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क्या चीन की वुहान लैब से निकला था कोरोना वायरस - गेन-ऑफ-फंक्शन

कोविड-19 महामारी के पशु से मानव में फैलने की व्याख्या देने वाली परिकल्पना को अब तक सबसे मजबूत माना जा रहा है. कोरोनावायरस एक तीसरे माध्यम के जरिए चमगादड़ से मनुष्यों में पहुंचा. ऐसा भी नहीं है कि यह पहली बार हुआ है. मर्स-कोव इसका अन्यतम उदाहरण है.

SARS-CoV-2 की उत्पत्ति
SARS-CoV-2 की उत्पत्ति
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Published : Jun 12, 2021, 1:05 PM IST

Updated : Jun 12, 2021, 2:09 PM IST

मॉन्ट्रियल (कनाडा) : कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की शुरुआत के बाद से, सार्स-कोव-2 (SARS-CoV-2) की उत्पत्ति को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए गए हैं.अब तक, इनमें से कोई भी विचार किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है.

पहले कहा गया था कि वुहान सीफूड बाजार (Wuhan seafood market) की वजह से यह वायरस (virus) तेजी से फैला. हालांकि, अब इस बात में ज्यादा दम नहीं लगता. एक साल के गहन शोध के बाद भी अब तक किसी जानवर में इस वायरस की पहचान नहीं हो पाई है.

पशुओं से मानव में फैला वायरस

इस वायरस के पशु से मानव में फैलने की व्याख्या देने वाली परिकल्पना को अब तक सबसे मजबूत माना जा रहा है. कोरोनावायरस एक तीसरे माध्यम के जरिए चमगादड़ से मनुष्यों में पहुंचा. ऐसा भी नहीं है कि यह पहली बार हुआ है.

मर्स-कोव (Middle East Respiratory Syndrome-MERS CoV) के मामले में, ऊंटों को इसके प्रसार के संभावित माध्यम के तौर पर देखा जाता है. इसी तरह सार्स-कोव-2 के मामले में वुहान बाजार में अवैध रूप से बेचे जाने वाले पैंगोलिन, माध्यम हो सकते हैं.

हालांकि, इस विचार को सही ठहराने के लिए अधिक ठोस सबूत की आवश्यकता है.

वुहान के डब्ल्यूआईवाई से लीक हुआ सार्स-कोव-2

सार्स-कोव-2 के गलती से एक अधिकतम सुरक्षा वाली जैव प्रयोगशाला, जिसका जैव सुरक्षा स्तर- 4 है, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (Wuhan Institute of Virology-WIV) से लीक होने की बात महामारी की शुरूआत से ही कही जा रही है.

पढ़ेंः ओपन स्काई संधि से अलग हुआ रूस, पुतिन ने की पुष्टि

हाल के हफ्तों में यह संभावना फिर से सामने आई, जिसने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (National Institute of Allergy and Infectious Diseases-NIAID) के निदेशक डॉ. एंथनी फौसी (Dr. Anthony Fauci) को शर्मिंदा कर दिया, कुछ समाचारपत्रों का दावा है कि अमेरिका (America) इस शोध प्रयोगशाला (Research Laboratory) को वित्त पोषित कर रहा था और यह दावा भी किया गया कि वहां लाभ के लिए होने वाले अध्ययन से संबंधित परियोजनाओं का वित्त पोषण किया जाता है. वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक विचार का दावा है कि इस एनआईएआईडी ने डब्ल्यूआईवी में चल रहे इनमें से कुछ प्रयोगों का समर्थन किया होगा.

यद्यपि लाभ के प्रयोगों के फायदे हो सकते हैं, लेकिन जोखिम भी हैं.

क्या है गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान?

तो, गेन-ऑफ-फंक्शन (Gain-Of-Function) या लाभ के कार्य संबंधी यह अध्ययन क्या हैं? चिकित्सा की दृष्टि से, यह वायरस पर शोध से जुड़ा है. गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान का लक्ष्य नए गुणों वाला एक वायरस बनाना है जो इसे मनुष्यों के लिए अधिक रोगजनक या अधिक संक्रमणीय बनाता है.

परंपरागत रूप से, इस प्रकार का परिवर्तन पशु या मानव कोशिकाओं में वायरस के बढ़ने पर केंद्रित था. हाल ही में, वायरल जीन में कुछ सटीक और वांछित परिवर्तन करने के लिए पशु मॉडल और आणविक जीव विज्ञान (Molecular Biology) तकनीकों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है. इस प्रक्रिया से नए वायरस तेजी से उत्पन्न हो सकते हैं (वायरस के प्राकृतिक विकास के विपरीत, जिसमें कई साल लगते हैं) जो मनुष्यों के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित होते हैं और मनुष्यों के बीच संचरित होने की उनकी क्षमता को बदल सकते हैं.

गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान के लाभ

इस प्रकार के शोध का तर्काधार यह है कि इन नए विषाणुओं को अलग करके, शोधकर्ता जीनोम (Genome) में उन विशिष्ट परिवर्तनों की पहचान करने में सक्षम होंगे जो नई विशेषताओं के लिए जिम्मेदार हैं. यह ज्ञान वैज्ञानिकों के लिए नई महामारियों के आगमन की बेहतर भविष्यवाणी करना संभव बना सकता है. यह वैज्ञानिकों को नए संक्रामक एजेंटों के अनुकूल टीके और उपचार विकसित करने में मदद कर सकता है.

हालांकि, पिछले एक दशक में गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान के सिद्धांत को व्यापक रूप से चुनौती दी गई है.

यह भी पढ़ेंः दुनियाभर में 60 प्रतिशत कोविड-19 रोधी टीके चीन, अमेरिका और भारत को मिले : डब्ल्यूएचओ

एच5एन1 पर शोध वैज्ञानिकों की चिंता का कारण

इस संबंध में बार-बार दिया जाने वाला एक उदाहरण कई वैज्ञानिकों को चिंतित करता है, वह है- रॉन फौचियर (Ron Fauchier) और योशीहिरो कावाओका (Yoshihiro Kawaoka) का अत्यधिक खतरनाक एवियन एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस (Avian H5N1 Influenza Virus) पर शोध. एक ऐसी तकनीक का उपयोग करते हुए जिसने वायरस को एक माध्यम से दूसरे में कई बार प्रसारित किया. अंतत: ये शोधकर्ता एक एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस बनाने में सक्षम थे जिसे हवा के द्वारा प्रजातियों में प्रेषित किया जा सकता था.

अध्ययन पर व्यापक रूप से बहस हुई और अंततः शोध को रोक दिया गया. अमेरिका सरकार ने विज्ञान पत्रिकाओं से इस अध्ययन के पूर्ण परिणामों को प्रकाशित नहीं करने का भी आग्रह किया, यह तर्क देते हुए कि सूचना का उपयोग जैव आतंकवादियों द्वारा किया जा सकता है. शोध 2013 में फिर से शुरू किया गया था.

गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च में महामारी की क्षमता वाले वायरस के पशु-से-मानव संचरण को रोकने में मदद करने की क्षमता है. हालांकि, इस प्रकार के शोध को अत्यधिक सुरक्षित प्रयोगशाला में किया जाना चाहिए, जिसे बीएसएल -4 के रूप में जाना जाता है.

जोखिम भरा था गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन

इन प्रयोगशालाओं को कर्मचारियों और शोधकर्ताओं को संक्रमित होने से बचाने और अन्य किसी भी तरह के रिसाव को रोकने के लिए बनाया गया है. हालांकि, अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों के दस्तावेजों से पता चला है कि डब्ल्यूआईवी में बीएसएल-4 प्रयोगशाला (BSL-4 Laboratory) में जैव सुरक्षा मानक पर्याप्त रूप से कठोर नहीं थे. इसके अलावा, कई शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि चमगादड़ कोरोनावायरसों पर संस्थान का गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन जोखिम भरा था और अगर वह निकल गया तो मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकता है.

यही कारण है कि वुहान लैब से लीक के कारण सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति की परिकल्पना को अब गंभीरता से लिया जा रहा है.

हालांकि, वुहान लैब का दौरा करने वाली डब्ल्यूएचओ (WHO) द्वारा गठित समिति ने निष्कर्ष निकाला कि सार्स-कोव-2 वायरस की मानव-निर्मित उत्पत्ति का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं दिखाई दिया, कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने सवाल किया कि क्या उस यात्रा के दौरान चीन पूरी तरह से पारदर्शी था. साइंस में मई में प्रकाशित एक खुले पत्र में, इन वैज्ञानिकों ने इस संबंध में और जांच का आह्वान किया है.

(पीटीआई-भाषा)

मॉन्ट्रियल (कनाडा) : कोविड-19 महामारी (Covid-19 Pandemic) की शुरुआत के बाद से, सार्स-कोव-2 (SARS-CoV-2) की उत्पत्ति को लेकर तरह-तरह के कयास लगाए गए हैं.अब तक, इनमें से कोई भी विचार किसी ठोस नतीजे तक नहीं पहुंच पाया है.

पहले कहा गया था कि वुहान सीफूड बाजार (Wuhan seafood market) की वजह से यह वायरस (virus) तेजी से फैला. हालांकि, अब इस बात में ज्यादा दम नहीं लगता. एक साल के गहन शोध के बाद भी अब तक किसी जानवर में इस वायरस की पहचान नहीं हो पाई है.

पशुओं से मानव में फैला वायरस

इस वायरस के पशु से मानव में फैलने की व्याख्या देने वाली परिकल्पना को अब तक सबसे मजबूत माना जा रहा है. कोरोनावायरस एक तीसरे माध्यम के जरिए चमगादड़ से मनुष्यों में पहुंचा. ऐसा भी नहीं है कि यह पहली बार हुआ है.

मर्स-कोव (Middle East Respiratory Syndrome-MERS CoV) के मामले में, ऊंटों को इसके प्रसार के संभावित माध्यम के तौर पर देखा जाता है. इसी तरह सार्स-कोव-2 के मामले में वुहान बाजार में अवैध रूप से बेचे जाने वाले पैंगोलिन, माध्यम हो सकते हैं.

हालांकि, इस विचार को सही ठहराने के लिए अधिक ठोस सबूत की आवश्यकता है.

वुहान के डब्ल्यूआईवाई से लीक हुआ सार्स-कोव-2

सार्स-कोव-2 के गलती से एक अधिकतम सुरक्षा वाली जैव प्रयोगशाला, जिसका जैव सुरक्षा स्तर- 4 है, वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (Wuhan Institute of Virology-WIV) से लीक होने की बात महामारी की शुरूआत से ही कही जा रही है.

पढ़ेंः ओपन स्काई संधि से अलग हुआ रूस, पुतिन ने की पुष्टि

हाल के हफ्तों में यह संभावना फिर से सामने आई, जिसने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एलर्जी एंड इंफेक्शियस डिजीज (National Institute of Allergy and Infectious Diseases-NIAID) के निदेशक डॉ. एंथनी फौसी (Dr. Anthony Fauci) को शर्मिंदा कर दिया, कुछ समाचारपत्रों का दावा है कि अमेरिका (America) इस शोध प्रयोगशाला (Research Laboratory) को वित्त पोषित कर रहा था और यह दावा भी किया गया कि वहां लाभ के लिए होने वाले अध्ययन से संबंधित परियोजनाओं का वित्त पोषण किया जाता है. वॉल स्ट्रीट जर्नल में प्रकाशित एक विचार का दावा है कि इस एनआईएआईडी ने डब्ल्यूआईवी में चल रहे इनमें से कुछ प्रयोगों का समर्थन किया होगा.

यद्यपि लाभ के प्रयोगों के फायदे हो सकते हैं, लेकिन जोखिम भी हैं.

क्या है गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान?

तो, गेन-ऑफ-फंक्शन (Gain-Of-Function) या लाभ के कार्य संबंधी यह अध्ययन क्या हैं? चिकित्सा की दृष्टि से, यह वायरस पर शोध से जुड़ा है. गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान का लक्ष्य नए गुणों वाला एक वायरस बनाना है जो इसे मनुष्यों के लिए अधिक रोगजनक या अधिक संक्रमणीय बनाता है.

परंपरागत रूप से, इस प्रकार का परिवर्तन पशु या मानव कोशिकाओं में वायरस के बढ़ने पर केंद्रित था. हाल ही में, वायरल जीन में कुछ सटीक और वांछित परिवर्तन करने के लिए पशु मॉडल और आणविक जीव विज्ञान (Molecular Biology) तकनीकों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है. इस प्रक्रिया से नए वायरस तेजी से उत्पन्न हो सकते हैं (वायरस के प्राकृतिक विकास के विपरीत, जिसमें कई साल लगते हैं) जो मनुष्यों के लिए बेहतर रूप से अनुकूलित होते हैं और मनुष्यों के बीच संचरित होने की उनकी क्षमता को बदल सकते हैं.

गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान के लाभ

इस प्रकार के शोध का तर्काधार यह है कि इन नए विषाणुओं को अलग करके, शोधकर्ता जीनोम (Genome) में उन विशिष्ट परिवर्तनों की पहचान करने में सक्षम होंगे जो नई विशेषताओं के लिए जिम्मेदार हैं. यह ज्ञान वैज्ञानिकों के लिए नई महामारियों के आगमन की बेहतर भविष्यवाणी करना संभव बना सकता है. यह वैज्ञानिकों को नए संक्रामक एजेंटों के अनुकूल टीके और उपचार विकसित करने में मदद कर सकता है.

हालांकि, पिछले एक दशक में गेन-ऑफ-फंक्शन अनुसंधान के सिद्धांत को व्यापक रूप से चुनौती दी गई है.

यह भी पढ़ेंः दुनियाभर में 60 प्रतिशत कोविड-19 रोधी टीके चीन, अमेरिका और भारत को मिले : डब्ल्यूएचओ

एच5एन1 पर शोध वैज्ञानिकों की चिंता का कारण

इस संबंध में बार-बार दिया जाने वाला एक उदाहरण कई वैज्ञानिकों को चिंतित करता है, वह है- रॉन फौचियर (Ron Fauchier) और योशीहिरो कावाओका (Yoshihiro Kawaoka) का अत्यधिक खतरनाक एवियन एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस (Avian H5N1 Influenza Virus) पर शोध. एक ऐसी तकनीक का उपयोग करते हुए जिसने वायरस को एक माध्यम से दूसरे में कई बार प्रसारित किया. अंतत: ये शोधकर्ता एक एच5एन1 इन्फ्लूएंजा वायरस बनाने में सक्षम थे जिसे हवा के द्वारा प्रजातियों में प्रेषित किया जा सकता था.

अध्ययन पर व्यापक रूप से बहस हुई और अंततः शोध को रोक दिया गया. अमेरिका सरकार ने विज्ञान पत्रिकाओं से इस अध्ययन के पूर्ण परिणामों को प्रकाशित नहीं करने का भी आग्रह किया, यह तर्क देते हुए कि सूचना का उपयोग जैव आतंकवादियों द्वारा किया जा सकता है. शोध 2013 में फिर से शुरू किया गया था.

गेन-ऑफ-फंक्शन रिसर्च में महामारी की क्षमता वाले वायरस के पशु-से-मानव संचरण को रोकने में मदद करने की क्षमता है. हालांकि, इस प्रकार के शोध को अत्यधिक सुरक्षित प्रयोगशाला में किया जाना चाहिए, जिसे बीएसएल -4 के रूप में जाना जाता है.

जोखिम भरा था गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन

इन प्रयोगशालाओं को कर्मचारियों और शोधकर्ताओं को संक्रमित होने से बचाने और अन्य किसी भी तरह के रिसाव को रोकने के लिए बनाया गया है. हालांकि, अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों के दस्तावेजों से पता चला है कि डब्ल्यूआईवी में बीएसएल-4 प्रयोगशाला (BSL-4 Laboratory) में जैव सुरक्षा मानक पर्याप्त रूप से कठोर नहीं थे. इसके अलावा, कई शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया था कि चमगादड़ कोरोनावायरसों पर संस्थान का गेन-ऑफ-फंक्शन अध्ययन जोखिम भरा था और अगर वह निकल गया तो मनुष्यों के लिए हानिकारक हो सकता है.

यही कारण है कि वुहान लैब से लीक के कारण सार्स-कोव-2 की उत्पत्ति की परिकल्पना को अब गंभीरता से लिया जा रहा है.

हालांकि, वुहान लैब का दौरा करने वाली डब्ल्यूएचओ (WHO) द्वारा गठित समिति ने निष्कर्ष निकाला कि सार्स-कोव-2 वायरस की मानव-निर्मित उत्पत्ति का समर्थन करने के लिए कोई सबूत नहीं दिखाई दिया, कई प्रमुख वैज्ञानिकों ने सवाल किया कि क्या उस यात्रा के दौरान चीन पूरी तरह से पारदर्शी था. साइंस में मई में प्रकाशित एक खुले पत्र में, इन वैज्ञानिकों ने इस संबंध में और जांच का आह्वान किया है.

(पीटीआई-भाषा)

Last Updated : Jun 12, 2021, 2:09 PM IST
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