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रोहिंग्या नरसंहार मामले को संयुक्त राष्ट्र कोर्ट में खारिज किया जाना चाहिए: म्यांमार - myanmar

म्यांमार के सैन्य शासकों के वकीलों ने सोमवार को मांग की कि है की रोहिंग्या नरसंहार(rohingya genocide) मामले को संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष(UN court) अदालत में खारिज कर दिया जाना चाहिए. बता दें कि पिछले साल देश की सत्ता पर सेना के कब्जे के बाद म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने के बारे में सवालों के बीच अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में सार्वजनिक सुनवाई चल रही है.

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Published : Feb 22, 2022, 7:15 AM IST

द हेग: म्यांमार के सैन्य शासकों के वकीलों ने सोमवार को मांग की कि है की रोहिंग्या नरसंहार(rohingya genocide) मामले को संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष(UN court) अदालत में खारिज कर दिया जाना चाहिए. बता दें कि पिछले साल देश की सत्ता पर सेना के कब्जे के बाद म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने के बारे में सवालों के बीच अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में सार्वजनिक सुनवाई चल रही है.

इससे पहले नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट(national unity government) नामक एक प्रतीकात्मक प्रशासन ने तर्क दिया था कि उसे अदालत में म्यांमार की ओर से प्रतिनिधित्व करना चाहिए. बजाय इसके, कानूनी टीम का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंत्री को को लाइंग ने किया था. इस गवर्नमेंट में अन्य प्रतिनिधियों के अलावा वे निर्वाचित प्रतिनिधि भी शामिल थे, जिन्हें सैन्य शासकों ने सीट संभालने नहीं दी थी. उन्होंने लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की की जगह ली थी लेकिन अब वह जेल में हैं. सुनवाई शुरू होने पर अदालत के अध्यक्ष, अमेरिकी न्यायाधीश जोआन डोनोग्यू ने कहा, अदालत के समक्ष एक विवादास्पद मामले के पक्षकार देश हैं, विशेष सरकारें नहीं.

वहीं म्यांमार के एक अधिकार समूह ने सैन्य शासन को म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देने के अदालत के फैसले पर सवाल उठाया. बर्मा ह्यूमन राइट्स नेटवर्क के कार्यकारी निदेशक क्याव विन ने एक बयान में कहा कि, हमें खुशी है कि मामला आगे बढ़ रहा है लेकिन यह बहुत दुखी करने वाला है कि सेना को म्यांमार के प्रतिनिधि के रूप में अदालत के सामने पेश होने की अनुमति है. लाइंग ने अदालत से कहा कि म्यांमार के पास अदालत के अधिकार क्षेत्र और मामले की स्वीकार्यता के लिए कानूनी चुनौतियां हैं.

यह भी पढ़ें- बाइडेन का म्यांमार पर कड़ा रुख, लगाया न्यायिक अधिकारियों पर प्रतिबंध

इनमें से एक तर्क यह भी है कि यह मामला ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामलिक स्टेट्स की ओर से गाम्बिया द्वारा लाया गया है. वकील क्रिस्टोफर स्टेकर ने दलील दी कि यह अदालत केवल देशों के बीच उत्पन्न विवादों को सुन सकती है और गाम्बिया मुस्लिम संगठन के लिए छद्म पक्षकार के रूप में कार्य कर रहा है. एक अन्य वकील स्टेफन टालमोन ने कहा कि गाम्बिया यह मामला नहीं ला सकता क्योंकि वह म्यांमार के मामले से सीधे जुड़ा नहीं है. टालमोन ने न्यायाधीशों से कहा, म्यांमार की दलील है कि गाम्बिया का मौजूदा मामले में कोई अस्तित्व नहीं है. इसलिए इसकी याचिका सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज की जानी चाहिए.

कहा जा गाम्बिया के वकीलों की ओर बुधवार को दलीलें पेश करने की संभावना है. इससे पहले म्यांमार के छद्म नागरिक प्रशासन ने रोहिंग्या नरसंहार मामले में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में होने वाली सुनवाई के दौरान सैन्य शासन जुंटा के प्रतिनिधियों को देश का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति नहीं देने का आह्वान किया था. वहीं नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट का कहना है कि यह देश की एकमात्र वैध सरकार है लेकिन किसी विदेशी सरकार ने इसे मान्यता नहीं दी है.


(पीटीआई-भाषा)

द हेग: म्यांमार के सैन्य शासकों के वकीलों ने सोमवार को मांग की कि है की रोहिंग्या नरसंहार(rohingya genocide) मामले को संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष(UN court) अदालत में खारिज कर दिया जाना चाहिए. बता दें कि पिछले साल देश की सत्ता पर सेना के कब्जे के बाद म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने के बारे में सवालों के बीच अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में सार्वजनिक सुनवाई चल रही है.

इससे पहले नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट(national unity government) नामक एक प्रतीकात्मक प्रशासन ने तर्क दिया था कि उसे अदालत में म्यांमार की ओर से प्रतिनिधित्व करना चाहिए. बजाय इसके, कानूनी टीम का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय सहयोग मंत्री को को लाइंग ने किया था. इस गवर्नमेंट में अन्य प्रतिनिधियों के अलावा वे निर्वाचित प्रतिनिधि भी शामिल थे, जिन्हें सैन्य शासकों ने सीट संभालने नहीं दी थी. उन्होंने लोकतंत्र समर्थक नेता आंग सान सू की की जगह ली थी लेकिन अब वह जेल में हैं. सुनवाई शुरू होने पर अदालत के अध्यक्ष, अमेरिकी न्यायाधीश जोआन डोनोग्यू ने कहा, अदालत के समक्ष एक विवादास्पद मामले के पक्षकार देश हैं, विशेष सरकारें नहीं.

वहीं म्यांमार के एक अधिकार समूह ने सैन्य शासन को म्यांमार का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति देने के अदालत के फैसले पर सवाल उठाया. बर्मा ह्यूमन राइट्स नेटवर्क के कार्यकारी निदेशक क्याव विन ने एक बयान में कहा कि, हमें खुशी है कि मामला आगे बढ़ रहा है लेकिन यह बहुत दुखी करने वाला है कि सेना को म्यांमार के प्रतिनिधि के रूप में अदालत के सामने पेश होने की अनुमति है. लाइंग ने अदालत से कहा कि म्यांमार के पास अदालत के अधिकार क्षेत्र और मामले की स्वीकार्यता के लिए कानूनी चुनौतियां हैं.

यह भी पढ़ें- बाइडेन का म्यांमार पर कड़ा रुख, लगाया न्यायिक अधिकारियों पर प्रतिबंध

इनमें से एक तर्क यह भी है कि यह मामला ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामलिक स्टेट्स की ओर से गाम्बिया द्वारा लाया गया है. वकील क्रिस्टोफर स्टेकर ने दलील दी कि यह अदालत केवल देशों के बीच उत्पन्न विवादों को सुन सकती है और गाम्बिया मुस्लिम संगठन के लिए छद्म पक्षकार के रूप में कार्य कर रहा है. एक अन्य वकील स्टेफन टालमोन ने कहा कि गाम्बिया यह मामला नहीं ला सकता क्योंकि वह म्यांमार के मामले से सीधे जुड़ा नहीं है. टालमोन ने न्यायाधीशों से कहा, म्यांमार की दलील है कि गाम्बिया का मौजूदा मामले में कोई अस्तित्व नहीं है. इसलिए इसकी याचिका सुनवाई योग्य न मानते हुए खारिज की जानी चाहिए.

कहा जा गाम्बिया के वकीलों की ओर बुधवार को दलीलें पेश करने की संभावना है. इससे पहले म्यांमार के छद्म नागरिक प्रशासन ने रोहिंग्या नरसंहार मामले में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत में होने वाली सुनवाई के दौरान सैन्य शासन जुंटा के प्रतिनिधियों को देश का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति नहीं देने का आह्वान किया था. वहीं नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट का कहना है कि यह देश की एकमात्र वैध सरकार है लेकिन किसी विदेशी सरकार ने इसे मान्यता नहीं दी है.


(पीटीआई-भाषा)

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