने

इसके बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 16 अप्रैल, 1980 को बंधकों को छुड़ाने के लिए अमेरिकी सेना को 'ऑपरेशन ईगल क्लॉ' चलानी की अनुमती दी, लेकिन यह मिशन भी फेल हो गया था. हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते ईरान ने बाकी बचे 52 बंधकों को रिहा कर दिया. इन्हीं 52 बंधकों की टीस अमेरिका को अब भी सताती है. यही कारण है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के 52 ठिकानों को चिह्नित कर निशाना बनाने की धमकी दी है.

नई दिल्ली : हाल ही में अमेरिका द्वारा इराक में ईरानी खुफिया सेवा के प्रमुख को निशाना बनाने के बाद दोनों देशों में तनाव बढ़ गया. अमेरिकी हवाई हमले में ईरानी खुफिया सेवा के शीर्ष अधिकारी कासिम सुलेमानी की मौत हो गई थी, जिसके चलते ईरान ने अमेरिका से बदला लेने की धमकी दी है. इस धमकी के बाद अपेक्षा के अनुरूप अमेरिका ने प्रतिक्रिया दी है...

जी हां, अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान की धमकी का जवाब दिया है और कहा है कि उसके निशाने पर ईरान के बेहद अहम 52 स्थान हैं. यदि ईरान ने कोई गुस्ताखी की तो वह बहुत जल्द घातक जवाबी कार्रवाई करेगा. दरअसल ट्रंप ने चेतावनी देते हुए जिस संख्या का जिक्र किया है, वह बेहद अहम है और इसके अपने ऐतिहासिक मायने हैं. चलिए आपको बताते हैं कि ट्रंप ने जिस 52 संख्या का जिक्र किया है वह क्या है? इस संख्या का अमेरिका और ईरान से क्या संबंध है?

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ट्रंप ने जिस संख्या का जिक्र किया है, उसका संबंध 4 नवंबर 1979 के ईरान बंधक संकट से है, जो उस समय अमेरिका और ईरान के बीच एक कूटनीतिक गतिरोध बना था.

दरअसल, ईरान के लोग तत्कालीन हुकमरान रजा शाह पहलवी की सरकार से तंग आ चुके थे, जिसे अमेरिका और ब्रिटेन का समर्थन हासिल था. तभी सरकार से आक्रोशित कुछ लोग कट्टर इस्लामी धर्मगुरु आयातुल्लाह रूहुल्लाह खुमैनी के आंदोलन के प्रभाव में आए. उन्होंने ईरान के लोगों के हित की बात की. उन्होंने वादा किया कि पुराने निजाम को उखाड़ फेकेंगे और ईरान के लोगों को पूरा अख्तियार दिलाएंगे.

जुलाई 1979 में क्रांतिकारियों ने शाह को अपनी सरकार गिराने के लिए मजबूर कर दिया. रजा शाह पहलवी डरकर मिस्र भाग गया और ईरान में खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामिक सरकार का गठन हो गया.

इस बीच अमेरिका ने शाह को अपने देश में इलाज की इजाजत दे दी, जो कैंसर से जूझ रहा था. ईरान के लोगों को लगा की अमेरिका शाह को शरण दे रहा है.

4 नवंबर 1979 को शाह न्यूयॉर्क पहुंच गए. इसके बाद आयातुल्लाह समर्थक आंदोलनकारी छात्र तेहरान स्थित अमेरिकी दूतावास में घुस गए और लोगों को बंधक बना लिया. बंधकों में ज्यादातर राजनयिक और दूतावास के कर्मचारी शामिल थे. हालांकि आंदोलनकारी छात्रों ने कुछ लोगों को तुरंत रिहा कर दिया था, लेकिन 52 लोगों को 444 दिन तक बंधक बनाए रखा.

आंदोलनकारियों ने अमेरिका से मांग की कि वह शाह पहलवी को ईरान के सुपुर्द करे, ताकि आयातुल्लाह खुमैनी उनके खिलाफ मुकद्दमा चला सकें. इस बीच अमेरिका ने इस मामले को कूटनीतिक तरीके से हल करने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी न मिल सकी.

पढ़ें- डोनाल्ड ट्रंप की ईरान को चेतावनी, न‍िशाने पर हैं देश के 52 ठिकाने

इसके बाद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने 16 अप्रैल, 1980 को बंधकों को छुड़ाने के लिए अमेरिकी सेना को 'ऑपरेशन ईगल क्लॉ' चलानी की अनुमती दी, लेकिन यह मिशन भी फेल हो गया था. हालांकि अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते ईरान ने बाकी बचे 52 बंधकों को रिहा कर दिया. इन्हीं 52 बंधकों की टीस अमेरिका को अब भी सताती है. यही कारण है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान के 52 ठिकानों को चिह्नित कर निशाना बनाने की धमकी दी है.

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Last Updated : Jan 7, 2020, 7:26 AM IST
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