काठमांडू : नेपाल के उच्चतम न्यायालय ने प्रतिनिधि सभा भंग करने के मामले में बुधवार को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री कार्यालय को कारण बताओ नोटिस भेजा और 15 दिन के भीतर जवाब मांगा है.
राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सिफारिश पर पांच महीने के भीतर दूसरी बार 22 मई को प्रतिनिधि सभा को भंग कर दिया था और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराए जाने की घोषणा की थी.
ओली सदन में बहुमत खोने के बाद अल्पमत की सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं.
उच्चतम न्यायालय के सूत्रों के अनुसार प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने प्रतिवादियों से स्पष्टीकरण मांगा है.
राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मामले में अंतत: बुधवार से कार्यवाही शुरू हो गई.
ऐसा माना जा रहा है कि प्रतिवादियों को जवाब देने के लिए दी गई 15 दिन की समयसीमा समाप्त होने के बाद 23 जून से मामले में नियमित सुनवाई शुरू होगी.
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एक रिपोर्ट के अनुसार 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को भंग करने के मामले में शीर्ष अदालत ने न्याय मित्र के रूप में दो वरिष्ठ अधिवक्ताओं की मदद लेने का निर्णय किया है. इनमें से एक अधिवक्ता नेपाल बार एसोसिएशन तथा एक अधिवक्ता उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन से होंगे.
प्रतिनिधि सभा को भंग करने के खिलाफ विपक्षी गठबंधन की याचिका सहित 30 रिट याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं.