हैदराबाद : सरकार विरोधी 11 दलों के मोर्चा पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (पीडीएम) द्वारा क्वेटा में रविवार यानी 25 अक्टूबर को तीसरी बार रास्ते पर, जो प्रदर्शन किया गया वह पाकिस्तान के घरेलू सत्ता समीकरण में हो रहे उथल पुथल को इंगित करता है.
पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी, जिनका जनरल मुशर्रफ ने 1999 में तख्ता पलट दिया था और जिन्हें सेना ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया था, लंदन से एक वीडियो-लिंक के माध्यम से उग्र संबोधन देकर यह संकेत दिया कि पाकिस्तान के सबसे वरिष्ठ और अनुभवी राज नेता अखाड़े में उतरने के लिए तैयार हैं. पाकिस्तान की वर्तमान इमरान खान की सरकार, जो अगस्त 2018 में सत्ता में आई रावलपिंडी में बैठी सेना द्वारा चुनी गई दिखाई देती है और प्रधानमंत्री खान सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा के भरोसे टिके हैं ऐसा समझा जाता है.
इमरान खान द्वारा कमर जावेद बाजवा के कार्यकाल को बढ़ाए जाने के फैसले पर काफी सवाल उठे थे और इस्लामाबाद-रावलपिंडी के बीच प्रधानमंत्री-सेना प्रमुख के परस्पर अवलंबन के रिश्तों की याद ताजा कराता है. विडंबना की बात तो यह है कि जब नवंबर 1990 में नवाज शरीफ पहली बार प्रधानमंत्री बने थे, तब भी यह माना जाता था कि वे भी सेना द्वारा पसंद किए गए गैर सैनिक राज नेता थे.
इमरान खान सरकार द्वारा राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के एक सूत्री एजेंडे और उसके दो साल के अयोग्य शासन ने ही पाकिस्तान की सड़कों पर विरोध को जन्म दिया और सितंबर में पीडीएम का गठन हुआ.
मुख्य विपक्षी दलों में चार बड़े खिलाड़ी शामिल हैं. पीएमएल-एन (पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज), पीपीपी (पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी), जेयूएलएफ (जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम-फजलूर) और पख्तूनख्वा मिल्ली अवामी पार्टी प्रमुख है. अन्य दलों में बलूच नेशनल और पश्तून तहफ्फुज आंदोलन शामिल हैं, जिनमें से सभी ने पीडीएम बनाने के लिए अपने मतभेदों को अलग रखा है.
इस इमरान खान विरोधी गठबंधन के अध्यक्ष जेयूएलएफ के अनुभवी पश्तून नेता फजलुर रहमान हैं और अधिक दिखने वाले युवा नेताओं में पीएमएल-एन के उपाध्यक्ष मरियम नवाज शामिल हैं जो नवाज शरीफ की बेटी हैं और पीपीपी के चेयरपर्सन बिलावल भुट्टो जरदारी जो जुल्फिकार अली भुट्टो के पोते हैं. भुट्टो को पाकिस्तान के जनरल जिया उल हक द्वारा फांसी पर चढ़ाया गया था. वे बेनजीर भुट्टो के बेटे हैं. बेनजीर भी पाकिस्तान की पूर्व पीएम थीं, जिनकी दिसंबर 2007 में हत्या कर दी गई थी.
पाकिस्तान में लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली सेना के उत्पीड़न के खिलाफ मतदाता की वैधता और ताकत को स्पष्ट करने वाले आह्वान में, तीन बार पूर्व प्रधानमंत्री रह चुके शरीफ ने जोर दे कर कहा कि इस उत्साह को देखते हुए, मुझे यकीन है कि कोई भी अब वोट के सम्मान का उल्लंघन करने में सक्षम नहीं होगा. मैंने यह उत्साह गुजरांवाला और कराची में देखा और अब मैं इसे क्वेटा में देख रहा हूं. शरीफ मध्य अक्टूबर में गुजरांवाला, पंजाब और कराची, सिंध में पीडीएम द्वारा आयोजित एक के बाद एक हुए विरोध में दिखाई दे रहे लोकतांत्रिक आवेग का जिक्र कर रहे थे.
क्वेटा का विरोध रविवार को पाकिस्तान के तीन सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले प्रांतों पंजाब, सिंध और बलूचिस्तान में पीडीएम की पहुंच का प्रमाण है और इमरान खान सरकार के लिए स्पष्ट संकेत देते हैं. पीडीएम रुख के बारे में विशिष्ट बात यह है कि पाकिस्तान के सार्वजनिक प्रवचन में पहली बार एक पूर्व पीएम नवाज शरीफ ने सेना की सार्वजनिक भर्त्सना की और जनरल बाजवा को अपनी सरकार को गिराने के लिए दोषी ठहराया.
गुजरांवाला (16 अक्टूबर) में पीडीएम कैडर्स को अपने संबोधन में नवाज शरीफ ने सेना को 'राज्य से ऊपर' बताया और बाजवा पर न्यायपालिका के साथ मिलीभगत करने और उन्हें पद से हटाने और संदिग्ध चुनाव के जरिए इमरान खान को गद्दी पर बैठने का आरोप लगाया. इसे एक रिमोट नियंत्रित तख्तापलट के रूप में वर्णित किया जा सकता है. एक बहुत ही असामान्य विकास में, यहां तक कि पाकिस्तानी मानकों के अनुसार, कराची मे पीडीएम विरोध (18 अक्टूबर) के बाद पाकिस्तानी रेंजरों (पाक सेना द्वारा नियंत्रित) ने कराची में शीर्ष पुलिस अधिकारी को धमकाया और नवाज शरीफ के दामाद को मामूली आरोपों मे गिरफ्तार किया.
इसके कारण सिंध के पुलिस महानिरीक्षक मुश्ताक महरान 'उपहास और अपमानित' होने के विरोध में छुट्टी पर चले गए और उनकी इस कार्रवाई के समर्थन मे उनके मातहत भी छुट्टी पर चले गए. सिंध पुलिस के खिलाफ पाक सेना को खड़ा करने से बहुत ही विषम स्थिति पैदा हो गई थी और पीपीपी के अध्यक्ष बिलावल भुट्टो जरदारी ने सेना प्रमुख जनरल बाजवा के हस्तक्षेप की मांग की थी.
एक जांच जिसकी रिपोर्ट 10 दिनों में (30 अक्टूबर तक) सौंपी जानी है, उसने पुलिस की संवेदनशीलता को समझने में मदद की और आईजी पुलिस ने यह कहते हुए कि स्थिति कठिन बनी हुई है, अपनी विरोध छुट्टी को टाल दिया है.
कराची की इस घटना के बारे में क्वेटा में बोलते हुए मरियम नवाज ने राज्य के ऊपर राज्य परिस्थिति का वर्णन करते हुए कहा, कि जिस तरह से आईजी (इंस्पेक्टर जनरल) का अपहरण किया गया, जिस तरह से उन्होंने होटल और मेरे कमरे पर छापा मारा यह इसका ताजा उदाहरण है.
इसके अलावा, पाक सेना और खुफिया एजेंसियों के खिलाफ लंबे समय से चल रहे स्थानीय बलूच गुस्से के साथ इसे जोड़ते हुए, उन्होंने कहा कि बलूचिस्तान के लोग समझ सकते हैं कि जब आपके देश की बेटियों और बहनों के कमरे टूट सकते हैं, तो आपके विरोधी की मानसिक स्थिति क्या है. उन्होंने एक राज्य के ऊपर एक राज्य का व्यावहारिक प्रदर्शन देखा है.
पीएम इमरान खान सड़क-शक्ति जुटाकर सत्ता में आए और सेना के शीर्ष अधिकारियों के गुप्त समर्थन से सक्षम हुए, जो 'राज्य से ऊपर राज्य' रहते हुए, सत्ता पर एक ऐसा योग्य नागरिक नेता रखना चाहते थे, जो रावलपिंडी- इस्लामाबाद पदानुक्रम को बरकरार रखे.
वर्तमान में जनरल बाजवा को दिए गए विस्तार और अगले सेना प्रमुख को चुनने के तरीके के बारे में सेना के भीतर काफी सुगबुगाहट चल रही है. पीएम इमरान खान को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो कोविड महामारी से निपटने से परे हैं. उनके इस दावे पर भी प्रश्न उठाए जाए रहे हैं कि वे पाकिस्तान में लोकतंत्र का असली चेहरा है और लोकप्रिय है. क्वेटा में हुए आक्रामक प्रदर्शन इस बात को दर्शाते हैं. पाकिस्तान में चाय उबल रही है और वहां की स्थिति का आकलन नई दिल्ली और बीजिंग अपनी अपनी निगाहों से कर रहे हैं.
(लेखक-सी उदयभास्कर)