ETV Bharat / international

अमेरिका कश्मीर मामले में संतुलित रुख रखना चाहता है: रिपोर्ट

'कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस' (सीआरएस) ने एक रिपोर्ट जारी किया है. रिपोर्ट में अमेरिका का रुख बताया है. रुख यह है कि कश्मीर-मामला भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए ही कश्मीरी लोगों की भावनाओं पर गौर करते हुए सुलझाया जाना चाहिए. 'कश्मीर: बैकग्राउंड, रिसेंट डेवलपमेंट्स एंड यूएस पॉलिसी' की 16 अगस्त की रिपोर्ट में है. पढ़ें क्या है रिपोर्ट में...

अमेरिका कश्मीर मामले में दक्षिण एशिया में संतुलित रुख रखना चाहता है: रिपोर्ट (सांकेतिक चित्र)
author img

By

Published : Aug 23, 2019, 4:23 AM IST

Updated : Sep 27, 2019, 10:58 PM IST

वाशिंगटन: भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने पर अमेरिका की रिसर्च एजेंसी ने रिपोर्ट जारी की है. रिसर्च एजेंसी 'कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस' ने रिपोर्ट में कहा है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना तथा राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद अमेरिका दक्षिण एशिया में संतुलित रुख चाहता है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कश्मीर संबंधी इस कदम के समय में अमेरिकी 'राष्ट्रपति की मध्यस्थता' संबंधी पेशकश का भी योगदान रहा होगा.

दरअसल 'कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस' (सीआरएस) की हालिया रिपोर्ट में बताया है कश्मीर को लेकर लंबे समय से अमेरिका का रुख यही रहा है कि मामला भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए कश्मीरी लोगों की भावनाओं पर गौर करते हुए सुलझाया जाना चाहिए.

15 से अधिक पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा है, 'अमेरिका मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए और अमेरिका-भारत की व्यापक साझेदारी को देखते हुए संतुलित रुख रखना चाहता है. वहीं वह पाकिस्तान के साथ भी सहयोगात्मक संबंध बरकरार रखना चाहता है.'

इस रिपोर्ट में ट्रंप प्रशासन ने संबंधित क्षेत्र में मानवाधिकारों की रक्षा और शांति का आह्वान किया है. कश्मीर को लेकर 'मध्यस्थता' के लिए ट्रंप के बयान ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने संबंधी भारत सरकार के फैसले के समय में योगदान दिया होगा.

हालांकि सीआरएस की रिपोर्ट को अमेरिकी कांग्रेस का आधिकारिक रुख नहीं माना जाता है. कश्मीर को लेकर सीआरएस की रिपोर्ट 17 साल के बाद आई है. यह रिपोर्ट कश्मीर मामले के हालिया घटनाक्रम में अमेरिकी सांसदों की दिलचस्पी दिखाती है.

'कश्मीर: बैकग्राउंड, रिसेंट डेवलपमेंट्स एंड यूएस पॉलिसी' की 16 अगस्त की रिपोर्ट में है.

इसमें कहा गया है कि कश्मीर में बढ़ा अलगाववादी आतंकवाद अफगानिस्तान की शांति वार्ता को प्रभावित कर सकता है, जिसमें पाकिस्तान मदद कर रहा है.

ज्ञात हो की रिपोर्ट के अनुसार, 'नई दिल्ली की प्रक्रिया भी संवैधानिक सवाल उठाती है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में कड़े सैन्य सुरक्षा कदम उठाए गए हैं, जो मानवाधिकार आधार पर भारत की तीव्र आलोचना को जन्म देते हैं.'

गौरतलब हो रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में संभावित अशांति और हिंसा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंताएं हैं. इसका असर क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि ट्रंप सरकार ने अपने सार्वजनिक बयान को शांति और स्थिरता बरकरार रखने तथा मानवाधिकारों की रक्षा करने की टिप्पणी तक सीमित कर लिया है.

पढ़ें- जी-7 सम्मेलन में मोदी से कश्मीर मुद्दे पर बातचीत करेंगे ट्रंप

इसमें यह भी कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से सभी पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की गई. 'अनौपचारिक' तौर पर हुई सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद संयुक्त राष्ट्र ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया.
सीआरएस ने कहा कि कश्मीर में 2019 में घटनाक्रम पर अमेरिकी संसद के लिए पांच संभावित सवाल खड़े किए हैं. जैसे-क्या भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर के दर्जे में बदलाव से क्षेत्रीय स्थिरता पर नकारात्मक असर पड़ेगा? और अगर ऐसा है तो इसमें अमेरिका की क्या भूमिका होगी और संभावित अस्थिरता के समाधान के लिए अमेरिका की सर्वश्रेष्ठ नीतियां क्या होंगीं?'

इसके अलावा यह भी सवाल किया गया है कि 'भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव दूर करने या दोनों के बीच द्विपक्षीय वार्ता को बहाल करने में अमेरिका किस तरह राजनयिक या अन्य भूमिका निभाएगा?' रिपोर्ट में यह भी पूछा गया है कि 'कश्मीर में अस्थिरता किस हद तक अफगानिस्तान के हालात को प्रभावित कर सकती है? क्या इस्लामाबाद अफगानिस्तान को लेकर वाशिंगटन के साथ सहयोग कम कर देगा?'
सीआरएस ने यह भी सवाल उठाया है कि 'भारत में लोकतांत्रिक/संवैधानिक नियम और बहुलतावादी परंपराएं देश में मौजूदा राजनीतिक माहौल में किस हद तक खतरे में है?'

सीआरएस की रिपोर्ट में पूछा गया है कि 'क्या भारत में मानवाधिकार उल्लंघन और धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा बढ़ता जा रहा है? क्या अमेरिकी सरकार इस चिंताओं को निपटने के लिए कोई कदम उठाएगी?'

बता दें, इससे पहले कश्मीर को लेकर सीआरएस की रिपोर्ट 2002 में आई थी.

वाशिंगटन: भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को समाप्त करने पर अमेरिका की रिसर्च एजेंसी ने रिपोर्ट जारी की है. रिसर्च एजेंसी 'कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस' ने रिपोर्ट में कहा है कि जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करना तथा राज्य को दो केन्द्रशासित प्रदेशों में बांटे जाने के बाद अमेरिका दक्षिण एशिया में संतुलित रुख चाहता है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कश्मीर संबंधी इस कदम के समय में अमेरिकी 'राष्ट्रपति की मध्यस्थता' संबंधी पेशकश का भी योगदान रहा होगा.

दरअसल 'कांग्रेसनल रिसर्च सर्विस' (सीआरएस) की हालिया रिपोर्ट में बताया है कश्मीर को लेकर लंबे समय से अमेरिका का रुख यही रहा है कि मामला भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत के जरिए कश्मीरी लोगों की भावनाओं पर गौर करते हुए सुलझाया जाना चाहिए.

15 से अधिक पन्नों की इस रिपोर्ट में कहा है, 'अमेरिका मानवाधिकारों की रक्षा करते हुए और अमेरिका-भारत की व्यापक साझेदारी को देखते हुए संतुलित रुख रखना चाहता है. वहीं वह पाकिस्तान के साथ भी सहयोगात्मक संबंध बरकरार रखना चाहता है.'

इस रिपोर्ट में ट्रंप प्रशासन ने संबंधित क्षेत्र में मानवाधिकारों की रक्षा और शांति का आह्वान किया है. कश्मीर को लेकर 'मध्यस्थता' के लिए ट्रंप के बयान ने जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त करने संबंधी भारत सरकार के फैसले के समय में योगदान दिया होगा.

हालांकि सीआरएस की रिपोर्ट को अमेरिकी कांग्रेस का आधिकारिक रुख नहीं माना जाता है. कश्मीर को लेकर सीआरएस की रिपोर्ट 17 साल के बाद आई है. यह रिपोर्ट कश्मीर मामले के हालिया घटनाक्रम में अमेरिकी सांसदों की दिलचस्पी दिखाती है.

'कश्मीर: बैकग्राउंड, रिसेंट डेवलपमेंट्स एंड यूएस पॉलिसी' की 16 अगस्त की रिपोर्ट में है.

इसमें कहा गया है कि कश्मीर में बढ़ा अलगाववादी आतंकवाद अफगानिस्तान की शांति वार्ता को प्रभावित कर सकता है, जिसमें पाकिस्तान मदद कर रहा है.

ज्ञात हो की रिपोर्ट के अनुसार, 'नई दिल्ली की प्रक्रिया भी संवैधानिक सवाल उठाती है क्योंकि जम्मू-कश्मीर में कड़े सैन्य सुरक्षा कदम उठाए गए हैं, जो मानवाधिकार आधार पर भारत की तीव्र आलोचना को जन्म देते हैं.'

गौरतलब हो रिपोर्ट में कहा गया है कि कश्मीर में संभावित अशांति और हिंसा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंताएं हैं. इसका असर क्षेत्रीय स्थिरता पर भी पड़ सकता है. इसमें यह भी कहा गया है कि ट्रंप सरकार ने अपने सार्वजनिक बयान को शांति और स्थिरता बरकरार रखने तथा मानवाधिकारों की रक्षा करने की टिप्पणी तक सीमित कर लिया है.

पढ़ें- जी-7 सम्मेलन में मोदी से कश्मीर मुद्दे पर बातचीत करेंगे ट्रंप

इसमें यह भी कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से सभी पक्षों से शांति बनाए रखने की अपील की गई. 'अनौपचारिक' तौर पर हुई सुरक्षा परिषद की बैठक के बाद संयुक्त राष्ट्र ने कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया.
सीआरएस ने कहा कि कश्मीर में 2019 में घटनाक्रम पर अमेरिकी संसद के लिए पांच संभावित सवाल खड़े किए हैं. जैसे-क्या भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर के दर्जे में बदलाव से क्षेत्रीय स्थिरता पर नकारात्मक असर पड़ेगा? और अगर ऐसा है तो इसमें अमेरिका की क्या भूमिका होगी और संभावित अस्थिरता के समाधान के लिए अमेरिका की सर्वश्रेष्ठ नीतियां क्या होंगीं?'

इसके अलावा यह भी सवाल किया गया है कि 'भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव दूर करने या दोनों के बीच द्विपक्षीय वार्ता को बहाल करने में अमेरिका किस तरह राजनयिक या अन्य भूमिका निभाएगा?' रिपोर्ट में यह भी पूछा गया है कि 'कश्मीर में अस्थिरता किस हद तक अफगानिस्तान के हालात को प्रभावित कर सकती है? क्या इस्लामाबाद अफगानिस्तान को लेकर वाशिंगटन के साथ सहयोग कम कर देगा?'
सीआरएस ने यह भी सवाल उठाया है कि 'भारत में लोकतांत्रिक/संवैधानिक नियम और बहुलतावादी परंपराएं देश में मौजूदा राजनीतिक माहौल में किस हद तक खतरे में है?'

सीआरएस की रिपोर्ट में पूछा गया है कि 'क्या भारत में मानवाधिकार उल्लंघन और धार्मिक स्वतंत्रता को खतरा बढ़ता जा रहा है? क्या अमेरिकी सरकार इस चिंताओं को निपटने के लिए कोई कदम उठाएगी?'

बता दें, इससे पहले कश्मीर को लेकर सीआरएस की रिपोर्ट 2002 में आई थी.

Intro:Body:Conclusion:
Last Updated : Sep 27, 2019, 10:58 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.