इस्लामाबाद : पाकिस्तान की निचली सदन से पारित आतंकवाद-रोधी अधिनियम (संशोधन) विधेयक, 2020 को बुधवार को सीनेट ने खारिज कर दिया. ऐसा तीसरी बार हुआ है जब विपक्ष के बहुमत वाले उच्च सदन में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) से संबंधित विधेयक का रास्ता रोका गया है.
पाकिस्तान के अखबार डॉन के अनुसार 31 सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में जबकि 34 सदस्यों ने विरोध में मतदान किया.
विधेयक के अनुसार जांच अधिकारी अदालत की अनुमति से 60 दिन के भीतर आतंकवाद को मिल रही वित्तीय मदद का पता लगाने के लिये गुप्त अभियान चला सकते हैं. साथ ही वे नयी तकनीकों के जरिये उनके संचार माध्यमों और कंप्यूटर सिस्टम का पता लगा सकते हैं. अदालत इस अवधि को 60 और दिन के लिये बढ़ा भी सकती है.
विधेयक में कहा गया है कि आंतकवाद को वित्तीय मदद मिलना देश के विकास में एक बड़ी बाधा है.
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पिछले महीने पाकिस्तानी सीनेट ने धनशोधन रोधी (दूसरा संशोधन) विधेयक और इस्लामाबाद राजधानी क्षेत्र (आईसीटी) वक्फ संपत्ति विधेयक को भी खारिज कर दिया था.
यह विधेयक वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) की 'ग्रे' सूची से बाहर आकर 'ह्वाइट' सूची में जाने की पाकिस्तान की कवायद का हिस्सा था.
इस बीच डॉन ने सूत्रों के हवाले से कहा कि राष्ट्रपति राशिद अल्वी ने बुधवार शाम संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुलाई है, जिसमें सरकार एफएटीएफ से संबंधित इन तीनों विधेयकों को पारित कराने की कोशिश करेगी.
18वें संशोधन के तहत, अगर एक सदन से पारित विधेयक दूसरे सदन में खारिज कर दिया जाता है और अगर दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में उसे मंजूरी मिल जाती है, तो वह कानून बन जाता है.
अगर पाकिस्तान को ग्रे सूची में ही रखा जाता है, तो उसके लिये आईएमएफ, वर्ल्ड बैंक, एडीबी और यूरोपीय यूनियन से वित्तीय मदद हासिल करना मुश्किल हो जाएगा.
पाकिस्तान ने ग्रे सूची से बाहर निकलने के लिए पिछले महीने 88 प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों और उनके नेताओं के वित्तीय लेन-देन पर प्रतिबंध लगा दिया था, जिनमें 26/11 मुंबई हमलों का सरगना तथा जमात-उद-दावा का प्रमुख हाफिज सईद, जैश-ए-मोहम्मद का प्रमुख मसूद अजहर और अंडरवर्ल्ड डॉन दाऊद इब्राहीम शामिल है.